सेंगोल: दक्षिण को नजदीक लाने के प्रयास

सेंगोल: दक्षिण को नजदीक लाने के प्रयास

इतिहास में इस बात का उल्लेख मिलता है कि आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व दक्षिण के चोल राजवंश के काल में जब सत्ता में परिवर्तन होता था या राजा सत्ता का हस्तांतरण अपने वंशज को करते थे तो ऐसे समारोह में  बड़े मठों के पुजारी राज्यभिषेक के समय ऐसा राजदंड  उसके हाथ में देते थे।

देश की राजधानी दिल्ली में नए संसद भवन के उद्घाटन को लेकर कई विपक्षी दल बीजेपी सरकार पर लगातार हमले बोल रहे हैं। जब यह सामने आया कि नए भवन का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे, तो कांग्रेस सहित कई विपक्षी दलों ने मांग की कि नए भवन का उद्घाटन राष्ट्रपति को करना चाहिए था। उद्घाटन के बाद यह आलोचना शुरू हो गई कि सारे समारोह का भगवाकरण कर, जबकि यह  एक राष्ट्रीय स्तर का सरकारी समारोह था। आलोचना का मुख्य बिंदु दक्षिण के तमिलनाडु से बुलाए गए दो दर्जन से अधिक  मठों के अदिनमों, पुजारियों को लेकर है। इसके साथ ही नए भवन के लोकसभा कक्ष में स्पीकर के आसन के निकट सेंगोल की स्थापना को लेकर भी कई तरह की  टिप्पणियां की गई। सेंगोल तमिल भाषा का शब्द है। हिन्दी में इसे राजदंड या धर्मदंड कहा जाता है। इतिहास में इस बात का उल्लेख मिलता है कि आज से लगभग एक हजार वर्ष पूर्व दक्षिण के चोल राजवंश के काल में जब सत्ता में परिवर्तन होता था या राजा सत्ता का हस्तांतरण अपने वंशज को करते थे तो ऐसे समारोह में  बड़े मठों के पुजारी राज्यभिषेक के समय ऐसा राजदंड  उसके हाथ में देते थे। यह दंड सत्ता और धर्म का प्रतीक माना जाता था। यह परम्परा दक्षिण के राजवंशों में सदियों से चली आ रही थी।

15 अगस्त 1947 ब्रिटेन ने भारत को आजादी दी तो  यह मुद्दा सामने आया कि सत्ता हस्तांतरण के सरकारी दस्तवेजों के अलावा सत्ता के प्रतीक के रूप में और किया जाना चाहिए। उस समय कांग्रेस के बड़े कांग्रेस नेता सी  राजगोपालचारी, जो बाद में देश के पहले गवर्नर जनरल  आजाद देश के पहले प्रधानमंत्री बनने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरु को यह सुझाव दिया कि दक्षिण की प्राचीन हिन्दू परम्परा के अनुसार वे मदुरै मंदिर के पुजारी के हाथ से सेंगोल ग्रहण करने के बाद  ही सत्ता हस्तांतरण के सरकारी दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करे। हालांकि नेहरु आमतौर पर ऐसी धार्मिक परम्पराओं में विश्वास नहीं करते थे, लेकिन इसको बड़ा समारोह देखते हुए उन्होंने ऐसा करने से इंकार नहीं किया। चेन्नई के प्रसिद्ध आभूषण बनाने वाले एक  प्रतिष्ठान को यह राजदंड बनाने का काम दिया गया। आजादी की तारीख से  एक दिन पहले इस राजदंड को विशेष विमान से दिल्ली लाया गया। मदुरै मंदिर के उप पुजारी भी साथ में आए थे। 14 और 15 अगस्त की मध्य रात्रि को सत्ता हस्तांतरण समारोह ने कुछ समय पूर्व यह राजदंड पूरे पूजा पाठ के बाद उन्हें सौंपा गया। जब केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नए संसद भवन में सेंगोल को स्थापित किए जाने की घोषणा की तो कांग्रेस सहित कई विरोधी नेताओं ने केवल सेंगोल के अस्तित्व को ही नकार दिया बल्कि यहां तक कह डाला को नेहरु ने कभी ऐसा सेंगोल स्वीकार ही नहीं किया था। वास्तव में आजादी के कुछ समय बड़ा जब  नेहरु की। व्यक्तिगत वस्तुओं के साथ इस सेंगोल को तब के इलाहाबाद स्थित नेहरु परिवार के पुश्तैनी घर आनंद भवन भेज दिया गया। बाद में जब  इलाहाबाद  में संग्राहालय बना तो वहा वहां एक नेहरु कक्ष बनाया  गया जिनमें पंडित  नेहरु से संबंधित वस्तुओं को रखा गया। इसमें यह सेंगोल भी था। बताया जाता है कि इस साल के आरंभ में इस सेंगोल की खोज शुरू हुई और इलाहाबाद जाकर खत्म हुई।

जब से केंद्र में बीजेपी सत्ता में आई हैं और नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने हैं वे राष्टÑीय स्वयंसेवक संघ के हिन्दुत्व के अजेंडे को आगे बढ़ाने में लगे हैं। इनमें से दक्षिण के तमिलनाडु राज्य को अधिक से अधिक भारत की या हिन्दुओं की मुख्य धारा के निकट लाना है। आमतौर पर तमिलनाडु  के सभी बड़े राजनीतिक दल द्रविड़ संस्कृति को हिन्दू संस्कृति से अलग  तथा इससे ऊंची मानते हैं। यही कारण है कि बीजेपी अपने हिन्दू अजेंडे की वजह से तमिलनाडु में अपने पैर नहीं जमा पाई। अब सांस्कृतिक माध्यम से ऐसा किया जा रहा है। इस साल के शुरू में काशी यानि बनारस में तमिल संगम का आयोजन किया गया। इसमें  तमिलनाडु के लगभग ढाई हजार लोग ने यह कहा गया कि सदियों से तमिलनाडु के लोग काशी आते रहे हैं। लेकिन ब्रिटिश काल में यह क्रम टूट गया। इसे फिर से शुरू करने का प्रयास किया जा रहा हैं। इसी प्रकार लगभग पांच सौ साल पूर्वे मुस्लिम हमलवारों से बचने के लिए बड़ी संख्या में गुजरात के सौराष्टÑ इलाके के लोग मुदुरै पलायन कर गए थे। अप्रैल के महीने में ऐसे लोंगो के एक समूह को सोमनाथ लाया गया था। अब ऐसे ही एक जत्थे को उत्तराखंड के केदारनाथ मंदिर ले जाया जा रहा है। संघ चाहता के उस परम्परा को पुनर्जीवित किया जाए। जब दक्षिण के हिन्दू  काशी, हरिद्वार और मथुरा जैसे प्रमुख हिन्दू तीर्थों पर जाया करते थे।

-लोकपाल सेठी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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