जानें राज काज में क्या है खास
जरूरत मनोबल बढ़ाने की
राजस्थान दिवस को लेकर अटारी वाले भाई साहब ने ऐसा जादू किया कि सामने वाले भाई लोग भी समझ नहीं पा रहे कि इसकी काट क्या है।
अक्ल, उम्र और भचीड़ :
राजस्थान दिवस को लेकर अटारी वाले भाई साहब ने ऐसा जादू किया कि सामने वाले भाई लोग भी समझ नहीं पा रहे कि इसकी काट क्या है। दरबार के सलाहकारों ने भजनजी को पूरी गोपनीयता बरतने की सलाह दी थी। चार लोगों के सिवाय किसी को हवा तक भी नहीं थी कि भाई साहब राजस्थान दिवस को सप्ताह भर मनाने का ऐलान कर विरोधियों का मुंह बंद करने के लिए यह पासा फेंकेंगे। अब दिल्ली दरबार के सामने भी पूंछरी के बालाजी के भक्त की तारीफ करने के अलावा कोई चारा भी तो नहीं है। अब गुप्तचरों को कौन समझाए कि अक्ल उम्र से नहीं, बल्कि भचीड़ खाने से आती है और इसमें भजनलाल जी का कोई सानी नहीं है। तभी तो हाथ वाले भाई लोग टीवी पर बोलते रहे और अटारी वाले भाई साहब ने चुपचाप धरातल पर असर दिखा दिया।
चर्चा में राजयोग :
सूबे में इन दिनों राजयोग को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों न, मामला इमेज एण्ड स्टेटस से ताल्लुकात जो रखता है। राजयोग को लेकर भगवा वाले भाई लोगों का दिन का चैन और रातों की नींद उड़ी हुई है। कइयों के चेहरे पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी हैं। बेचारों ने राजयोग के लिए कई तरह के पापड़ भी बेले थे। कई देवी-देवताओं के धेवरे ढोकने के साथ ही सवामणी तक बोली थी। और तो और जयपुर से दिल्ली तक भी कई बार सड़कें नापी थी। कुछ होता, उससे पहले ही दिल्ली वाले के एक फरमान ने सारा खेल बिगाड़ दिया। अब पंडितों ने भी कहना शुरू कर दिया कि बेचारों के नसीब में राजयोग ही नहीं लिखा तो पंचांग भी क्या कर लेगा।
पॉलिटिक्स-ए-डिलिमिटेशन :
सूबे में कभी खुशी-कभी गम में पॉलिटिक्स नहीं हो, यह कतई संभव नहीं है। हमारे नेताओं का आफरा भी तब तक नहीं उतरता है, जब तक अपने हिसाब से राजनीति की रोटियां नहीं सेंक लेते। अब देखो न डिलिमिटेशन की चर्चाओं के दौरान रोटियां बांटने के दौरान फोटो खींचने को लेकर ही रंगाई-छपाई के लिए फेमस सांगा बाबा की मारवाड़ की नगरी में नेताओं के बीच दो-दो हाथ हो गए। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि दो-दो हाथ होकर ही मामला सुलट जाता तो ठीक होता, लेकिन अब उनके आकाओं के बीच जो शब्द बाण चल रहे हैं, उससे ही पॉलिटिक्स का पता चल रहा है। अब बेचारे उन छुटभैये नेताओं के हाल कोई नहीं पूछ रहा, जिनके माथे फूटने से चेहरों पर खून की लकीरें पड़ी थीं।
असर फोटो खिंचवाने का :
एक सप्ताह पहले भगवा वाले एक छुटभैये नेताजी ने फोटो क्या खिंचवा ली, अपने घर में क्लेश करवा लिया। अब बेचारे नेताजी को थोड़े ही पता था कि उनके बड़े नेताजी की पहुंच उनके चूल्हे तक है। बड़ी चौपड़ से आगे वाली राम के नाम से बनी एक और चौपड़ के आसपास इन दिनों फोटो खिंचवाने की होड़ सी मची हुई है। नेताजी ने भी एक पोस्टर के साथ फोटो खिंचवाकर कारिन्दे के हाथों अपने सगे-सम्बधियों के पास पहुंचाने को भेज दिया। लेकिन दूसरे दिन अखबारों में छपी छुटभैये की फोटो देख नेताजी का पारा आसमान पर चढ़ गया। अब बेचारा पुरानी बस्ती में रहने वाला छुटभैया नेता अपने आका की लाल आंखों का शिकार होने के साथ ही सात दिन से होमलॉक में ही कैद है।
जरूरत मनोबल बढ़ाने की :
पब्लिसिटी की जंग के बीच एक गु्रप ऐसा भी है, जो हर चीज पर अपनी पैनी नजर गड़ाए हुए है। इस गु्रप में गुणी लोग ज्यादा हैं, जिनका ताल्लुकात सिर्फ पब्लिक से है। गुणीजनों ने राज को राय तो सही दी है, मगर उस पर अमल कराने के लिए मुंह खोलने की हिम्मत किसी भी रत्न में नहीं है। गुणीजनों की राय है कि युद्ध के मैदान में सेना को सम्मानित नहीं किया जाता, बल्कि उनका मनोबल बढ़ाया जाता है। एक शक्ति का सम्मान करने से दूसरी ताकतें डायवर्ट होती है। एक-दूसरे को नीचा दिखाने की जंग में भी योद्धाओं के मनोबल बढ़ाने की जरूरत है।
-एल. एल. शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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