कॉमर्स से उठा विश्वास, संभाग के आठ कॉलेजों में 60 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली

वाणिज्य शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों की बेरुखी से शिक्षाविद् चिंतित

कॉमर्स से उठा विश्वास, संभाग के आठ कॉलेजों में 60 फीसदी से ज्यादा सीटें खाली

प्रवेश प्रक्रिया के दो माह बीतने के बाद भी महज 40 प्रतिशत सीटें भर पाई हैं।

कोटा। सरकारी कॉलेजों में वाणिज्य शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों का रुझान दिनोंदिन घटता जा रहा है। क्वालिटी एजुकेशन का अभाव व रोजगार के सीमित होते अवसर के चलते स्टूडेंट्स कॉमर्स लेने से कतरा रहे हैं। हालात यह हैं कि कोटा संभाग के 8 राजकीय महाविद्यालयों में वाणिज्य संकाय की 60 फीसदी सीटें खाली रह गई। प्रवेश प्रक्रिया के दो माह बीतने के बाद भी महज 40 प्रतिशत सीटें भर पाई हैं। कॉमर्स के प्रति विद्यार्थियों की बेरुखी से शिक्षाविदें ने चिंता जताई।

1776 सीटें रह गई खाली
हाड़ौती के 8 राजकीय महाविद्यालय जिनमें कॉमर्स संकाय संचालित हैं। जहां बीकॉम प्रथम वर्ष की कुल 2 हजार 940 सीटें हैं। जिनमें से 1 हजार 64 सीटें ही भर सकी हैं। जबकि, 1 हजार 776 सीटें खाली रह गई। जबकि, संभाग के सबसे बड़े गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेजों की स्थिति और भी खराब है। राजकीय वाणिज्य महाविद्यालय में सबसे ज्यादा 749 सीटें खाली रह गई। वहीं, जेडीबी कॉमर्स कॉलेज में 588 छात्राओं ने एडमिशन ही नहीं लिया। 

बूंदी गर्ल्स कॉलेज में एक भी एडमिशन नहीं
हाड़ौती के बूंदी गर्ल्स कॉलेज में बीकॉम प्रथम वर्ष में एक भी छात्रा ने एडमिशन नहीं लिया। जबकि, प्रथम वर्ष में 100 सीटें है, जो पूरी तरह से खाली है। वाणिज्य शिक्षा के प्रति विद्यार्थियों की बेरुखी से कॉलेज शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल खडेÞ हो गए। शिक्षाविदों का कहना है, सरकारी शिक्षण संस्थानों में साधन-संसाधनों का अभाव व रोजगार के घटते अवसर के कारण विद्यार्थी कॉमर्स से दूर भाग रहे हैं। 

क्वालिटी एजुकेशन तो दूर पास होना ही चुनौती
कोटा संभाग में करीब सात राजकीय पीजी महाविद्यालयों में कॉमर्स संकाय संचालित किया जा रहा है। जिनमें कोटा गवर्नमेंट कॉलेज, जेडीबी वाणिज्य, बूंदी, बारां, रामगंजमंडी, भवानीमंडी व झालावाड़ के एक-एक कॉलेज शामिल हैं। इन महाविद्यालयों में से केवल बारां और जेडीबी वाणिज्य कॉलेज में ही एक-एक बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन की फैकल्टी है। शेष अन्य कॉलेजों में स्थाई शिक्षक नहीं है। ऐसे में इन महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को क्वालिटी एजुकेशन मिलना तो दूर उनका एग्जाम में पास होना ही चुनौती बन गया। हालात यह हैं कि विद्यार्थियों को प्रथम सेमेस्टर की परीक्षा में व्यापार प्रबंधन का पेपर बिना पढ़े ही देना पड़ा था। अब जुलाई के प्रथम सप्ताह में सेकंड सेमेस्टर के एग्जाम होना है। ऐसे में शिक्षक के बिना कैसे विद्यार्थियों की तैयारी होगी। 

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6 कॉलेजों में व्यापार प्रबंधन के शिक्षक ही नहीं
हाड़ौती के 8 कॉलेजों में से मात्र दो कॉलेजों में ही बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन की एक-एक नियमित फैकल्टी है। इनमें जेडीबी कॉमर्स कोटा व राजकीय बारां महाविद्यालय शामिल है। इसके अलावा किसी भी कॉलेज में न तो नियमित फैकल्टी है और न ही विद्या संबल योजना में। ऐसे में विद्यार्थियों की क्लासें ही नहीं लग पाती। मजबूरन बच्चों को कोचिंग का सहारा लेना पड़ता है। समय पर कोर्स पूरे नहीं हो पाते। जबकि, कोटा यूनिवर्सिटी द्वारा सेमेस्टर सिस्टम लागू किया गया है। कॉलेज शिक्षा आयुक्तालय की लचर व्यवस्था के कारण विद्यार्थियों का कॉमर्स के प्रति रुझान घटता जा रहा है। 

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विद्यार्थियों की पीड़ा- सिलेबस अधूरे, पास होना ही चुनौती
गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज कोटा के स्टूडेंट्स सुरभी व आशुतोष जादौन ने बताया कि वर्तमान में कॉलेजों में न तो पढ़ाने को शिक्षक है और न ही शैक्षणिक माहौल। वहीं, छात्रों को रोजगार से जोड़ने की भी कोई कार्ययोजना भी नहीं है। हालात यह हैं, इंडस्ट्री में किस स्किल की डिमांड है यह बताने वाला भी कोई नहीं है। कॉलेजों के विद्यार्थियों का पास होना ही मुश्किल हो रहा है।

