खूंखार बंदियों को सलाखों के पीछे रखने वाली जेल का उजला चेहरा सामने आया

पांच साल में सद्व्यवहार के चलते 68 बंदी रिहा, एक भी नहीं आया दोबारा

खूंखार बंदियों को सलाखों के पीछे रखने वाली जेल का उजला चेहरा सामने आया

एक भी बंदी जेल से बाहर जाने के बाद आज तक किसी छोटे मोटे अपराध में भी शामिल नहीं मिला है। सभी समाज की मुख्यधारा से जुडकर अपना सामान्य जीवन जी रहे हैं।

कोटा। खूंखार बंदियों को सलाखों के पीछे रखने वाली कोटा जेल का उजियारा पक्ष सामने आया है। रिफॉर्म के अच्छे परिणाम सामने आए हैं। पिछले पांच साल में कोटा जेल में विभिन्न गंभीर अपराधों में सजा काट रहे खूंखार बंदियों के आचरण में लगातार सुधार दर्ज  किया जा रहा है। यही कारण है कि राज्य सरकार ने पिछले पांच वर्ष में अच्छा चाल चलन होने पर 68 बंदियों को समय पूर्व ही रिहा करने के आदेश दे दिए।  इसका  अच्छा पहलू यह है कि  इनमें से एक भी बंदी जेल से बाहर जाने के बाद आज तक किसी छोटे मोटे अपराध में भी शामिल  नहीं मिला है। सभी समाज की मुख्यधारा से जुडकर अपना सामान्य जीवन जी रहे हैं। बाबूराम पुत्र गंगाराम, रामप्रसाद पुत्र हरलाल, विनोद  पुत्र बुद्ध, विष्णु पुत्र राधेश्याम, फूलचंद पुत्र उदयलाल मीणा सहित अन्य 68 बंदियों को रिफॉर्म प्रक्रिचा के तहत जेल से समय पूर्व ही रिहा कर दिया गया।  खुशी की बात है कि इनमें से एक भी बंदी अपराध की दुनिया में आकर दोबारा जेल में नहीं आया है। 

केस- 1 नाम- राम प्रसाद
सजा का कारण- हत्या का दोष सिद्ध
कहां से रिहा हुआ - कोटा केन्द्रीय कारागार
कैसे रिहा हुआ-जेल में जाने के बाद पश्चाताप हुआ। बच्चों से दूर रहने पर अपने आप को बदलने की सोच विकसित हुई। जेल के सुधारात्मक कार्यक्रमों में भाग लिया। जेल अधिकारियों ने उसे अच्छा चाल-चलन रखने की सीख दी। उसने सादा जीवन जीने का विचार किया। विनम्रता को अपनाया।  नतीजा समय पूर्व ही उसे रिहा कर दिया गया। अब में अपने समाज के साथ सामाजिक जीवन जी रहा हूं।  

केस- 2 नाम- फिरोज खान
सजा का कारण- हत्या करने का दोषी माना
कहां से रिहा हुआ - कोटा केन्द्रीय कारागार
कैसे रिहा हुआ- हत्या करने पर वर्ष 2010 में उम्रकैद की सजा हुई थी। सजा मिलने के बाद मन में भय व्याप्त हो गया और अपनी करनी पर प्रायश्चित हुआ।  जेल में नित्य कर्म, पूजा पाठ  करना शुरू किया। अच्छा व्यवहार होने से  2012 में पैरोल पर छोड़ा गया था और फिर 2014 में खुली जेल में छोड़ा गया। 2021 में रिहा कर दिया गया। अब में अपने समाज के साथ सामाजिक जीवन जी रहा हूं। 

यह रहे बंदियों के रिफार्म के कारक 
 - जेल में खूंखार बंदियों के आने के बाद उनकी दिनचर्या में परिवर्तन लाने तथा अपराध की दुनिया से बाहर निकालने के लिए नित्य योगा, मेडिटेशन, गायत्री मंत्र का उच्चारण, गीता पाठ, पूजा अर्चना आदि करवाकर अध्यात्म से जोड़ा जाता है। 
-  जेल के बंदी साक्षर ही नहीं उच्च शिक्षा तक ग्रहण कर सकते हैंं। दसवीं, 12 वीं तथा बीए एमए और डिप्लोमा आदि का कार्स इग्नू के माध्यम से कराया जाता है।  
- समाज की मुख्यधारा से जोडने के लिए कौशल विकास, हेयर कटिंग,कम्प्यूटर,टेलरिंग,गारमेंट्स,सिलाई, मसाला बनाना,साबुन,फिनाइल आदि प्रोडक्ट बनाना सिखाया जाता है। जिससे वह बाहर की दुनिया के साथ सामंजस्य बैठा सके।
- कोटा कारागार के बाहर तो पंट्रोल पंप तक लगाया गया है। यहां पंट्रोल पंप संबंदी सभी सभी काम बंदी ही करते हैं। 
- मोटिवेशनल कार्यक्रमों के साथ मनोरंजन के कार्यक्रमों में बंदियों को लगाया जाता है जिससे सकारात्मकता उर्जा का संचार होता है। 

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गठित कमेटी करती है निर्णय 
 सिद्धदोष बंदियों के बारे में राज्य सरकार द्वारा बनाई गई समितियां निर्णय लेती है इसके लिए जिला स्तर तथा संभाग स्तर पर सलाहकार मंडल समितियों का गठन किया जाता है। सिद्धदोष बंदियों का पूरा विवरण जेल प्रशासन द्वारा समिति को दिया जाता है और फिर समितियां राज्य सरकार को ऐसे बंदियों की सिफारिस भेजती है। 

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यूं रिहा हो सकते हैं बंदी समय पूर्व
सिद्धदोष बंदियों की समय पूर्व रिहाई की इस प्रक्रिया में सिद्धदोष बंदी द्वारा कारागार में उम्रकैद में कम से कम 14 साल की सजा काट चुका हो। उसका  आचरण और सद्व्यवहार अच्छा हो ।  सजा के दौरान पैरोल पर जेल से बाहर जाने के बाद सामाजिक गतिविधियों में उसका आचरण अच्छा रहा हो।  अपराध घटित करते समय क्या परिस्थिति थी। अपराध की दुनिया में संलिप्त तो नहीं होगा। इस बारे में पूरा ब्यौरा जानने के बाद राज्य सरकार को रिकमंड भेजी जाती है। 

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अपराधिक गतिविधियों का विश्लेषण 
बंदी को रिफोर्म कर उसके बारे में संबंधित पुलिस स्टेशन,समाज कल्याण विभाग और जिला प्रशासन से उसके आपराधिक मामलों के बारे में जानकारी जुटाई जाती है । यह भी देखा जाता है कि जिस बंदी को समाज के व्यावहार में भेजा जा रहा है  वह उस लायक है अथवा नहीं है। इस बारे में विश्लेषण किया जाता है। सभी परिस्थितियों का विश्लेषण के बाद राज्य सरकार को प्रस्ताव भेजा जाता है। इसके बाद अंतिम निर्णय सरकार के हाथ रहता है। 
-राजेन्द्र कुमार, जेल अधीक्षक कोटा

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