कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद फिर सुर्खियों में

यह अभी तक हल नहीं हो सका 

कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद फिर सुर्खियों में

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है।

महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद दशकों पुराना है। लगातार कोशिशों के बाद भी जब जब दोनों राज्यों में एक ही पार्टी की सरकारें थी तब भी स्थिति जस की तस बनी रही, जब कभी ऐसा समय आया जब दोनों प्रदेशों में अलग अलग दलों की सरकारें थी तब तब यह विवाद रुक रुक कर उभरता रहा है। पिछले दिनों राज्य के मराठी भाषी बहुल जिलेबेलगवी, जिसका पुराना नाम बेलगाम था के मुख्यालय में एक छोटी सी घटना के चलते यह सीमा विवाद एक बार कई दिन तक सुर्खियों में बना रहा, हुआ यों था कि नगर में चलने वाली सरकारी बसों में मराठी भाषा बोलने  वाले दो छात्रों की बस के कंडक्टर से झड़प हो गई, मामला मुक्के, घूसों में बदल गया। थोड़े ही समय में तनाव सा बन गया। छात्रों का कहना था कि राज्य के इस इलाके में मराठी भाषा के अलावा और कोई भाषा नहीं चलेगी। कंडक्टर कन्नड़ भाषी था तथा उसे  मराठी भाषा नहीं आती थी, इसके साथ  ही उसका यह कहना था कि कन्नड़ मुख्य भाषा है, इसलिए यह भाषा सबको  आनी चाहिए और बोलनी भी चाहिए। अगले ही दिन यह विवाद आस पास के मराठी इलाकों में फैल गया तथा पुलिस  को स्थिति सामान्य करने में काफी समय लग गया।1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने तब बम्बई प्रान्त को दो हिस्सों महाराष्ट्र और गुजरात में बांट दिया था। 

नए बने   महाराष्ट्र की सीमा तब के मैसूर, जो बाद में कर्नाटक हो गया, राज्य से लगती  थी। महाराष्ट्र का कहना था कि आयोग ने बिना किसी भाषाई आधार पर 892  गांव कर्नाटक को दे दिए। राज्य की  सरकार तथा अधिकतर दलों का कहना था यह सब इलाके महाराष्ट्र को मिलने चाहिए, जबकि कर्नाटक की हर सरकार का दावा था, अगर बड़े रूप से देखा जाए तो इन इलाकों में मराठी भाषी बड़ी संख्या में जरूर हैं, लेकिन आधी से अधिक आबादी कन्नड़ ही बोलती है,  बाद में महाराष्ट्र की शिव सेना जैसी  पार्टियों ने इस इलाके में महाराष्ट्र एकीकरण समिति का गठन किया। इस समिति ने नेतृत्व में ही लम्बे काल तक इस इलाके को महाराष्ट्र में विलय करने का आन्दोलन चलाया। आखिर केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के रिटायर मुख्य न्यायाधीश महाजन के नेतृत्व में एक  सदस्य वाला आयोग गठित किया। 

आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह स्वीकार किया कि बहुत से मराठी बहुल इलाकों को बिना किसी आधार के कर्नाटक में शामिल कर दिया गया है। आयोग ने सिफारिश की कि इस इलाके के 264 गांवों को महाराष्ट्र में शामिल किया जाए। कर्नाटक ने इस सिफारिश को लागू करने से इंकार कर दिया तथा आयोग की रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। उधर महाराष्ट्र भी आयोग की सिफारिशों से संतुष्ट नहीं था वहां की सरकार का कहना था कि उसे सभी 892 मराठी भाषी गांव मिलने चाहिए। मामला अभी बीच में ही लटका पड़ा है। राज्यों के आपसी विवाद हल करने के लिए बनी अंतर राज्य परिषद् में एक दर्जन से भी अधिक बैठकों में इस मुद्दे  पर चर्चा हो चुकी है, लेकिन कोई ऐसा  हल नहीं निकल पाया जो दोनों पक्षों में   स्वीकार हो। महाराष्ट्र एकीकरण समिति के आन्दोलन के चलते मराठी भाषी लोगों  की कई मांगे स्वीकार कर ली गई हैं, जैसे बंगलुरु में विधानसभा भवन और सचिवालय की तर्ज पर बेलगवी में भी विधानसभा भवन बनाया गया है, साल में एक बार विधान सभा का एक सत्र यहां होता है। 

हालांकि इन कदमों के बाद महाराष्ट्र एकीकरण समिति का आन्दोलन ठंडा सा पड़ गया, लेकिन  खत्म नहीं हुआ। एक समय था जब इस  जिले की सभी 6 विधानसभा सीटों पर महाराष्ट्र एकीकरण समिति के उम्मीदवार ही जीतते थे। अभी भी सभी सीटों पर  मराठी भाषी उम्मीदवार ही जीतते हैं पर यह बात अलग है कि वे या तो कांग्रेस पार्टी के होते हैं या फिर बीजेपी के चुनाव अभियान के लिए अभी भी  महाराष्ट्र के नेता ही यहां आते हैं। सरकार ने वायदा किया था कि यहां बने विधानसभा भवन में बेंगलुरु की तरह से पूरा सचिवालय बनेगा। अधिकारियों को यहां नियुक्त किया जाएगा, लेकिन यह प्रस्ताव कभी भी सही मायनों में यहां लागू नहीं हो सका। इसी के चलते इन इलाकों को महाराष्ट्र में मिलाने की मांग बीच बीच में उठती रहती है, लेकिन कभी भी बड़े आन्दोलन का रूप नहीं ले सकी।

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(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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