अमेरिका ही नहीं, दुनिया सबक ले
दुनिया की नंबर एक महाशक्ति भी कुदरत के रौद्र के सामने बौनी ही साबित हुई
न केवल अमेरिका के इतिहास में बल्कि दुनिया के इतिहास में यह जंगल की आग सबसे भयावह, सर्वाधिक विनाशकारी एवं डरावनी साबित हुई है।
अमेरिका के लॉस एंजेलिस में जंगल की बेकाबू आग फेलने, भारी तबाही, महाविनाश और भारी जन-धन की क्षति ने साबित किया है कि दुनिया की नंबर एक महाशक्ति भी कुदरत के रौद्र के सामने बौनी ही साबित हुई है। न केवल अमेरिका के इतिहास में बल्कि दुनिया के इतिहास में यह जंगल की आग सबसे भयावह, सर्वाधिक विनाशकारी एवं डरावनी साबित हुई है। आग धीमी होने का नाम नहीं ले रही है। बल्कि और तेजी से बढ़ती जा रही है और इसका कारण 160 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से चलने वाली हवाएं हैं। ये हवाएं इस आग को और भड़का रही हैं, तबाही का मंजर बन रही है, जिसे रोकना अमेरिका प्रशासन के लिए एक चुनौती बन गया है। अमेरिकी सेना के सी-130 विमान और फायर हेलीकॉप्टर हर संभव कोशिश कर रहे हैं। लेकिन हवा की गति और आग की लपटों की ताकत के आगे दुनिया की सबसे बड़ी ताकत के तमाम प्रयास नाकाफी एवं बेबस साबित हो रहे हैं। अनियंत्रित विकास, पर्यावरण की घोर उपेक्षा एवं भौतिकतावादी सोच इस आग का बड़ा कारण है। खरबों रुपये की संपत्ति और प्राकृतिक संपदा के नष्ट होने के अलावा करीब दो लाख लोगों को विस्थापित होना पड़ा है। आलीशान बंगलों, सरकारी संरचना तथा नागरिक सुविधा के साधनों के स्वाह होने के साथ करीब 24 लोगों के मारे जाने की खबर है। करीब दो लाख लोगों को घर-बार छोड़कर जाने के लिए तैयार रहने को कहा गया है। अमेरिका संस्कृतिविहीन देश बनता जा रहा है। यह राष्ट्र भौतिक विकास, पर्यावरण उपेक्षा एवं शस्त्र संस्कृति पर सवार है। वहां के नागरिक अपने पास जितने चाहें, उतने भौतिक संसाधन रख सकते हैं।
सुविधावादी जीवनशैली के शिखर एवं तमाम सुरक्षा परिस्थितियों में जीने के बावजूद यह देश आज कितना असहाय एवं बेबस है। विकास की बोली बोलने वाला, विकास की जमीन में खाद एवं पानी देने वाला, दुनिया में आधुनिकता, तकनीक एवं विकास की आंधी लाने वाला अमेरिका जब खुद ऐसी भीषण आग की तबाही का शिकार होने लगा तो उसकी नींद टूटी हैं, उसे अपनी असलियत का पता लगा। वहां के आधुनिक तकनीक से लेस दमकल विभाग व सुरक्षा बलों की तमाम कोशिशों के बावजूद आग बेकाबू है। लोग असहाय होकर अपनी जीवन भर की पूंजी को स्वाह होते देख रहे हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते तल्ख होते मौसम से हालात और खराब होने की आशंका जताई जा रही है। आग के बाद का जो मंजर नजर आ रहा है उसे देखकर ऐसा लगता है मानो कोई बम गिराया गया हो। विडंबना यह है कि आपदा में अवसर तलाशने वाले कुछ लोग खाली कराए गए घरों में लूटपाट से भी बाज नहीं आ रहे हैं। हॉलीवुड हिल्स इलाके में करीब साढ़े पांच हजार से अधिक इमारतों के नष्ट होने की खबर है।
कई नामी फिल्मी हस्तियों के घर, जैसे बिली क्रिस्टल, मैंडी मूर, जेमी ली कर्टिस और पेरिस हिल्टन शामिल हैं एवं व्यावसायिक इमारतें व सार्वजनिक संस्थान आग की भेंट चढ़े हैं। अमेरिका ने आज दुनिया में प्रकृति के दोहन और हिंसा की जो संस्कृति दुनिया में फैलाई, आज वह स्वयं उसका शिकार है। अमेरिका के इतिहास में यह जंगल की आग सबसे भयावह साबित हुई है। चिंता की बात यह है कि इलाके में हाल-फिलहाल बारिश होने की संभावना नहीं है, जिससे जंगल की आग जल्दी काबू में आ सकती। दरअसल यह आग लॉस एंजेलिस के उत्तरी भाग में लगी, जिसने बाद में कई बड़े शहरों को अपनी चपेट में ले लिया। तेज हवाओं व सूखे मौसम के कारण आग ज्यादा भड़की है। सूखे पेड़-पौधे तेजी से आग की चपेट में आ गए। हालांकि, आग लगने का ठोस कारण अभी तक पता नहीं चला है। हकीकत है कि जंगलों में 95 फीसदी आग इंसानों द्वारा ही लगाई जाती है। वैसे जलवायु परिवर्तन प्रभावों के चलते बदले हालात में अब पूरे साल आग लगने की आशंका बनी रहती है।
पैलिसेड्स में 20 हजार एकड़, ईटन में 14 हजार एकड़, कैनेथ में 1000 एकड़, हर्स्ट में 900 एकड़, लिडिआ में 500 एकड़ में आग फैली है। इन इलाके में राख के बारीक कणों व धुएं की चादर के कारण स्थानीय स्वास्थ्य इमरजेंसी घोषित की गई है। लॉस एंजलिस की इस आग ने न केवल जीवन और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया है, बल्कि सूखे और जलवायु परिवर्तन के प्रति गंभीर चेतावनी भी दी है। इससे निपटने के लिए दीर्घकालिक समाधान तलाशना बेहद जरूरी है। आज अमेरिका विकास की चरम अवस्था पार कर चुका है। यह आशंका सदैव बनी रही है कि अनियंत्रित विकास एवं प्रकृति विनाश के प्रति समय रहते नहीं चेतने की कीमत सृष्टि के विनाश एवं मानवता के धंस से चुकानी होती है, धरती का पर्यावरण नष्ट हो जाता है।
धरती पर मंडराते इसी संकट का प्रतीक है यह आग। बात बहुत ही सीधी सी है कि जब तक प्रकृति डराती नहीं विकास की राहें ऐसे ही बेतहाशा एवं अनियंत्रित आगे बढ़ती रहती हैं। किंतु जब प्रकृति मुस्कुराना भूल जाए तो वह विकास, विकास नहीं रहता। वहां कृत्रिमता दस्तक देने लगती है, धरती करवट बदलने लगती है, अम्बर चीत्कार कर उठता है तब मनुष्य को समझ लेना चाहिए कि अब विनाश की पदचाप सुनाई देने लगी हैं। अपनी राहें सुरक्षित रखने के वास्ते राहों को मोड़ने पर विचार करना चाहिए। वरना विनाश का दावानल अमेरिका की आग की तरह सब कुछ राख कर देता है। इस आग से अमेरिका ही नहीं, समूची दुनिया को सबक लेने की जरूरत है।
-ललित गर्ग
यह लेखक के अपने विचार हैं।
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