सतरंगी सियासत
दक्षिण हमेशा से भाजपा की कमजोर कड़ी
संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण का पहला सप्ताह पक्ष-विपक्ष के बीच गतिरोध में ही निकल गया। असल में, यह दोनों ओर से ताकत एवं एकता दिखाने की जोर आजमाइश थी।
एक और बयान!
कांग्रेस वैसे ही राहुल गांधी के बयानों से सत्तापक्ष के निशाने पर। लेकिन अब कांग्रेस के राजस्थान प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा का बयान चर्चा में। जिसमें रंधावा ने पुलवामा आतंकी हमले पर संदेह जताया और पीएम मोदी को सत्ता से हटाने की भी बात कही। भाजपा पिल पड़ी। एक साथ कई नेताओं द्वारा उस बयान का प्रतिकार किया गया। भाजपा को तो मानो मुंह मांगी मुराद मिल गई। सो, कांग्रेस को उसका इतिहास याद दिलाया जाने लगा। लेकिन सवाल यह कि रंधावा ऐसा बोले क्यों? असल में, गहलोत सरकार वीरागंनाओं को मदद समेत कई मुद्दों पर घिरी गई। खुद कांग्रेस नेता एवं विधायक भी मान रहे। इस मामले में ठीक से हैंडल किया जा सकता था। लेकिन वह मुद्दा बन गया। कहीं यह ध्यान हटाने की कोशिश तो नहीं? क्योंकि भाजपा इस मामले को वहां तक ले गई। जिससे सरकार असहज हो गई।
पक्ष... विपक्ष... डैडलॉक!
संसद के बजट सत्र के दूसरे चरण का पहला सप्ताह पक्ष-विपक्ष के बीच गतिरोध में ही निकल गया। असल में, यह दोनों ओर से ताकत एवं एकता दिखाने की जोर आजमाइश थी। सत्तापक्ष राहुल गांधी के बयानों पर कांग्रेस को बैक फुट पर लाना चाहता था। वहीं, कांग्रेस गौतम अडाणी के बहाने पीएम मोदी पर आक्रामक होकर हमलावर रहना चाहती थी। सो, दोनों ही ओर से हंगामा, नारेबाजी रही। लेकिन इस टसल में संसद का महत्वपूर्ण समय जाया हुआ। हां, जिन बयानों का जिक्र भाजपा ने किया। उनका असर राहुल गांधी पर होता हुआ दिखा। इसीलिए सफाई भी आई। जबकि गौतम अडाणी के साथ पीएम मोदी का नाम अरसे से कांग्रेस जोड़ रही। अब इसमें आम जनता को ही तय करना। क्या सही, क्या गलत। आखिर जनता की अदालत में ही सबसे बड़ी। जिसके लिए दोनों ओर से पुरजोर कवायद हो रही।
रणनीति काम कर गई!
भाजपा ने मानो कांग्रेस की रणनीति पर पानी फेर दिया। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान खूब मेहनत की। लेकिन माहौल ऐसा बना कि राहुल गांधी का जो पॉलीटिकल ग्राफ बढ़ा हुआ सा प्रतीत हो रहा था। वह धुलता हुआ दिख रहा। जिससे कांग्रेस असहज। असल में, भारत जोड़ो यात्रा की सारी कवायद राहुल गांधी की छवि में निखार लाना था। जिसमें पार्टी काफी हद तक सफल भी रही। ऐसा भाजपा, सरकार एवं मंत्रियों, नेताओं की प्रतिक्रिया से समझा जा सकता। कांग्रेस भी इससे खासी उत्साहित थी। लेकिन जैसे ही लंदन से बयान आए। वैसे ही माहौल बदला सा। भाजपा वह सब करने में सफल रही। जो कांग्रेस को असहज करने वाला हो। कांग्रेस ठीक से भाजपा के हमलों को काउंटर नहीं कर पाई। जिससे बना बनाया माहौल दूसरी दिशा में। कांग्रेस को उन बयानों पर सफाई देने की नौबत!
