हिंसक उपद्रव

एक टीवी डिबेट में पैगम्बर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद देश के अलग-अलग शहरों में जिस स्तर पर हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए हैं उन्हें लेकर सभी समुदायों में चिंता पैदा होनी चाहिए।

हिंसक उपद्रव

एक टीवी डिबेट में पैगम्बर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद देश के अलग-अलग शहरों में जिस स्तर पर हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए हैं उन्हें लेकर सभी समुदायों में चिंता पैदा होनी चाहिए। टीवी डिबेट के दौरान बयानों से जो गलत फहमियां फैल गई हैं उन्हें तो अब तक शांत हो जाना चाहिए था, क्योंकि भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि उन बयानों से उसका कोई लेना-देना नही है और किसी से विवादित बयान दिए हैं, तो संबंधित संस्थाओं ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कर दी है।

एक टीवी डिबेट में पैगम्बर मोहम्मद के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणी को लेकर शुक्रवार को जुम्मे की नमाज के बाद देश के अलग-अलग शहरों में  जिस स्तर पर  हिंसक विरोध-प्रदर्शन हुए हैं उन्हें लेकर सभी समुदायों में चिंता पैदा होनी चाहिए। टीवी डिबेट के दौरान बयानों से जो गलत फहमियां फैल गई हैं उन्हें तो अब तक शांत हो जाना चाहिए था, क्योंकि भारत सरकार ने साफ कर दिया है कि उन बयानों से उसका कोई लेना-देना नही है और किसी से विवादित बयान दिए हैं, तो संबंधित संस्थाओं ने उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई कर दी है। फिर भी समुदाय विशेष के लोगों ने उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, गुजरात, बिहार, झारखण्ड और महाराष्ट्र के अलावा जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में विरोध प्रदर्शन हुए हैं। विरोध प्रदर्शन लोकतांत्रिक तरीके से शांतिपूर्ण होते तो कोई बात नहीं होती, लेकिन विरोध प्रदर्शन के दौरान पत्थरबाजी और आगजनी जैसी हिंसक कार्रवाई की जाती है तो यह देश के कानून के राज को एक तरह की खुली चुनौती है, जिसे कोई भी सभ्य समाज स्वीकार और बर्दाश्त नहीं कर सकता। नि:संदेह कानून एवं व्यवस्था राज्यों का विषय है, लेकिन बीते दो दिनों घटनाओं ने आंतरिक सुरक्षा के समक्ष गंभीर किस्म के नए खतरे पैदा करने के साथ जिस तरह देश की छवि को भी प्रभावित किया है, उसे देखते हुए केन्द्र सरकार को भी सजगता और सख्ती का परिचय देना होगा। इसमें संदेह नहीं कि बीते दिनों की घटनाएं और उसके पहले कानपुर में जो कुछ हुआ, उससे पता चलता है कि इन हिंसक उपद्रवों के पीछे कोई सुनियोजित साजिश हैं। मस्जिदों में हजारों लोगों के लिए नमाज पढ़ने की जगह नहीं है, तो फिर नमाजों के बाद हजारों लोगों की अचानक भीड़ कैसे जुट गई? उनके पास पत्थर कहां से आए? साजिश में शामिल देश विरोधी तत्वों की जल्द से जल्द धरपकड़ कर एक तय अवधि में उन्हें कठोर सजा दी जानी चाहिए। कुछ राज्यों की सरकारें अपने राजनीतिक स्वार्थों के लिए शायद अपराधी तत्वों के साथ नरमी बरते, तो केन्द्र को सख्ती से हस्तक्षेप करना चाहिए। अपनी साजिशपूर्ण हरकतों से सामाजिक सद्भाव में दरार डालने की कोशिश करने वाले असामाजिक तत्वों के साथ नरमी बरतना एक प्रकार से कानून एवं व्यवस्था को जान बूझकर खतरे में डालने का काम होगा। लोगों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन आतंक मचाने व उत्पात मचाने का अधिकार नहीं है। ऐसी घटनाओं पर सख्त अंकुश बनाए रखने की जरूरत है।

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