जानें राज काज में क्या है खास
इशारों ही इशारों में
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत के सरपंच साहब इन दिनों काफी पीड़ा में है।
पीड़ा में सरपंच :
सूबे की सबसे बड़ी पंचायत के सरपंच साहब इन दिनों काफी पीड़ा में है। उनकी पीड़ा को न तो इधर वाले समझ पा रहे है और न उधर वाले। उनको राज के रत्नों से काफी उम्मीदें हैं, लेकिन वे खरा नहीं उतर पा रहे और सबसे ज्यादा उछलकूद भी वो ही करते हैं। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में चर्चा करते हैं कि सरपंच साहब सबसे ज्यादा पीड़ित तो अपनों से हैं, जो उनके मनमाफिक नहीं करने से आरोप लगाने में कोई चूक नहीं करते हैं। आसन से बंधे अजयमेरु वाले भाई साहब को चिंता है कि राज की सबसे ज्यादा फजीहत ही रत्न करवा रहे हैं। उनकी वजह से राज को सात दिन में दो बार सलेक्ट कमेटी का सहारा लेना पड़ा। इसके पीछे का राज समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है।
बहाना नेतागीरी चमकाने का :
नेताओं का जवाब नहीं है, जब भी मौका मिलता है, अपनी नेतागीरी चमकाने में कतई पीछे नहीं रहते। नेतागीरी चमकाने के चक्कर में वे न तो समय देखते हैं और नहीं जगह। अब देखो न, हार्ड कोर क्रिमनल्स और सांप्रदायिक तनाव के फेर में फंसी बेचारी जनता घर में नजरबंद होकर रोजाना माला जप रही है और हमारे सूबे के खादी वाले भाई लोग हैं कि फोटो खिंचवाने के चक्कर में एक-दूसरे के कोहनी मार कर आगे बढ़ रहे हैं। पिंकसिटी में शनि और रवि को एक नेताजी ने अपनी नेतागीरी चमकाने के लिए हाथ-पैरों तक की परवाह नहीं की और खबरनवीशों को देख दौड़ कर अनाप सनाप करने में भी कोई देर नहीं की। अब बेचारा खाकी वाला वह कारिन्दा भी मंद-मंद मुस्करा रहा था, जिसके जिम्मे लॉ एण्ड ऑर्डर संभालने का जिम्मा था। अब उसको यह थोड़े ही पता था कि नेतागीरी के लिए यह सबकुछ तो करना पड़ता है।
इशारों ही इशारों में :
इशारों ही इशारों में बहुत कुछ हो जाता है, लेकिन जब इशारा गलत दिशा में हो जाता है, तो मामला बिगड़े बिना नहीं रहता। अब देखो ना संडे को बड़ी चौपड़ वाले खाकी के ऑफिस में बैठने वाले साहब को क्या पता था कि भगवा वाले नेताजी के इशारे पर चलने से हाथ वाले दो-दो हाथ करने में न आगा सोचेंगे और नहीं पीछा। जब हाथ वाले नेताजी को पता चला कि खाकी वाले साहब गुजरे जमाने में नेतागीरी कर चुके छुटभैया के इशारे पर बहुत कुछ काम कर रहे हैं, तो उनकी आंखों का रंग तो बदलना ही था। नीली आंखों वाले नेताजी की आंखों का रंग बदलकर लाल होते देख खाकी वाले साहब ने भी हाथ जोड़ने में ही अपनी भलाई समझी।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा--मोटा नहीं, कुर्सी के सपने देखने वालों से ताल्लुकात रखता है। जुमला है कि जब से सूबे में सोशियल बोर्डों में अपॉइंटमेंट की मनाही हुई है, तब से कई भाई लोगों की नींद उड़ी हुई है। अब उनको नवरात्रों का बेसब्री से इंतजार है, ताकि रोजाना अलग अलग माताओं को प्रसाद चढाकर मनसा पूरी करने की अरदास कर सके।
-एल. एल. शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
Comment List