2025 तक टीबी मुक्त हो पाएगा राजस्थान
राज्य में ज्यादातर मामले फेफड़ों की टीबी के हैं, लेकिन एमडीआर टीबी भी स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट बनी हुई है।
राज्य में सक्सेस रेट 84.7 प्रतिशत है, लेकिन फिर भी टीबी से पीड़ित तीन प्रतिशत लोग प्रति वर्ष मौत के मुंह में चले जाते हैं।
पूरी दुनिया में अनेक बीमारियों में मानव इतिहास की सबसे पुरानी बीमारी कही जाने वाली तपेदिक यानी टीबी भी है। राजस्थान भी टीबी की बीमारी की चुनौती का सामना कर रहा है। टीबी का इलाज उपलब्ध है, फिर भी राज्य में अन्य सभी संक्रामक बीमारियों की तुलना में टीबी उन्मूलन के लिए खूब पसीना बहाना पड़ रहा है। पूरे देश की भांति राजस्थान में भी टीबी की जड़ें बहुत पुरानी और गहरी हैं। विश्व के 26 प्रतिशत टीबी मरीज भारत में हैं और इनमें से छह फीसदी राजस्थान में हैं जिससे टीबी उन्मूलन लंबे समय से चुनौती बना हुआ है। सरकार ने इसके लिए व्यापक कदम उठाए हैं पर इस बीमारी के बारे मेंं आज भी जरूरी जागरूकता का अभाव, संक्रमण से बचने के तौर-तरीकों की जानकारी न होने और रोगियों के समुचित इलाज के प्रति समुदाय में व्याप्त भ्रांतियां, लापरवाही और अंध विश्वास टीबी उन्मूलन में बाधा बने हुए हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वर्ष 2030 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा तो उससे भी आगे बढ़कर भारत ने 2025 तक टीबी को खत्म करने का लक्ष्य तय कर लिया। केन्द्र सरकार के लक्ष्य के तहत राजस्थान में व्यापक स्तर पर काम आरंभ कर दिया गया, लेकिन यहां टीबी के नए मामले कम होने के बजाय लगातार बढ़ते जा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में वर्ष 2015 में एक लाख 2032 मरीज पाए गए थे, जो वर्ष 2016 में बढ़कर एक लाख 6756 हो गए। इसी प्रकार वर्ष 2023 में बढ़कर एक लाख 69 हजार 522 हो गई है।
राज्य में ज्यादातर मामले फेफड़ों की टीबी के हैं, लेकिन एमडीआर टीबी भी स्वास्थ्य के लिए बड़ा संकट बनी हुई है। यह टीबी का एक ऐसा प्रकार है, जिस पर दवाओं का कोई असर नहीं होता। राज्य मेंं हर साल एमडीआर टीबी के करीब डेढ़ हजार रोगी सामने आ रहे हैं। प्रदेश में प्रति एक लाख लोगों में से 209,3 लोग टीबी से जूझ रहे हैं। टीबी का सर्वाधिक प्रकोप राज्य के ग्रामीण एवं गरीब व वंचित वर्ग के लोगों को झेलना पड़ रहा है। वैसे तो राज्य का कोई जिला टीबी से अछूता नहीं है लेकिन जयपुर, अजमेर,अलवर, बांसवाड़ा, भरतपुर, भीलवाड़ा, बीकानेर, डूंगरपुर, हनुमानगढ़, श्रीगंगानगर, जोधपुर, करौली, कोटा, नागौर, टोंक , उदयपुर और सीकर जिलों में सर्वाधिक मरीज सामने आ रहे हैं। आदिवासी बहुल बांसवाड़ा,डूंगरपुर जिलों में टीबी रोग चुनौती बना है । वहां से सर्वाधिक पलायन होता है। पलायन के कारण चिन्हित रोगियों का उपचार नहीं हो रहा है।
राजस्थान में टीबी के उपचार की सफलता की दर बढ़ी है। राज्य में सक्सेस रेट 84.7 प्रतिशत है, लेकिन फिर भी टीबी से पीड़ित तीन प्रतिशत लोग प्रति वर्ष मौत के मुंह में चले जाते हैं। वर्ष 2021 में टीबी के कारण 4852 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा है। ये मौतेंं इलाज शुरू करने में देरी के कारण हो रही हैं। महंगी दवाइयों एवं जांचों पर सरकार हर साल करोड़ों रुपये व्यय कर रही है , लेकिन हर साल बड़ी संख्या मेंं नए रोगी मिलना और टीबी से मौतें होना स्थिति की गंभीरता को दर्शाता है। ऐसे यहां सवाल उठता है कि क्या राजस्थान को 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य अर्जित किया जा सकेगा? जरूरी संसाधनों की कमी, ग्रामीण क्षेत्र में खराब स्वास्थ्य ढांचा, गरीबी, पोषण की कमी, अंध विश्वास ऐसे कारण हैं, जो टीबी पर विजयी प्राप्त नहीं होने दे रहे। अतिरिक्त प्रयासों से ही टीबी का अंतिम अध्याय लिखा जा सकता है। उधर, राज्य सरकार का दावा है कि प्रदेश को टीबी मुक्त करने के लिए व्यापक काम किया जा रहा है। गांवों को टीबी मुक्त करने और ग्राम पंचायत स्तर तक रोगियों को चिन्हित कर उपचार करने के लिए टीबी मुक्त ग्राम पंचायत अभियान चलाया जा रहा है। राजस्थान में गत वर्ष राज्य की ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त करने के लिए 7 हजार ग्राम पंचायतों में टीबी मुक्त ग्राम पंचायत अभियान का दूसरा चरण शुरू किया गया। इस वर्ष 9328 पंचायतों में यह अभियान चलाया जाएगा। अगले वर्ष शेष सभी पंचायतों में यह अभियान चलेगा। वर्ष 2022 में टीबी उन्मूलन की दिशा में उल्लेखनीय कार्य के लिए आठ जिलों को सब नेशनल सर्टिफिकेट आॅफ टीबी एलिमिनेशन अवार्ड प्रदान कर सम्मानित किया गया है। राज्य की 29 ग्राम पंचायतों को टीबी मुक्त घोषित किया गया है। टीबी रोगियों की पहचान करने, बेहतर इलाज देने और उनकी वित्तीय सहायता करने के मामले में राजस्थान गत वर्ष देश भर में चौथे नंबर पर आ पहुंचा है। संक्रमित मरीजों की जांच, दवा व जांच इत्यादि पर होने वाले खर्च और छह साल तक की उम्र के छोटे बच्चों में टीबी प्रिवेन्टिव थैरेपी जैसे 9 इंडेक्स में प्रदेश ने उल्लेखनीय कार्य किया है,लेकिन वर्ष 2025 तक राज्य को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य अभी काफी दूर ही नजर आ रहा है। राज्य में टीबी केस इसलिए ज्यादा रिपोर्ट हो रहे हैं क्योंकि राज्य में टीबी रोगियों की सूचनाएं दर्ज करने में प्रगति हुई है। निजी स्वास्थ्य प्रदाताओं को बड़े पैमाने पर मुहिम से जोड़कर सक्रिय टीबी मामलों का पता लगाया जा रहा है।
- अमरपाल सिंह वर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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