आरटीयू का दावा : हर साल 60 फीसदी प्लेसमेंट, स्टूडेंट बोले-सिर्फ 35 फीसदी

कोर ब्रांच की कम्पनियां कम ही आती हैं विश्वविद्यालय में

आरटीयू का दावा : हर साल 60 फीसदी प्लेसमेंट, स्टूडेंट बोले-सिर्फ 35 फीसदी

सिविल इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों का बहुत ही कम प्लेसमेंट हो पाता है, क्योंकि कैम्पस में इस क्षेत्र की कम्पनियां नहीं आती।

कोटा। राजस्थान तकनीकी विश्वविद्यालय की ओर से हर साल बीटेक में ओवरआॅल 60 फीसदी स्टूडेंट्स को प्लेसमेंट के जरिए रोजगार उपलब्ध करवाने का दावा किया गया है, जबकि बीटेक व एमटेक स्टूडेंट्स ने आरटीयू की प्लेसमेंट रेट 35 से 40 फीसदी ही बताया है। दैनिक नवज्योति ने कैम्पस में  बीटेक थर्ड व फोर्थ ईयर और एमटेक के स्टूडेंट्स से बात की तो उन्होंने विश्वविद्यालय द्वारा किए दावों को खारिज कर दिया।  साथ ही प्लेसमेंट के दौरान होने वाली समस्याओं पर भी खुलकर अपनी बात रखी। इस दौरान छात्रहित को देखते हुए उनके नाम परिवर्तित कर दिए हैं। पेश हैं प्रमुख अंश....

ओवरओल प्लेसमेंट रेट 35 से 40 फीसदी
बीटेक कम्प्यूटर साइंस फोर्थ ईयर के छात्र महावीर पटेल ने बताया कि 60 फीसदी कैम्पस प्लेसमेंट का दावा सच्चाई से परे है, यह रेट बहुत ज्यादा बताई गई है, जबकि वास्तविकता बीटेक की सभी 11 ब्रांचों को मिलाकर ओवरआॅल 35 से 40 फीसदी विद्यार्थियों को ही प्लेसमेंट से रोजगार मिलता है। अधिकतर विद्यार्थी आउट आॅफ प्लेसमेंट के जॉब पर लगते हैं। वहीं, सिविल इंजीनियरिंग के छात्र विश्वेंद्र खन्ना का कहना है, सिविल इंजीनियरिंग के विद्यार्थियों का बहुत ही कम प्लेसमेंट हो पाता है, क्योंकि कैम्पस में इस क्षेत्र की कम्पनियां नहीं आती। हालांकि, सीएस आईटी की कम्पनियां ही अधिक आती है। इसलिए छात्र इन इंजीनियरिंग की इन दोनों ब्रांचों को ही सबसे ज्यादा प्राथमिकता देते हैं। 

अधिकतर स्टूडेंट्स क्राइट एरिया से ही बाहर
बीटेक मैकेनिकल इंजीनियरिंग के थर्ड ईयर के छात्र हेमंत, साहिल ने बताया कि विश्वविद्यालय में आने वाली कम्पनियां छठे व सातवें सेमेस्टर के विद्यार्थियों के लिए आती हैं, लेकिन उनके क्राइट एरिया में फर्स्ट डिविजन वाले विद्यार्थियों को ही शामिल किया जाता है। साथ ही किसी भी विषय में बैक नहीं होने की कंडीशन रखी जाती है, ऐसे में किसी ब्रांच में 80 स्टूडेंट्स हैं तो उनमें से आधे तो रोजगार की दौड़ से वैसे ही बाहर हो जाते हैं। शेष बचे इंटरव्यू में निकाल दिए जाते हैं। असल में कम्पनियों को चुनिंदा ही एम्पलोई चाहिए होते हैं। वहीं, एयरोनोटिकल इंजीनियरिंग के थर्ड ईयर के मुकेश ने बताया कि पिछले साल 4 स्टूडेंट्स का ही चयन हुआ था, जबकि सातवें सेमेटर में करीब 30 से ज्यादा स्टूडेंट्स थे।  

गत वर्ष रोजगार देकर मुकर गई कम्पनी
एमटेक कम्प्यूटर साइंस के छात्र हरिहंत वैष्णव का कहना है, गत वर्ष प्लेसमेंट कैम्प में आईटी कम्पनी में बीटेक कम्प्यूटर साइंस व इनफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के तीन विद्यार्थियों का चयन हुआ था। उन्हें आॅफर लेटर भी दिए गए थे लेकिन फाइनल एग्जाम देकर जब कम्पनी ज्वाइंन करने पहुंचे तो वहां आर्थिक मंदी का हवाला देते हुए कम्पनी ने जॉब देने से साफ इंकार कर दिया। कई कम्पनियां विद्यार्थियों के साथ ऐसे विश्वासघात भी करती है। 

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इंजीनियरों से कम्पनी करवाती है मार्केटिंग 
बीटेक इनफोर्मेशन टेक्नोलॉजी के पासआउट स्टूडेंटस योगेश ने बताया कि राजस्थान  टेक्नीकल यूनिवर्सिटी में प्लेसमेंट कैम्प में प्लैनेट स्पार्क जैसी सेल्स एंड मार्केटिंग कम्पनियां भी आती हैं, जो इंजीनियरों से आॅन लाइन कोर्स बेचने का काम करवाती है। रोजगार की तलाश में छात्र ऐसी कम्पनियों को ज्वाइंन कर तो लेता है लेकिन दो-तीन माह में उसे नौकरी छोड़नी पड़ती है। गत वर्ष भी दो बच्चों को नौकरी छोड़नी पड़ी थी। टेक्नीकल यूनिवर्सिटी में सेल्स कम्पनियों का क्या काम है। विवि 60 फीसदी प्लेसमेंट का दावा कर रहा है तो कॉलेज की वेबसाइड पर विद्यार्थी का नाम और किस कम्पनी में प्लेसमेंट मिला यह जानकारी अपलोड कर पारदर्शिता बरते। सच्चाई सामने आ जाएगी। 

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