जाने राजकाज में क्या है खास
जब से भगवा वाले नेताओं ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर अपना मुंह खोला है, तब से साहब लोगों ने खुद ने ही कोड ऑफ कन्डक्ट लागू कर फाइलों पर चिड़िया बिठाने में ब्रेक लगा दिए।
अच्छा-बुरा दौर
इन दिनों सूबे में अच्छे-बुरे दौर को लेकर बहस छिड़ना शुरू हो गई। बहस करने वाले न कोई समय देख रहे और न ही स्थान। श्मशान तक में बहस करने में कंजूसी नहीं बरतते। भारती भवन के साथ किसी भी दल का ठिकाना इससे अछूता नहीं है। राज का काज करने वाले भी आधे से ज्यादा वक्त बहस में गुजार रहे हैं। बहस इस बात की है कि इस समय अच्छा दौर किसका चल रहा है। बड़ी चौपड़ से लेकर सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 तक बहस छिड़ी है कि मामला इन फेवर आॅफ राहुल एण्ड अगेन्स्ट आॅफ मोदी है, बीच में किसी का कोई लेना देना नहीं है। जो मोदी के खिलाफ हैं, वो सबके पास जाएंगे और जो राहुल के फेवर में हैं, वो कहीं नहीं जाएंगे। अब उनको कौन कहे कि समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।
सिर्फ हाथ जोड़ो, अंगुली नहीं
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत के चुनावों में भगवा वाले भाई लोग अपने पोस्टर में अंगुली दिखाते हुए नहीं बल्कि हाथ जोड़ो नजर आएंगे। इस संबंध में जारी फरमान के पीछे का खेल भी कुछ अजब-गजब का है। सुनाने वाले पहले खुद चटकारे लेते हैं। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर रोजाना आने वाले एक खेमे में जोरदार चर्चा है कि सूबे में हुए उप चुनावों के पोस्टरों में भगवा वाले कंडीडेट अंगुली नहीं दिखाते तो आज सदन में बैठे होते। चुनावी गणित में जोड़-बाकी और गुणा-भाग में जुटे लोगों ने भी सलाह दी है कि अगर राज में आना है तो उप चुनावों में हुई हार का सबक लेते हुए पोस्टर में सिर्फ हाथ जोड़ने की ट्रेनिंग देनी होगी।
लहर और ललकार
जब से भगवा वाले नेताओं ने ब्यूरोक्रेसी को लेकर अपना मुंह खोला है, तब से साहब लोगों ने खुद ने ही कोड ऑफ कन्डक्ट लागू कर फाइलों पर चिड़िया बिठाने में ब्रेक लगा दिए। लहर और ललकार में फंसे राज का काज करने वालों से ज्यादा समझदार कोई नहीं है। वे हवा का रुख देख कर ही अपने हाव-भाव दिखाते हैं। भगवा वाली मैडम भी कम नहीं है, वक्त के हिसाब से पासा फेंकती हैं। अब देखो ना पैसे कमाने को लेकर ऐसे ललकारा कि ब्यूरोक्रेट्स की भीड़ अंधेरे में खुद ही उनकी तरफ मुड़ रही है।
मायने एहसान गिनाने के
इन दिनों एहसान को लेकर दोनों दलों में काफी खुसरफुसर है। हो भी क्यों ना, मामला ऑर्गनाइज वे में तारीफ कराने से जुड़ा हुआ है। भारती भवन के साथ भगवा वालों के ठिकाने पर खुसरफुसर हो तो समझ की बात है, लेकिन इंदिरा गांधी भवन में बने पीसीसी के दफ्तर में कानाफूसी हो तो, राज के नवरत्नों के भी कान खड़े होना लाजमी है। हाथ वाले भाई लोगों में भी चर्चा है कि किसी की मदद कर उस एहसान को बार-बार गिनाने से लेने वाले का मन तक उचट जाता है। इससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है।
चर्चा में स्वागत और समर्पण
सूबे में इन दिनों स्वागत और समर्पण को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों, मामला पॉलिटिक्स से ताल्लुक जो रखता है। सबसे ज्यादा चर्चा सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर है। ठिकाने पर वर्कर्स में चर्चा उन नेताओं को लेकर है, जिन्होंने विधायकी का ख्वाब देख कर अपने पुराने दल हाथ को छोड़ कर कमल वाली पार्टी में पगफेरा किया है। चर्चा है कि पगफेरा करने वाले भाई लोगों को अब चिन्ता सता रही है कि उनका सपना पूरा करने के लिए टिकट मिलेगा या नहीं। चूंकि भगवा वाले दल में स्वागत कराने के बाद समर्पण भी साबित करना मायने रखता है।
एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि एक बनाम चार टीमों को लेकर है। जुमला है कि कुर्सी के लिए ढाई साल तक खींचतान कर चुके हाथ वाले भाई लोगों ने टीम का एक लीडर संदेश देने में कोई देरी नहीं कर कइयों का मुंह बंद कर दिया, लेकिन सामने वालों की एक टीम के चार कप्तानों के फेर में फंसे खुद मैनेजर ही नहीं समझ पा रहे कि आखिर मैच का रिजल्ट फेवर में कैसे हो।
-एल.एल.शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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