झुलसती संवेदनाएं और नाकाम होती व्यवस्था

हादसा एक चेतावनी 

झुलसती संवेदनाएं और नाकाम होती व्यवस्था

एक बार फिर एक भीषण आग ने 25 मासूम जिंदगियों को छीन लिया।

एक बार फिर एक भीषण आग ने 25 मासूम जिंदगियों को छीन लिया। गोवा के नाइट क्लब में हुई यह त्रासदी केवल आगजनी नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम की जड़ता, गैर-जिम्मेदारी और नैतिक पतन की ज्वलंत मिसाल है। गोवा का जो नाइट क्लब आग की चपेट में आया, वह नियमों की अनदेखी करके तो चलाया ही जा रहा था, उसमें आग से बचाव के उपाय भी नहीं किए गए थे। रही-सही कसर इससे पूरी हो गई कि नाइट क्लब में आने और जाने का रास्ता बेहद संकरा था। आग की चपेट में आने वालों की संख्या इसलिए अधिक बढ़ गई, क्योंकि बचने के लिए उन्होंने जिस रास्ते को सुरक्षित समझा, वहां पहले से ही लोग फंसे हुए थे। इस तरह से आनंद और उत्सव का स्थल अचानक जीवन समाधि में बदल गया, वह अनेक सवाल हमारे सामने खड़े करता है।

लापरवाही की आग :

पूर्व में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, सूरत और अनेक शहरों में समान दुर्घटनाएं हो चुकी हैं। होटल, मॉल, थिएटर, अस्पताल, फैक्ट्री, कोचिंग सेंटर लापरवाही की आग में झूलसने वालों की संख्या बढ़ी है, लेकिन हमारी संवेदनशीलता का स्तर छोटा होता जा रहा है। आगजनी की घटनाओं का सिलसिला तो लगातार है, परंतु सुरक्षा मानकों के प्रति हमारी उदासीनता और घोर लापरवाही भी उतनी ही स्थायी है। गोवा अपनी पहचान पर्यटन से बनाता है। नाइट लाइफ, समुद्री तटों का आनंद, मनोरंजन गतिविधियां और विदेशी पर्यटक इसका स्वाभाविक आकर्षण हैं। ऐसे प्रदेश में इस प्रकार का हादसा केवल मानवीय त्रासदी नहीं, बल्कि छवि और अर्थव्यवस्था का गहरा नुकसान भी है। भारत की टूरिज्म इंडस्ट्री पहले ही प्रतिस्पर्धा और सुरक्षा को लेकर चुनौतियों से जूझ रही है। अधिकांश नाइट क्लब, बार, पार्क या मनोरंजन स्थल ऐसे होते हैं, जहां प्रवेश शुल्क, अवैध संचालन और आर्थिक लाभ का बड़ा खेल चलता है।

भीड़भाड़ वाली जगह :

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इमारतों की मंजूरी, फायर सुरक्षा की अनुमति, बिजली के तारों का रखरखाव, निकास मार्ग-ये सभी चीजें फाइलों में तो दर्ज होती हैं, लेकिन जमीन पर गायब रहती हैं। प्रशासनिक अधिकारियों की सजगता की जगह संबंध और सुविधा शुल्क काम करता है। निरीक्षण के नाम पर औपचारिकता ढहती है और बीते हुए हादसे केवल याद बनकर रह जाते हैं। नाइट क्लब तक पहुंचने का रास्ता इतना संकरा है कि फायर ब्रिगेड की गाड़ियों को 400 मीटर दूर खड़ा होना पड़ा। सजावट के लिए ताड़ के सूखे पत्तों का इस्तेमाल किया गया था, जिसने आग और भड़का दी। भीड़भाड़ वाली जगहों पर एंट्री से ज्यादा महत्वपूर्ण इमरजेंसी एग्जिट पॉइंट्स होते हैं, लेकिन इस क्लब में लगता है कि इसकी भी कोई व्यवस्था नहीं थी, जिससे कई लोग भटक कर किचन में पहुंच गए, जहां से बाहर निकलने का रास्ता नहीं था। यह नाइटक्लब बिना मंजूरी के चल रहा था। लोकल अथॉरिटी के मुताबिक, निर्माण अवैध था।

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हादसे के शिकार :

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अजीब विडंबना यह है कि हादसे के शिकार गरीब या आम नागरिक होते हैं, लेकिन इस त्रासदी से गुजरी व्यवस्थाओं को कोई चोट नहीं लगती। वे फिर उठते हैं, नए सजावटी बोर्ड लगा लेते हैं और जनता को फिर से आकर्षित कर लेते हैं। व्यवस्था में भ्रष्टाचार और मानव-मूल्यों का हृास दोनों मिलकर ऐसी घटनाओं को जन्म देते हैं। यह केवल प्रशासनिक नाकामी नहीं, बल्कि सामूहिक नैतिक हृास भी है। आयोजक केवल लाभ देखते हैं, प्रशासन केवल कागजों पर निशान देखता है,समाज घटना को क्षणिक दुख समझकर भूल जाता है। वैश्विक स्तर पर देखें तो किसी भी विकसित या उत्तरदायी समाज में जन-स्थलों पर सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है। नियमित निरीक्षण, कठोर दंड, मानकों का अनिवार्य पालन और पारदर्शिता बुनियादी तत्व हैं। भारत में ये मानक केवल कानूनी पुस्तकों में रहते हैं। सवाल यह नहीं कि हादसे क्यों होते हैं, सवाल यह है कि सीख क्यों नहीं ली जाती।

हादसा एक चेतावनी :

गोवा का यह हादसा एक चेतावनी है, अकेले गोवा के लिए नहीं, बल्कि पूरे देश के लिए। गोवा के जीडीपी में पर्यटन का हिस्सा 16 प्रतिशत से ज्यादा है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, पिछले साल की तुलना में इस साल जनवरी से सितंबर के बीच 6.23 प्रतिशत ज्यादा टूरिस्ट गोवा पहुंचे। ऐसे में यह घटना राज्य की अच्छी छवि पेश नहीं करती, जहां पहले ही टैक्सी चालकों की मनमानी और पर्यटकों के साथ अभद्रता की कुछ समस्या रही है। यदि घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकनी है, तो कुछ कठोर कदम उठाने होंगे, जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई, वास्तविक निरीक्षण प्रणालीए भ्रष्टाचार पर अंकुश और सुरक्षा मानकों के उल्लंघन पर दंड। आज इस त्रासदी के बाद शोक जताना पर्याप्त नहीं है। इस पर गंभीर चिंतन जरूरी है। हम केवल जिम्मेदारी टाल देने की प्रवृत्ति में नहीं जी सकते। हर हादसा हमें यही याद दिलाता है कि सुरक्षा संस्कृति, जिम्मेदार शासन और नैतिक व्यवसायिक आचरण के बिना कोई भी समाज सुरक्षित नहीं हो सकता। यह घटना केवल 25 लोगों की मौत नहीं, बल्कि चेतावनी है कि यदि हमने नहीं सीखा, तो अगली त्रासदी निकट ही खड़ी है।

-ललित गर्ग
यह लेखक के अपने विचार हैं।

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