खाड़ी देशों में युद्ध से हाड़ौती के चावल का अटका निर्यात
किसानों को कम भाव मिलने से हो रहा नुकसान
हाड़ौती का 90 फीसदी चावल विदेशों में निर्यात किया जाता है, लेकिन इस साल खाड़ी देशों के बीच चल रहे युद्ध के कारण चावल का निर्यात प्रभावित हो रहा है।
कोटा । खाड़ी देशों के बीच चल रहे युद्ध और केन्द्र सरकार की ओर से एक्सपोर्ट डयूटी पर टैक्स लगाने का खामियाजा हाड़ौती के धान (चावल) उत्पादक किसानों को उठाना पड़ रहा है। पिछले साल धान का भाव 3700 से 4500 रुपए प्रति क्विंटल था, जो इस साल घटकर 2300 से 3400 रुपए प्रति क्विंटल पर ठहर गया है। हाड़ौती का 90 फीसदी चावल विदेशों में निर्यात किया जाता है, लेकिन इस साल खाड़ी देशों के बीच चल रहे युद्ध के कारण चावल का निर्यात प्रभावित हो रहा है। जो देश भारत से चावल से आयात करते थे उन सभी देशों ने इस बार दूसरे देशों से चावल खरीद लिया है। इस कारण हाड़ौती का चावल बाहर विदेशों में नहीं जा रहा है। इससे यहां के चावल उत्पादक किसानों को फसल का अच्छा दाम नहीं मिल पा रहा है।
मंडियों में बम्पर आवक, लेकिन दाम काफी कम
कोटा की भामाशाहमंडी सहित हाड़ौती की मंडियों में वर्तमान में करीब एक लाख से क्विंटल से अधिक चावल रोज बिकने आ रहा है, लेकिन इस साल दाम कम मिलने के कारण किसानों को नुकसान उठाना पड़ रहा है। पिछले साल विदेशों में माल का एक्सपोर्ट अच्छा होने से धान का दाम 4500 रुपए प्रति क्विंटल पहुंच गया था। इस साल स्थिति बिलकुल विपरित है। इजराइल व हमास के बीच काफी समय से युद्ध चलने के कारण धान का एक्सपोर्ट प्रभावित हो रहा है। इससे किसानों को धान की अलग-अलग किस्मों में 1000 से 1500 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान पहुंच रहा है। इसी तरह का नुकसान मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में भी किसानों को हो रहा है।
एक्सपोर्ट डयूटी टैक्स ने भी बिगाड़ा गणित
चावल निर्यातक विशाल गुप्ता ने बताया कि दिसंबर 2023 में केन्द्र सरकार ने 20 फीसदी एक्सपोर्ट डयूटी लगाई थी। इसमें एक किलो चावल पर 10 रुपए की एक्सपोर्ट डयूटी लगी थी। इस पर अधिक टैक्स लगाने से चावल का निर्यात बंद कर दिया गया। इससे दिसंबर 2023 से अक्टूबर 2024 तक विदेशी देशों ने दूसरे देशों से चावल लेना शुरू कर दिया। जिससे यहां के किसानों को चावल के भाव कम मिलने लगे। हालांकि एक्सपोर्ट डयूटी इसी साल केन्द्र सरकार ने वापस ले ली है। इसके बाद नवंबर में विदेशों में चावल का एक्सपोर्ट होना शुरू हो गया है। ऐसे में आगामी दिनों में चावल के भावों में तेजी होने की संभावना जताई जा रही है।
जहाजों पर हुए हमले तो बदला रूट
भामाशाहमंडी में चावल के व्यापारी योगेश कुमार ने बताया कि धान की दाम में कमी का मुख्य कारण इजरायल के साथ ईरान व हमास का युद्ध है। युद्ध के चलते समुद्री रास्तों में आतंकवादी गतिविधियां बढ़ने लगी है। बंदरगाहों पर जहाजों पर हमले किए जा रहे हैं। ऐसे में दूसरे समुद्री रास्तों से लंबा फेरा लगाकर जहाजों से चावल पहुंचाया जा रहा है। इससे ज्यादा रेट होने के कारण वहां के अधिकांश देश पड़ौसी देशों से चावल का आयात करने लगे हैं। भारत से करीब 150 देशों में चावल का निर्यात किया जाता है। इनमें से प्रमुख रूप से पांच देश अमेरिका, इटली, थाइलैंड, स्पेन और श्रीलंका सबसे बड़े आयातक देश हैं। इसके अलावा अन्य देशों में सिंगापुर, फिलीपिंस, हांगकांग, मलेशिया जैसे देश भी शामिल हैं। युद्ध के कारण अब इन देशों में चावल का निर्यात प्रभावित हो रहा है।
पांच साल में निर्यात
2020-21: 1600 से 1650
2021-21: 1700 से 1800
2021-22: 1900 से 2000
2022-23: 2000 से 2100
2023-24: एक्सपोर्ट डयूटी टैक्स से निर्यात नहीं
पिछले साल 4500 रुपए प्रति क्विंटल तक का चावल बिका और अच्छा मुनाफा भी हुआ था। इस बार चावल घाटे का सौदा है। 1000 से 1500 रुपए प्रति क्विंटल का नुकसान हो रहा है। दो से तीन साल तक चावल रखने के बाद भाव नहीं मिलने से मजबूरी में बेचकर जाना पड़ रहा है।
- मांगीलाल, किसान, माधोराजपुरा
धान के भाव गिरने का मुख्य कारण खाड़ी देशों में युद्ध और केन्द्र सरकार द्वारा एक्सपोर्ट डयूटी पर टैक्स लगाना है। ऐसे में विदेशी देशों में निर्यातक का भारत से चावल के आयात के लिए सम्पर्क कम हो गया है। अक्टूबर में टैक्स हटा दिया है। अब धीरे-धीरे भाव तेज होने की संभावना है।
- भानु कुमार, चावल निर्यातक
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