चीन से फिर वार्ता
चीन पिछले कई दिनों से भारत को घेरने, चिंताएं बढ़ाने के लिए पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं पर व पाक अधिकृत कश्मीर में डेरे डालकर नए-नए मोर्चों को खोल दिया है।
चीन पिछले कई दिनों से भारत को घेरने, चिंताएं बढ़ाने के लिए पूर्वोत्तर भारत की सीमाओं पर व पाक अधिकृत कश्मीर में डेरे डालकर नए-नए मोर्चों को खोल दिया है। ऐसा करके उसने अपनी चालाकी का परिचय दे दिया है, लेकिन भारत भी चीन की हरकतों के मद्देनजर अपनी सामरिक ताकत में भी इजाफा कर रहा है। लेकिन इन दिनों भारत के लिए पूर्वी लद्दाख में चल रहे लंबे गतिरोध को लेकर काफी चिंता है। अब गतिरोध दूर करने के लिए दोनों देशों में चौदहवें दौर की सैन्य स्तरीय वार्ता के लिए सहमति बनी है जो अच्छा संकेत तो है लेकिन चीन का रवैया स्पष्ट व सकारात्मक रहने की उम्मीद कम ही लगती है, क्योंकि चीन अधिकतर वार्ता में बनने वाली सहमति से पलटने में देर नहीं लगाता और अपनी नई शर्तों को आगे कर देता है। देशकों से भारत-चीन के बीच सीमा विवाद बना हुआ है, लेकिन उसके साथ हुई कई दौर की वार्ताओं का जरा भी समाधान नहीं निकला है। इसकी बड़ी वजह चीन की खोटी नीयत ही है और वह कब्जाई गई भारतीय भूमि पर अपना अधिकार ही मानता है। अभी हाल ही में सीमा संबंधी मामलों पर विचार-विमर्श करने वाले दोनों देशों के कार्यकारी तंत्र के प्रतिनिधियों की बैठक में पूर्वी लद्दाख के हालात की सीमक्षा के बाद चौदहवें दौर की वार्ता पर सहमति बनी। पिछले साल मई में गलवान घाटी विवाद के बाद दोनों देशों के बीच अब तक तेरह दौर की वार्ताएं सम्पन्न हो चुकी हैं, मगर चीन का रवैया सकारात्मक नहीं रहता। चीन सिर्फ दिखावा मात्र के लिए वार्ता का प्रस्ताव रखता है, लेकिन वार्ताओं में गंभीरता नहीं दिखाता। ऐसा इसलिए कि वह भारत पर लगातार दबाव बनाए रखना चाहता है और तनाव व विवाद को समाप्त करना नहीं चाहता। इसके विपरीत देखा यह जा रहा है कि सीमा पर वह अपनी सैन्य गतिविधियां भी बढ़ाता जा रहा है। इससे तो कतई नहीं लगता कि वह तनाव खत्म करना नहीं चाहता है, बल्कि विवाद व तनाव को और बढ़ाना चाहता है। सैन्य स्तरीय वार्ताओं के अलावा चीन के साथ राजनीतिक व कूटनीतिक स्तर की जितनी भी वार्ताएं हुई हैं, चीन उनमें तय मुद्दों के विपरीत ही चला है। पूर्वी लद्दाख के सीमा विवाद को लेकर भारत का रुख पहले से ही स्पष्ट रहा है कि जब तक विवादित स्थलों से सैनिकों को नहीं हटाया जाता, तब तक इलाके में शांति की बात करना बेमानी होगी। अब देखना है कि चौदहवें दौर की वार्ता कब होगी और उसका नतीजा क्या रहता है?
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