राजस्थान दिवस विशेष : गौरवपूर्ण है वीरभूमि राजस्थान का स्थापना दिवस 

बीकानेर रियासतों का विलय होकर बना राजस्थान संघ

राजस्थान दिवस विशेष : गौरवपूर्ण है वीरभूमि राजस्थान का स्थापना दिवस 

नवंबर 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ।

राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 के दिन जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर  राजस्थान संघ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। राजस्थान हमेशा से ही भारत के लिए प्रमुख राज्य रहा है, क्योंकि राजस्थान में कई वीरों ने जन्म लिया था। कई वीरों की गाथा राजस्थान को वीरों की भूमि कहे जाने की ओर प्रेरित करती है। आतो सुरगां न सरमावे, इ पर देव रमण न आवे ईरो जस नर नारी गावे, धरती धोरां री राजस्थान जिसके कण-कण में साहस, त्याग और बलिदान की गाथा रची बसी है। जहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। अंग्रेजी कवि किप्लिंग लिखता है। कि दुनियाभर में राजस्थान एक ऐसा स्थान हैं जहां वीरों की हड्डियां मार्ग की धूल बनी हैं राज्य में वीरों की ऐसी ऐसी कथाएं हैं, जिन्हें सुनकर भी नसों में वीरभाव दौड़ने लगता है। इस धरती के सपूतों ने अपनी मिट्टी की खातिर समय समय पर बलिदान दिए है। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को राजस्थान दिवस मनाया जाता है। 30 मार्च, 1949 के दिन जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर  राजस्थान संघ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। राजस्थान हमेशा से ही भारत के लिए प्रमुख राज्य रहा है, क्योंकि राजस्थान में कई वीरों ने जन्म लिया था। कई वीरों की गाथा राजस्थान को वीरों की भूमि कहे जाने की ओर प्रेरित करती है। 

जब राजस्थान राज्य की उत्पत्ति हुई तब राजस्थान के पहले मुख्यमंत्री के रूप में हीरालाल शास्त्री को चुना गया था। शौर्य और साहस ही नहीं बल्कि हमारी धरती के सपूतों ने हर क्षेत्र में कमाल दिखाकर देश-दुनिया में राजस्थान के नाम को चांद-तारों सा चमका दिया। ब्रिटिश शासकों द्वारा भारत को आजाद करने की घोषणा करने के बाद जब सत्ता-हस्तांतरण की कार्यवाही शुरू की, तभी लग गया था कि आजाद भारत का राजस्थान प्रांत बनना और राजपूताना के तत्कालीन हिस्से का भारत में विलय एक दूभर कार्य साबित हो सकता है। आजादी की घोषणा के साथ ही राजपूताना के देशी रियासतों के मुखियाओं में स्वतंत्र राज्य में भी अपनी सत्ता बरकरार रखने की होड़ सी मच गई थी, उस समय वर्तमान राजस्थान की भौगालिक स्थिति के नजरिए से देखें तो राजपूताना के इस भूभाग में कुल बाईस देशी रियासतें थी। राजस्थान की धरती पर रणबांकुरों ने जन्म लिया है। यहां वीरांगनाओं ने भी अपने त्याग और बलिदान से मातृभूमि को सींचा है। यहां धरती का वीर योद्धा कहे जाने वाले पृथ्वीराज चौहान ने जन्म लिया, जिन्होंने तराइन के प्रथम युद्ध में मुहम्मद गोरी को पराजित किया। कहा जाता है कि गोरी ने 18 बार पृथ्वीराज पर आक्रमण किया था, जिसमें 17 बार उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। 

जोधपुर के राजा जसवंत सिंह के 12 साल के पुत्र पृथ्वी ने हाथों से औरंगजेब के खूंखार भूखे जंगली शेर का जबड़ा फाड़ डाला था। राणा सांगा का जन्म राजस्थान में हुआ था, जिन्होंने सौ से भी ज्यादा युद्ध लड़कर साहस का परिचय दिया था। पन्ना धाय के बलिदान के साथ बुलन्दा के मोहकम सिंह भी राजस्थान के थे, जिनकी रानी बाघेली का बलिदान भी अमर है। जोधपुर के राजकुमार अजीत सिंह को औरंगजेब से बचाने के लिए वे अपनी नवजात राजकुमारी की जगह छुपाकर लाई थीं। 18 मार्च, 1948 को अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली रियासतों का विलय होकर मत्स्य संघ बना। धौलपुर के तत्कालीन महाराजा उदयसिंह राजप्रमुख व अलवर राजधानी बनी। 25 मार्च, 1948 को कोटा, बूंदी, झालावाड़, टोंक, डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़, किशनगढ़ व शाहपुरा का विलय होकर राजस्थान संघ बना। 18 अप्रेल 1948 को उदयपुर रियासत का विलय। नया नाम संयुक्त राजस्थान संघ रखा गया। उदयपुर के तत्कालीन महाराणा भूपाल सिंह राजप्रमुख बने। 30 मार्च, 1949 में जोधपुर, जयपुर, जैसलमेर और बीकानेर रियासतों का विलय होकर राजस्थान संघ बना था। यही राजस्थान की स्थापना का दिन माना जाता है। 26 जनवरी, 1950 को सिरोही रियासत को भी वृहत्तर राजस्थान संघ में मिलाया गया।

नवंबर, 1956 को आबू, देलवाड़ा तहसील का भी राजस्थान में विलय हुआ, मध्य प्रदेश में शामिल सुनेल टप्पा का भी विलय हुआ। प्रत्येक वर्ष 30 मार्च को राजस्थान  स्थापना दिवस मनाया जाता है। इस दिन पूरे राजस्थान में तरह-तरह के कार्यक्रम किए जाते है। सभी सरकारी डिपार्टमेंटो में राजस्थान दिवस मनाया जाता है और मिठाइयां बांटी जाती है। राजस्थान राज्य के स्थापना दिवस के अवसर पर 30 मार्च की शाम को जयपुर स्थित जनपथ पर राजस्थान दिवस समारोह के तहत कई तरह के रंगारंग कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इनके अलावा लोक कलाकारों द्वारा प्रस्तुतियां, साउंड व लाइट शो भी आयोजित किए जाते है। इस दौरान पुलिस के घोड़ों और ऊंटों का एक जुलूस भी निकाला जाता है। समारोह का समापन डांस ग्रुप द्वारा वंदे मातरम की प्रस्तुति के साथ होता है। यहां के किलो की दीवारों पर पुरानी संस्कृति एवं कला दिखती है। प्राचीन समय में जब राजा महाराजा हाथी की सवारी करते हुए शहरों का भ्रमण करते थे तब उनको देखने के लिए चारों तरफ की जनता एकत्रित हो जाती थी। आज राजस्थान के किले राजस्थान की संस्कृति एवं कला को देश-विदेशों में पसंद किया जाता है। हम सभी लोगों को यह कोशिश करनी चाहिए कि हम हमारे राजस्थान को बेहतर से बेहतर बनाए रखने का ध्यान रखें। 
-प्रकाश चंद्र शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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