सतरंगी सियासत
देश-प्रदेश की सियासत से लेकर प्रशासन की वो बातें जो जानना चाहते है आप
निशाना कहां?
जब वक्त बुरा हो। तो सबसे पहले, अपने ही अपमान करने पर आमादा होते। साथ में, अविश्वास की खाई भी बढ़ती। करीब छह दशकों तक देश पर शासन करने वाली कांग्रेस का आजकल हाल ऐसा ही। ‘ग्रैंड ऑल्ड पार्टी’ से ही निकली ममता दीदी। कह रहीं संप्रग जैसा अब कुछ नहीं। यहां तक कि राहुल गांधी के विदेश दौरों को राजनीति के प्रति उनकी गंभीरता से जोड़ रहीं। कांग्रेस से ही निकले शरद पवार उन्हें उकसा रहे। बचे खुचे चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर। जो कल तक कांग्रेस में आने को आतुर थे। अब वह भी गांधी परिवार पर सवाल उठा रहे। लेकिन पॉलिटिकल प्रोसेस में मंजकर निकली ममता दीदी इतनी अपरिपक्व भी नहीं। बंगाल जैसे 42 सीटों वाले राज्य की क्षत्रप की राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं की अपनी सीमाएं। उसके बावजूद कांग्रेस से ही सीधा पंगा। शायद दीदी की नजर कांग्रेस के ‘जी-23’ पर। जहां से गांधी परिवार को छोड़कर आगे बढ़ते हुए कांग्रेस संगठन पर! इसीलिए एक-एक करके हर राज्य में कांग्रेस के बड़े विकट उड़ा रहीं...
पांच और 12 दिसंबर!
मरुधरा में पांच दिसंबर हो गई और 12 दिसंबर महत्वपूर्ण होने जा रही। मानो 2023 की कांग्रेस और भाजपा दोनों को ही जल्दी। पांच दिसंबर को हुए भाजपा जनप्रतिनिधि सम्मेलन की अगुवाई अमित शाह ने की। शाह मोदी सरकार में मंत्री। उनका संगठन के कामकाज से सीधा कोई वास्ता नहीं। उसके बावजूद उनकी मौजूदगी 2023 की तैयारियों का साफ संकेत। क्योंकि 2018 में वह खुद पार्टी अध्यक्ष थे। उनका जयपुर आना कई को इशारा होगा। इसी प्रकार, कांग्रेस की 12 दिसंबर जयपुर में मोदी सरकार के खिलाफ रैली। प्रदेश में कांग्रेस का राज। इसलिए भीड़ जुटाने की जिम्मेदारी सीएम गहलोत की। उनके मंत्रिमंडल में पायलट समर्थक मंत्रियों को हाल ही में समायोजित किया गया। उसके बावजूद इधर-उधर से असंतोष के सुर आ रहे। ऐसे में, कहीं यह रैली गहलोत एवं पायलट के बीच शक्ति परीक्षण साबित होकर न रह जाए! क्योंकि मंच पर सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी होंगे। क्या साल 2023 की जंग की नींव भी इसी रैली में पड़ेगी?
पंजाब में चुनावी बिसात ..
तो पंजाब में चुनावी बिसात आगे बढ़ रही। कांग्रेस अपने प्रदेश अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के नाज नखरों से हलकान। उनकी सीएम चन्नी से पटरी बैठ नहीं रही। पूर्व पीसीसी जाखड़ ने भी नई टीम के साथ काम करने से मना कर दिया। आम आदमी पार्टी की रणनीति भी बिखर रही। कल तक ‘आप’ सत्ता में आने के मंसूबे पाल रही थी। लेकिन अब जमीन पर लगातार हालात बदल रहे। दिल्ली के सीएम केजरीवाल के पंजाब में फैरे बढ़ गए। वह सीएम चन्नी के खिलाफ तीखी बयानबाजी कर रहे। यह रणनीति का हिस्सा। लेकिन वह दलित समुदाय से। सो, हमलावर होने की भी सीमा। इधर, कल तक जो भाजपा अकाली दल से गठबंधन टूटने के बाद पुछल्ली दिख रही थी। अब वह केन्द्र में आती दिख रही। भाजपा ने अकालियों को पंजाब एवं दिल्ली तोड़ना शुरु कर दिया। पूर्व सीएम अमरिन्दर सिंह के साथ आने में बस चुनाव आचार संहिता की घोषणा का इंतजार। क्या कांग्रेस विधायक कैप्टन साहब के साथ आएंगे?
निलंबन के बहाने!
क्या मोदी सरकार ने 12 विपक्षी राज्यसभा सांसदों का सदन से निलंबन करवाकर संप्रग को उलझा दिया? जिसकी अगुवाई कांग्रेस कर रही। संसद के शीतकालीन सत्र की शुरूआत में जो हुआ। उससे तो यही लग रहा। मतलब विपक्ष की लाइन और लैंथ पहले ही दिन सरकार ने बिगाड़ दी? उच्च सदन में भाजपा अभी सहयोगियों एवं बाहर से मुद्दों के आधार पर समर्थन देने वाले क्षेत्रीय दलों पर निर्भर। जबकि कांग्रेस विपक्षी दलों के साथ अभी भी सरकार का कामकाज अटकाने की स्थिति में। तीन कृषि कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया जिस तेजी से संसद में पूरी की गई। उस पर कांग्रेस ने सवाल उठाए। विपक्षी दल और किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे नेता पीएम मोदी के कदम से सन्न। मानो पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले ‘तुरुप का पत्ता’ जैसा मुद्दा चला गया। उपर से सदन में कृषि कानूनों पर बोलने का अवसर भी गया। कहीं, निलंबन प्रकरण सरकार के लिए बिगड़े हालात मैनेज करने का जरिया तो नहीं बना?
बयान पर बयान...
जब से गहलोत मंत्रिमंडल का पुनर्गठन हुआ। तभी से कुछ न कुछ बयान ऐसे आ रहे। मानो सब कुछ सामान्य नहीं। नॉर्मलसी तो भाजपा के खेमे में भी नहीं। वहां 2023 की अगुवाई को लेकर रस्साकशी जैसे हालात। लेकिन यहां अभी भी बड़े नेता उलझने में मशगूल दिखाई दे रहे। मंत्री नहीं बनाए जाने से नाराज एक नेताजी ने इसकी योग्यता पूछ डाली। बसपा से कांग्रेस में आए एक विधायकजी कैबिनेट मंत्री नहीं बनाए जाने से रूठे रहे। प्रभारी अजय माकन और पीसीसी डोटासरा को मशक्कत करनी पड़ी। एक सलाहकार बने नेताजी तो अपने को कैबिनेट मंत्री स्तर का बता बैठे। एक अन्य निर्दलीय विधायकजी सचिन पायलट पर बरस पड़े। कहा, पायलट के कारण ही उनके साथी मंत्री नहीं बने। अभी संसदीय सचिव बनाए जाने बाकी। इसी बीच, सीएम बोले, छह-आठ माह बाद फिर से विस्तार करेंगे। ऐसे में आकांक्षियों को आस। एक दर्जन से ज्यादा जिलाध्यक्ष घोषित हो गए। मतलब 12 दिसंबर को भीड़ जुटाने में प्रतिस्पर्धा रहेगी। भाजपा की भी 16 को रैली।-दिल्ली डेस्क
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