'राजकाज'

जानें राज-काज में क्या है खास

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चर्चा में दोस्ती और दुश्मनी
सूबे में जब से अपर हाउस के लिए चुनावी जंग हुई है, तब से दोस्ती और दुश्मनी की चर्चाएं जोरों पर हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर के साथ ही सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर हर कोई आना वाला इसकी चर्चा किए बिना नहीं रहता। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि अपर हाउस के चुनावों में हाथ वालों के साथ ही भगवा वालों में दोस्ती और दुश्मनी निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ी गई। दोस्ती और दुश्मनी को लेकर दिल्ली तक भी शिकायतें की गई, लेकिन क्रॉस वोटिंग और जानबूझकर वोट को रिजेक्ट कराने वालों के चेहरों पर थोड़ी भी शिकन नहीं है। दिल्ली वालों से ज्यादा कौन जानता है कि राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी दोनों ही लंबी नहीं चलती। मतलब के समय दोनों ही बदले बिना नहीं रहती।


असर काले और खाकी का
 इन दिनों सूबे में कोट के रंगों को लेकर गरमाहट है। राज के साथ काज करने वाले भी कोट के रंगों में इतने डूबे हैं कि आसपास वालों तक को भूल गए। कोट के रंगों की चर्चा भी क्यों ना, उनका दर्जा ही कुछ विशेष है। सूबे में इन दिनों तीन रंगों के कोट हर आम की जुबान पर है। एक है सफेद रंग का कोट, जिसे पहनने वालों को धरती का भगवान मान कर पूजा जाता है। दूसरा है काले रंग का कोट, जिसे न्याय के देवता ही पहन सकते हैं। तीसरे कोट का रंग खाकी है, जिसे केवल डण्डे वाले ही पहन सकते हैं। तीनों रंग वाले कोट अपनी मर्जी से चलते हैं। इन पर किसी का राज नहीं चलता। अब देखो ना काले और खादी कोट वालों के बीच पिछले दिनों जो कुछ हुआ, उसे देख और सुनकर ही जायका बिगड़ जाता है। सफेद कोट वालों ने गुजरे जमाने में जो कुछ किया था, उससे तो भगवान तक घबरा गए थे। पिछले पांच महीने से काले और खाकी रंगों ने असर दिखा रखा है। चर्चा है कि काला रंग तो काला ही होता है, उसके तार सीधे शनि से जुड़े हैं, सो उस पर किसी भी दाग का असर नहीं होता।


परेशानी में साहब
राज का काज करने वाले कुछ ब्यूरोेके्रट्स इन दिनों अजीब स्थिति में हैं। वो समझ नहीं पा रहे कि आखिर क्या रास्ता निकाला जाए। लंच केबिनों में भी जमकर माथापच्ची कर ली, पर पार नहीं पड़ी। कुछ साहब लोग भगवा वाली मैडम के साथ ही भाईसाहबों से मिलने के लिए बेताब हैं, पर जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब के जासूसों से डरे हुए हैं। भगवा वाली मैडम का खुफिया तंत्र मजबूत जो ठहरा। जो काफी समझदार थे, वो पहले ही डेपुटेशन पर हैं, जो मन में आए, तब ही हाजरी भर आते हैं। अब कुछ और ब्यूरोक्रेट्स डेपुटेशन की लाइन में हैं, मगर यूपी वाली मैम खुद ही फाइल पर नोटिंग करने  में चूक नहीं करतीं, जिससे फाइल ऊपर के बजाय नीचे ही लौट आती है।


एक जुमला यह भी
इंदिरा गांधी भवन में हाथ वालों के ठिकाने पर एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी पंडितों के फेर को लेकर है। जब-जब भूचाल आता है, तो पंडित भी सक्रिय हो जाते हैं। नया काम छेड़ने से पहले पंडित पचांग खोलकर बिन मांगे सलाह देने में कोई कंजूसी नहीं करते। पीसीसी के ठिकाने की कुर्सी भी पंडितों के फेर में है। जब से सूबे में यात्रा के लिए जुबान खुली है, तभी से पंडितों में होड़ मची हुई। एक पंडितजी ने 31 अगस्त तो दूसरे ने दो नवम्बर का मुहूर्त शुभ बताया है। दोनों ने चौघड़िया और दिशा भी अलग-बताई है। अब फैसला तो पंचोें के हाथों में है, मगर पंडितों ने अपनी चलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। शनि को 69 पार करने वाले तीसरे पंडितजी तो दिल्ली की आड़ में मैसेज देने के लिए कमर कसे बैठे हैं।

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एल. एल. शर्मा, पत्रकार

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