जिज्ञासा!
राजस्थान कांग्रेस और भाजपा में जिज्ञासा बढ़ रही। कांग्रेस में रायपुर महाधिवेशन के बाद कुछ होने की आशा जगी थी। लेकिन हुआ कुछ नहीं। बल्कि दोनों ही खेमों में शांति का सा आलम। तुरंत कछ होगा। इसकी उम्मीद कम ही। भाजपा में वसुंधरा राजे के शक्ति प्रदर्शन के बाद कुछ नया होने की संभावना कम ही। ऐन वक्त पर प्रभारी अरुण सिंह ने सालासर बालाजी पहुंचे। शायद पार्टी नेतृत्व अभी बिगाड़ा नहीं चाहता। हां, त्रिपुरा समेत तीन राज्यों के परिणाम से संकेत साफ। लेकिन भाजपा नेतृत्व का अभी फोकस कर्नाटक पर। तब तक बात बिगड़ने का तोहमत अपने उपर नहीं लेना चाहता। लेकिन राजस्थान में काम वही हो रहा। जो आलाकमान की इच्छा। दोनों ओर के कार्यकर्ता भी इंतजार के मूड में नहीं। क्योंकि खेमेबाजी इतनी ज्यादा कि समझ नहीं आ रहा। जाएं भी कहां? इसी सियासी गुणा भाग में चूक न हो जाए।
समय का फेर!
विश्व कूटनीति में मानो भारत का समय चल रहा। एक ओर तो जी-20 की मंत्री स्तरीय बैठकें हो रहीं। वहीं, अमरीका एवं रूस जैसी ताकतें भारत की धरती से एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहीं। वहीं, बाकी दुनियां भारत के रूख का इंतजार कर रही। खासतौर से रूस-यूक्रेन युद्ध की बात हो या पाक को लेकर बढ़ रही वैश्विक चिंता का मसला। चीन की नजर अफगानिस्तान पर। जिससे अमरीका और रूस भी चौकन्ने। बात श्रीलंका की हो या पाक की। इन दोनों एशियाई देशों की अर्थव्यवस्था को लेकर दुनियां में चिंता का आलम। हां, एयर इंडिया के जरिए अमरीका, ब्रिटेन एवं फ्रांस को राहत देकर भारत पहले ही झंडे गाड़ चुका। अमरीका में लाखों नौकरियों के अवसर पैदा होंगे। जिससे बाकी देश भी भारत की ओर ताक रहे। अब हालत यह कि कई बडे़ देश भारत को ललचा रहे। यही समय का फेर।
नजरें कहां?
दक्षिण हमेशा से भाजपा की कमजोर कड़ी। जहां केरल में वह बिल्कुल खाली। तो तमिलनाडु में वह अभी तक सहयोगियों के भरोसे ही। कर्नाटक में वह प्रभावशाली और सत्ता में भी रह चुकी। लेकिन पूर्व सीएम येद्दियुरप्पा की राजीतिक ताकत के आगे कई बार भाजपा असहाय नजर आती। इसका तोड़ अभी तक भाजपा नेतृत्व निकाल नहीं पाया। इसी बीच, भाजपा तेलंगाना में कांग्रेस को पीछे छोड़ मुख्य विपक्ष की भूमिका में आने को आतुर। हालांकि दावा सत्ता में आने का। अब तो टीआरएस से बीआरएस हो चुकी केसीआर की पार्टी सीधे केन्द्र के निशाने पर। तेलंगाना में भी साल के अंत में विधानसभा चुनाव। शराब नीति घोटाले में केसीआर की बेटी कविता केन्द्रीय एजेसिंयों की जद में। माना जा रहा भाजपा तेलंगाना में अपना जमीनी आधार बढ़ाने की फिराक में। लेकिन इसके अलावा भी भाजपा की नजरें कहां तक? जानकार लोकसभा चुनाव मान रहे।
-दिल्ली डेस्क
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