200 रुपए की रिश्वत के मामले में आरोपी बरी

एक साल की सजा से बरी करते हुए न्याय प्रदान किया

200 रुपए की रिश्वत के मामले में आरोपी बरी

राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पेश अपील को 32 साल बाद निस्तारित करते हुए अपीलकर्ता को एक साल की सजा से बरी करते हुए न्याय प्रदान किया है।

जोधपुर। राजस्थान हाईकोर्ट जोधपुर ने ट्रायल कोर्ट के आदेश के खिलाफ पेश अपील को 32 साल बाद निस्तारित करते हुए अपीलकर्ता को एक साल की सजा से बरी करते हुए न्याय प्रदान किया है। अदालत में अपीलकर्ता प्रकाश मनिहार के अधिवक्ता एमएस राजपुरोहित ने पैरवी की। अधिवक्ता ने कहा कि वर्ष 1982 में अपीलकर्ता सहायक इंजीनियर आरएसईबी गंगरार में कार्यरत था। इस दौरान एक शिकायत पर एसीबी चित्तौडगढ़ ने 4 मार्च 1982 को महज 200 रुपए रिश्वत के आरोप में गिरफ्तार किया था। एसीबी कोर्ट ने मामले पर करीब 10 साल बाद फैसला सुनाते हुए दोषी करार देते हुए एक साल की सजा के आदेश दिये थे। इसके खिलाफ हाईकोर्ट जोधपुर मुख्यपीठ में अपील पेश की गई थी।

32 साल लगे हाईकोर्ट में
हाईकोर्ट में पिछले 32 साल से अपील विचाराधीन है, लेकिन मुकदमे का निस्तारण नहीं हो पाया। अधिवक्ता ने कहा कि न्याय में देरी के लिए सुना था, लेकिन इस मामले में तो 32 साल से अपीलार्थी चक्कर काट रहा है, जबकि ट्रायल कोर्ट ने दोषी करार देते हुए समय एसीडी की धाराओं में जिन बिन्दू पर सजा होती है, उनको देखा ही नहीं। एक तो रिश्वत की राशि रंगे हाथों बरामद होना जरूरी है और दूसरा मांग का सत्यापन होना आवश्यक है। इस केस में मांग का सत्यापन हुआ ही नहीं। केवल एसीबी ने 200 रुपए परिवादी को दिये थे। वो ही अपीलार्थी से बरामद बताये गये है। ऐसे में ट्रायल कोर्ट द्वारा जो सजा दी गई है, वो निरस्त करते हुए बरी किया जाये। हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में माना कि मामले में मांग सत्यापन होना आवश्यक है, लेकिन इस केस में ऐसा नहीं हुआ। इसीलिए दिये गये ट्रायल कोर्ट के आदेश को अपास्त करते हुए अपीलार्थी को बरी करने का आदेश पारित किया।

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