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65 प्रतिशत कोर्स रह गया था अधूरा
छात्र अजय व सुरेंद्र ने बताया कि बड़ी संख्या में शिक्षकों के पद रिक्त हैं। गत वर्ष एमकॉम प्रिवियस के प्रथम सेमेस्टर का 65 प्रतिशत से ज्यादा सिलेबस अधूरा रह गया था। वर्तमान में भी बिजनेस एडमिनेस्ट्रेशन पढ़ाने को शिक्षक नहीं है। विद्यार्थी मानसिक तनाव से गुजर रहे हैं। 

70 किमी से अपडाउन फिर भी क्लास नहीं
गवर्नमेंट कॉमर्स कॉलेज की छात्रा प्रियंका का कहना है कि वे प्रतिदिन रावतभाटा से 70 किमी का सफर कर कॉलेज आती हैं, इसके बावजूद व्यापार प्रबंधन की क्लास नहीं मिलती।  वहीं, रोजगार से जोड़ने के लिए प्लेसमेंट कैम्प भी नहीं लगते और न ही इंडस्ट्री विजिट करवाई जाती है।  

क्या कहते हैं शिक्षाविद्
कॉमर्स के प्रति रुझान कम होने का सबसे प्रमुख कारण रोजगार के घटते अवसर हैं। बीकॉम-एमकॉम के बाद नौकरी के क्या अवसर हैं, छात्रों को इसकी जानकारी नहीं है।  प्रतियोगी परीक्षाओं में भी वाणिज्य वर्ग के लिए कोई मौका नहीं  है। विद्यार्थी शिक्षक बनना चाहते हैं लेकिन उन्हें बीएड करने के लिए पात्र नहीं माना जाता। जबकि, अकाउंटेंट भर्ती परीक्षाओं में आर्ट्स-साइंस के स्टूडेंट्स भी शामिल हो जाते हैं, जिससे उनके हाथ से सीट निकल जाती है। उच्च शिक्षा हो या प्रतियोगी परीक्षा हर जगह निराशा ही मिल रही है। ऐसे में स्टूडेंट्स कॉमर्स लेने के बजाए आर्ट्स लेना पसंद कर रहे हैं। वहीं, कॉलेजों में साधन-संसाधनों व शिक्षकों का अभाव भी बड़ी वजह है।
- सीमा राठौर, प्राचार्य, राजकीय वाणिज्य महाविद्यालय कोटा

कॉमर्स के प्रति विद्यार्थियों का रुझान स्कूली शिक्षा से ही कम होता जा रहा है। क्योंकि, विद्यालयों में वाणिज्य से संबंधित विषय नहीं है।  10वीं पास करने के बाद छात्रों के सामने सभी विषय नए होते हैं। कोरर्पोरेट जगत में कॉमर्स की जरूरत बढ़ रही है, जिससे विद्यार्थियों को काउंसलिंग के जरिए अवगत कराने की जरूरत है। वहीं, कक्षा 6 से ही कॉमर्स पढ़ाई जानी चाहिए तभी छात्रों का रुझान बढ़ेगा। शिक्षकों की कमी दूर होना जरूरी है। 
- डॉ. रघुराज सिंह परिहार, क्षेत्रीय सहायक निदेशक, कॉलेज शिक्षा 

रोजगार को लेकर छात्रों व अभिभावकों का साइंस के प्रति माइंससेट है, जिसे बदलने की जरूरत है। कॉमर्स रोजगार देने और दिलाने वाला विषय है। दिल्ली-मुंबई में कॉमर्स का क्रेज है। स्कूली व कॉलेज शिक्षा में क्वालीटी एजुकेशन का अभाव है। आज भी परम्परागत पाठ्यक्रम चल रहे हैं, जिन्हें इंडस्ट्री की आवश्यकता के अनुरूप मोडराइजेशन करने की जरूरत है।  कोटा में वाणिज्य शिक्षा के डेडीकेटेड गवर्नमेंट कॉलेज होने के बावजूद सीटें खाली रहना चिंताजनक है। 
-सीए शशांक गर्ग, पूर्व चैयरमेन, सीए ब्रांच कोटा 

पाठ्यक्रम में स्किल डवलपमेंट प्रोग्राम शामिल किया जाना चाहिए। कॉमर्स इंडस्ट्री के एक्सपर्ट को बुलाकर गेस्ट लेक्चर करवाए जाना जरूरी है ताकि विद्यार्थियों को पता लगे कि किन किन क्षेत्रों में उनके लिए रोजगार है। वहीं, किताबी ज्ञान के अलावा इंडस्ट्री विजिट करवाकर प्रैक्टिकली समझ विकसित की जाए तो घटता रुझान फिर से बढ़ाया जा सकता है। सीए इंस्टीट्यूड को कॉलेजों व स्कूलों में सेमिनार कर विद्यार्थियों को जागरूक करना चाहिए। 
- सीए बद्रीविशाल माहेश्वरी, पूर्व अध्यक्ष, सीए ब्रांच कोटा

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