अब भवन निर्माण में फ्लाई ऐश ईंट नहीं लगाई तो देना होगा जुर्माना

75 रुपए प्रति वर्ग फीट से देना होगा पर्यावरण कर, हर साल 20 अरब घन फीट उपजाऊ मिट्टी ईंट बनाने में हो रही बर्बाद

 अब भवन निर्माण में फ्लाई ऐश ईंट नहीं लगाई तो देना होगा जुर्माना

थर्मल से निकलने वाली फ्लाई ऐश तैयार की गई ईंटों का भवन निर्माण में उपयोग नहीं करने पर पर्यावरण कर देना होगा।

कोटा। थर्मल से निकलने वाली फ्लाई ऐश तैयार की गई ईंटों का भवन निर्माण में उपयोग नहीं करने पर पर्यावरण कर देना होगा। सरकार ने पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देने और फ्लाई ऐश का अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए फ्लाई ऐश का भवन निर्माण में उपयोग अनिवार्य कर दिया है। अब यदि भवन निर्माण में फ्लाई ऐश का उपयोग नहीं किया तो भवन निर्माता को 75 रुपए वर्ग फीट के हिसाब से जुर्माने के रूप में पर्यावरण कर देना होगा। उल्लेखनीय है कि थर्मल से निकलने वाली फ्लाई ऐश  अब युवाओं को रोजगारमुखी बनाने में मदद कर  रही है। कोरोना काल में कई युवाओं को फ्लाई ऐश ने रोजगार दिया। वहीं पर्यावरण संरक्षण में फ्लाई ऐश अहम भूमिका निभा रही  है। पर्यावरण संरक्षण को देखते हुए पहले ही वन व नदी क्षेत्रों से सर्वोच्च न्यायालय ने मिट्टी खनन और बजरी पर रोक लगा रखी थी। ऐसे में मिट्टी से बनी लाल ईंटों के प्लांट धीरे-धीरे बंद हो रहे हैं। मिट्टी से बनी इन लाल ईंटों से पर्यावरण को नुकसान होता है। इसमें कृषि योग्य उपजाऊ मिट्टी का इस्तेमाल ईंट बनाने में किया जाता है। जिससे उपजाऊ मिट्टी नष्ट हो रही है। इसको देखते हुए सरकार ने कोटा के नांता क्षेत्र में  पर्यावरण रीको क्षेत्र बनाकर यहां फ्लाई ऐश प्लांट लगाए हैं। लाल र्इंट से फ्लाई ब्रिक्स सस्ती होने से इसकी मांग बढ़ रही है। सरकारी भवनों के निर्माण में तो इसको अनिवार्य किया हुआ है। मांग को देखते हुए  फ्लाई ऐश ब्रिक्स का प्लांट आने वाले सालों में कामयाब बिजनेस  साबित हो सकता है। फ्लाई ऐश ब्रिक्स के लिए फ्लाईएस थर्मल पावर हाउस से निकलने वाली फ्लाईएस से बनती है। इनकी खास बात यह होती है कि यह सामान्य लाल ईंटों से सस्ती होती है। और इन ईंटो से घर बनाते समय सीमेंट का खर्चा भी काफी कम हो जाता है। जिससे इसकी मांग बढ़ी है।

हर साल मुंबई शहर के बराबर मिट्टी हो जाती है बर्बाद
रीको पर्यावरण इंडस्ट्रीयल एरिया अध्यक्ष संजय शर्मा ने बताया कि  प्रतिवर्ष देश में लगभग 20 अरब घन फीट उपजाऊ मिट्टी को लगभग 10 मिलियन र्इंट भट्टों में र्इंट बनाने में बर्बाद कर दिया जाता है जो कि लगभग 500 हैक्टेयर भूमि (मुंबई शहर के) के बराबर है। यदि उपजाऊ मिट्टी का इसी तरह बर्बाद होती रही तो देश में फसल उगाने व जानवरों के लिए चारा उगाने की भूमि भी नहीं बचेगी।

लाल र्इंटो से बढ़ रहा प्रदूषण
मिट्टी की  र्इंट निर्माण में भारत विश्व का दूसरा सबसे ज्यादा कोयला उपयोग करने वाला देश है, जहां लगभग 35 मिलियन टन कोयला प्रति वर्ष र्इंट भट्टों में काम लिया जाता है । जिसकी वजह से लगभग 90 मिलियन टन कार्बन डाईआॅक्साइड, सल्फर डाईआॅक्साइड व नाइट्रोजन आॅक्साइड, नाइट्रोजन मोनो आॅक्साइड गैस से हमारे देश में प्रदूषण फैलाकर वातावरण के टैंपरेचर को असंतुलित कर रही है। इसलिए पर्यावरण मंत्रालय ने फ्लाई ऐश को भवन निर्माण में अनिवार्य किया है।

35 प्लांट  बना रहे फ्लाई ऐश ब्रिक्स
शहर के नांता क्षेत्र में पर्यावरण रीको इंड्रस्ट्रीयल एरिया में करीब 30 से अधिक फ्लाई ऐश ब्रिक्स बनाने के प्लांट लगे हुए हंै। यहां एक प्लांट में दो से तीन मशीनें लगी हुई है। एक मशीन में प्रतिदिन 50 हजार र्इंटे तैयार होती है। प्रतिदिन करीब 40 लाख से अधिक र्इंटें इन प्लांट में तैयार हो रही है। लागत कम से लोगों के बजट में आ रही है।

800 मजदूरों को मिल रहा रोजगार
नांता क्षेत्र में करीब 35 से अधिक प्लांट लगे हुए हैं। एक प्लांट में 25 से 30 मजदूर काम कर रहे हैं। एक मजदूर को 100 र्इंटो के पट्टा जमाने के लिए 20 से 22 रुपए मिलते हैं। करीब 800 मजदूर व उनके परिवार को रोजगार मिल रहा है। प्लांट में इंटर लॉक्स टाइल्स के अलावा कई उत्पादन बन रहे जिसकी बाजार में काफी मांग है।

इनका कहना है
केंद्र सरकार के वन पर्यावरण मंत्रालय ने 1999 से 2019 तक विभिन्न नोटिफिकेशन के माध्यम से मिट्टी की ईंट निर्माण को रोकने व इसके स्थान पर फ्लाई ऐश की ईंट निर्माण को बढ़ावा देने का कार्य किया है। 31 दिसंबर 2021 को वन, पर्यावरण मंत्रालय ने भवन निर्माण में फ्लाई ऐश की र्इंट नहीं लगाने पर 75 रुपए वर्ग फीट का पर्यावरणीय कर लगाने का प्रावधान किया है। यह आदेश थर्मल पावर प्लांट से 300 किमी तक की दूरी के लिए सबके लिए अनिवार्य है।
-राजेंद्र सिंह, अध्यक्ष फ्लाई ऐश प्रोडक्ट मैन्युफेक्चरिंग एसोसिएशन

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