कांग्रेस के हालात
कांग्रेस छोड़कर जाने वाले बड़े नेताओं में मनमोहन सरकार में कानून मंत्री और अनेक बड़े पदों पर सुशाभित अश्विनी कुमार का नाम भी जुड़ गया है।
अश्विनी कुमार से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, अमरिंदर सिंह जैसे बहुत से बड़े नेता कांग्र्रेस से किनारा कर चुके हैं।
कांग्रेस छोड़कर जाने वाले बड़े नेताओं में मनमोहन सरकार में कानून मंत्री और अनेक बड़े पदों पर सुशाभित अश्विनी कुमार का नाम भी जुड़ गया है। अश्विनी कुमार से पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया, जितिन प्रसाद, आरपीएन सिंह, अमरिंदर सिंह जैसे बहुत से बड़े नेता कांग्र्रेस से किनारा कर चुके हैं। पंजाब चुनाव से कुछ दिन पहले अश्विनी कुमार का पार्टी छोड़ना इसलिए महत्वपूर्ण और अलग है, क्योंकि वह सोनिया गांधी और परिवार के बेहद निकट थे। जी-23 के नाम से संगठित कांग्र्रेस नेताओं का भी उन्होंने विरोध किया था, लेकिन इतने नेताओं के पार्टी छोड़ने के बाद भी राहुल गांधी या वर्तमान कांग्र्रेस की कार्यशैली में बदलाव आने की संभावना नहीं है। कांग्र्रेस लगातार जनाधार खो रही है और अपने पुराने और अनुभवी नेताओं को भी। अश्विनी कुमार ने पार्टी से इस्तीफा देते हुए परोक्ष रूप से टिप्पणी की है कि राहुल गांधी राष्ट्रीय स्तर के नेता के दौर पर देश के जनमानस को स्वीकार्य नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि पार्टी में प्रतिभाशाली व वरिष्ठ नेताओं का कोई महत्व नहीं रह गया है। इसका एक तरह से सीधा मतलब यही निकलता है कि केवल परिवार के चाटुकारों का वर्चस्व है। अश्विनी कुमार चार दशक से अधिक समय तक पार्टी से जुड़े रहे हैं और विभिन्न पदों पर रहकर सत्ता का सुख लेते रहे हैं, लेकिन अब जब वैसा पुराना सुख नहीं मिल रहा है, तो फिर सुख प्राप्ति की चाह में पार्टी को छोड़ने को मजबूर हुए हैं। पार्टी से इस्तीफा देने के बाद उन्होंने अपने आगे के कदम के बारे में कोई संकेत नहीं दिया है। बहरहाल, अश्विनी कुमार स्वयं कोई बड़े जनाधार वाले नेता नहीं हैं। पंजाब में वह नगर पालिका तक का चुनाव भी नहीं जीत पाए हैं। पार्टी छोड़कर जाने वाले एक-दो नेताओं को छोड़कर लगभग सभी नेता गांधी परिवार के करीबी बनकर कांग्र्रेस की सत्ता में बार-बार सत्ता का सुख लेते रहे हैं। अब कांग्र्रेस सत्ता में नहीं है तो कांग्र्रेस के नेता अपने नए राजनीतिक सुख की खातिर पार्टी छोड़कर चले गए हैं। दरअसल यह कांग्र्रेस का इतिहास रहा है कि समय-समय पर इसका साथ ऐसे नेता छोड़ते रहे हैं जिन्हें सिर्फ सत्ता की राजनीति से ही मोह होता है। कांग्र्रेस कई बार टूटी है तो फिर सशक्त रूप से खड़ी भी हुई है। लेकिन तत्कालीन केन्द्रीय नेतृत्व भी सशक्त था। लेकिन आज कांग्र्रेस जैसी राष्ट्रीय स्तर की बड़ी पार्टी की हालत दयनीय है। जनाधार का दायरा काफी घटा है। ऐसे में राष्ट्रीय नेतृत्व को सारे हालात पर गंभीरता से विचार करना चाहिए और पलायन के कारणों पर गहन विचार करना चाहिए। गंभीर आत्म मंथन व पार्टी के काया कल्प की सख्त जरूरत हो चली है।
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