राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के नगरीय विकास विभाग को कहा- एनएफएसयू को जमीन देने के लिए अपना रुख स्पष्ट करें राज्य सरकार
राज्य सरकार के दखल के बिना विवि के कैंपस की स्थापना संभव नहीं
राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के नगरीय विकास विभाग को कहा है कि वह नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी को कैंपस स्थापित करने के लिए जमीन देने के संबंध में अपना रुख स्पष्ट करे। साथ ही अदालत ने प्रताप नगर में चल रहे विवि के अस्थाई कैंपस के संसाधनों और कोर्स आदि की जानकारी भी फरवरी के प्रथम सप्ताह तक पेश करने को कहा है।
जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के नगरीय विकास विभाग को कहा है कि वह नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी को कैंपस स्थापित करने के लिए जमीन देने के संबंध में अपना रुख स्पष्ट करे। साथ ही अदालत ने प्रताप नगर में चल रहे विवि के अस्थाई कैंपस के संसाधनों और कोर्स आदि की जानकारी भी फरवरी के प्रथम सप्ताह तक पेश करने को कहा है। एक्टिंग सीजे संजीव प्रकाश शर्मा और जस्टिस संगीता शर्मा की खंडपीठ ने यह आदेश विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं में संसाधनों की कमी को लेकर लिए स्वप्रेरित प्रसंज्ञान पर सुनवाई करते हुए दिए। सुनवाई के दौरान अदालत के सामने आया कि जेडीए ने दौलतपुरा में विवि को 12.47 हेक्टेयर जमीन आवंटित की है और इसके बदले 63 करोड रुपए से अधिक राशि लेने की बात कह रहा है। जबकि विवि कह चुका है कि वह देशभर में 12 कैंपस और दो अकादमी संचालित करती है। संबंधित राज्यों ने उन्हें फ्री जमीन दी है।
ऐसे में उन्हें अधिकतम 2 करोड़ रुपए में चालीस से पचास एकड़ जमीन चाहिए। न्यायमित्र अधिवक्ता पंकज गुप्ता ने जेडीए और विवि के बीच जमीन के आकार और राशि का तालमेल नहीं होने के कारण यहां विवि का कैंपस स्थापित नहीं हो पा रहा है। नेशनल फॉरेंसिक साइंस यूनिवर्सिटी को फिलहाल प्रताप नगर के कोचिंग हब में दो साल के लिए अस्थाई कैंपस दिया गया है। जहां वह कोर्स संचालित कर रही है। ऐसे में राज्य सरकार के दखल के बिना विवि के कैंपस की स्थापना संभव नहीं है। न्यायमित्र की ओर से कहा गया कि यहां विवि का कैंपस समय की जरूरत है। इसके अभाव में विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं में पर्याप्त स्टाफ उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इस पर अदालत ने यूडीएच विभाग को कहा है कि वह विवि को जमीन देने के संबंध में अपना रुख स्पष्ट करे। अदालत ने विवि के अस्थाई कैंपस में चल रहे कोर्स और स्टाफ आदि की जानकारी भी मांगी है। हाईकोर्ट ने विधि विज्ञान प्रयोगशालाओं में स्टाफ सहित अन्य संसाधनों की कमी और डीएनए सहित अन्य नमूनों के परीक्षण में देरी होने पर स्वप्रेरणा से प्रसंज्ञान ले रखा है।

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