दुनिया में शुरू हुई संरक्षणवाद की नई प्रतिस्पर्धा

इलेक्ट्रॉनिक्स जोखिम में 

दुनिया में शुरू हुई संरक्षणवाद की नई प्रतिस्पर्धा

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से पहले ही जूझ रहे भारतीय निर्यातकों को अब मेक्सिको की ओर से भी झटका लग गया है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति से पहले ही जूझ रहे भारतीय निर्यातकों को अब मेक्सिको की ओर से भी झटका लग गया है। वहां की सरकार ने भारतीय उत्पादों के अपने देश में होने वाले निर्यात पर 50 फीसदी शुल्क लगाने का फैसला लिया है। इस कदम से यह साफ जाहिर हो रहा है कि वैश्विक व्यापार में अब संरक्षणवाद की नई प्रतिस्पर्धा शुरू होने जा रही है। मेक्सिको ने इस शुल्क से सिर्फ भारत को ही नहीं बल्कि चीन, थाईलैंड सहित ऐसे उन सभी एशियाई देशों को भी झटका दिया है, जिनका उसके साथ मुक्त व्यापार समझौता नहीं है। ऐसे देशों के 1,400 से अधिक उत्पादों पर 5 से 50 फीसदी के बीच शुल्क लगाने की घोषणा की गई है। इसके पीछे तर्क दिया कि वह इस फैसले से अपने घरेलू उद्योग की सुरक्षा करना चाहती है। मेक्सिको की संसद में टैरिफ बढ़ाने के प्रस्ताव भारी बहुमत 76-5 से पारित हुआ।

एक बड़ा झटका :

सरकार का आंकलन है कि अपना राजस्व घाटा कम करने के लिए उसे इस फैसले से 3.76 अरब डॉलर की आय होने की उम्मीद है। लेकिन विश्लेषक आपूर्ति चेन को अमेरिका या कनाडा जैसे एफटीए पार्टनर्स की ओर शिफ्ट होने की भविष्यवाणी कर रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका और सऊदी अरब के साथ मेक्सिको, यात्री कारों के लिए भारत का तीसरा सबसे बड़ा निर्यात बाजार है। ऐसे में बढ़ाए गए टैरिफ से भारतीय वाहन उद्योग के लिए एक बड़ा झटका लगा है। यही नहीं ऑटो पार्ट्स, स्टील, टेक्सटाइल, प्लास्टिक, फुटवीयर, इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात क्षेत्र भी इस फैसले से प्रभावित होंगे। इससे निर्यात 25 से 40 फीसदी तक गिर सकता है। भारत का ऑटोमोटिव निर्यात लगभग 1-1.7 अरब डॉलर सालाना है। मेक्सिको ने कारों पर टैरिफ 20 से 50 फीसदी बढ़ा दिया है। इससे फॉक्सवैगन, निसान और मारुति सुजुकी जैसे निर्यातकों को झटका लगेगा। टेक्सटाइल और वस्त्र निर्यात पर शुल्क 30-35 फीसदी तक हो जाएगा, जिससे उनकी कीमत बील्ड-अप बढ़ेगी और प्रतिस्पर्धा कम होगी।

इलेक्ट्रॉनिक्स जोखिम में :

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स्टील पर 50 फीसदी तक का टैरिफ लागू हो रहा है, जो कि बहुत महत्वपूर्ण है और भारतीय कंपनियों के लिए बड़ा जोखिम है। पहले बिना शुल्क के आने वाले इलेक्ट्रॉनिक्स सामान पर 35 फीसदी ड्यूटी लगाए जाने से मुश्किल में पड़ सकते हैं। जहां तक दवा और रसायन क्षेत्र का सवाल है यह कुछ हद तक कम प्रभावित होंगे। कारण इस पर 15-30 फीसदी टैरिफ है इसलिए भारतीय जेनेरिक दवाएं कुछ प्रतिस्पर्धा में बने रह सकती हैं। जीटीआरआई जैसे शोध संस्थानों के अनुसार लगभग 75 फीसदी तक भारत का मेक्सिको को निर्यात प्रभावित होगा और कुल निर्यात में 25से 40 फीसदी तक गिरावट आ सकती है। महंगे टैरिफ लगा देने से भारतीय माल की लैंडेड कीमत बढ़ेगी, जिससे मेक्सिकन आयातकों को यह कीमत भारी पड़ेगी ऐसे में वे अन्य देशों की ओर रुख करेंगे। भारत की निर्यात आधारित विनिर्माण रणनीति को यह बड़ा झटका दे सकता है, खासकर जिन उद्योगों ने मेक्सिको को मुख्य बाजार बनाया है।

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विकल्प की तलाश :

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जबकि टेक्सटाइल और कपड़ों पर 35 फीसदी तक वृद्धि होगी, जिससे मेक्सिको के खरीदार अन्य विकल्प तलाश सकते हैं। इससे भारत का बाजार हिस्सा घटेगा। भारत को सालाना 5.75 अरब डॉलर का नुकसान पहुंचेगा। दशकों तक मेक्सिको का आर्थिक मॉडल एशिया से औद्योगिक इनपुट आयात करने और अमेरिका और कनाडा को तैयार माल निर्यात करने का रहा है। मैक्सिको इसके अलावा अपने यहां सस्ते चीनी सामानों की बाढ़ को भी रोकना चाहता है। चीन का उसके साथ व्यापार अधिशेष 100 अरब डॉलर की सीमा को भी लांघ चुका है। हालांकि इसकी ज्यादा बड़ी वजह अमेरिका की तरफ से पड़ रहा दबाव ही लगता है। मेक्सिको ने अपने फैसले से वाशिंगटन को संकेत दिया है कि वह इस मामले में उसके साथ खड़ा है। ऐसे में भारत वही कर रहा है, जो उसे करना चाहिए, यानी द्विपक्षीय व्यापार समझौते या फिर इसके होने तक आंशिक समझौते पर स्वीकृति बनाने के लिए बातचीत तेज करने पर जोर दे रहा है, ताकि शुल्क को कम या रद्द किया जा सके।

भारतीय निर्यातक :

यही नहीं भारतीय निर्यातकों को मेक्सिको के अलावा दूसरे बाजारों की ओर अपनी आपूर्ति को स्थानांतरित करने का विकल्प खोजने की जरूरत है। जैसे अफ्रीका, मध्यपूर्व और आसियान देशों में विस्तार। मेक्सिको में वाहन और औद्योगिक संयंत्र निवेश पर भारतीय कंपनियां शुल्क को दरकिनार कर सकती हैं और स्थानीय उत्पादन के जरिये प्रतिस्पर्धा बनाए रख सकती है। भारत सरकार ने मेक्सिको के साथ मुद्दे को संजीदा कूटनीतिक मुद्दा बना दिया है, ताकि प्रभावित उद्योगों के लिए कुछ राहत या समाधान मिल सके। कुल मिलाकर बदली परिस्थितियों में इस चुनौती का सामना करने के लिए भारत को अपनी निर्यात रणनीति में बदलाव, बाजार विविधीकरण पर जोर, कूटनीतिक वार्ता के प्रयास और संभावित व्यापार समझौते पर तेजी से काम करने की जरूरत है। ताकि इस झटके के प्रभावों को न्यूनतम किया जा सके तथा दीर्घकालिक आर्थिक लक्ष्य सुरक्षित हो सकें।

-महेश चंद्र शर्मा
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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