नन्ही बेटियां ही नहीं साड़ी पहनकर महिलाएं भी चलाती हैं यहां तलवार

दुर्गाशक्ति व्यायामशाला:5 से 40 साल तक की लड़कियां खुद को कर रही मजबूत

नन्ही बेटियां ही नहीं साड़ी पहनकर महिलाएं भी चलाती हैं यहां तलवार

व्यायामशाला में 2 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक कि बालिकाएं व महिलाएं हर दिन शाम होते ही घर के काम खत्म कर अभ्यास में जुट जाती हैं।

कोटा। लड़कियों को हर मुसीबत, हर परेशानी का डटकर मुकाबला करने के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए और उस तैयारी के लिए जरूरी है शारीरिक रूप से मजबूत होना । ये मानना था शहर के पहली महिला व्यायामशाला यानि दुर्गाशक्ति व्यायामशाला कि उस्ताद सीतादेवी सुमन का। सीता देवी तो नहीं रहीं लेकिन आज भी उनके द्वारा स्थापित अखाड़ा आबाद है। इस अखाड़ें में पांच साल की बच्ची कोमल से लेकर प्रौढ़ संतोष सुमन तक तलवार, बल्लम और चकरी चला कर सबको अचंभित कर देती हैं। अब संतोष सुमन इस अखाड़े का कार्यभार संभाल रही हैं। स्वर्गीय सीतादेवी के नक्शे कदम पर चलते हुए आज उनकी बेटियां और बहुएं इस परम्परा को आगे बढ़ा रहीं हैं। शहर के केशवपुरा इलाके में स्थित दुर्गाशक्ति व्यायामशाला में हर साल कि तरह इस साल भी अनन्त चतुर्दशी पर निकाले जाने वाले जुलूस को लेकर महिलाओं ने तैयारी शुरू कर दी है और पूरे जोर शोर के साथ अपनी कलाबाजियों को निखार रहीं हैं। व्यायामशाला में 2 वर्ष से लेकर 40 वर्ष तक कि बालिकाएं व महिलाएं हर दिन शाम होते ही घर के काम खत्म कर अभ्यास में जुट जाती हैं। इस बार जुलूस के प्रदर्शन को और अच्छा बनाने के लिए वो त्रिशूल के साथ अभ्यास कर रहीं हैं वहीं त्रिशुल के साथ कलाबाजी व्यायामशाला कि ओर से पहली बार की जाएगी। अखाड़े कि सभी महिलाएं और बालिकाएं सभी तरह के करतब की हर दिन साड़ी पहनकर अभ्यास करती हैं जो अपने आप में ही एक मुश्किल काम है। 

सास से बहु ने सीखा व्यायामशाला चलाना
व्यायामशाला में गणेश चतुर्थी और नवरात्रा आने के साथ ही उत्साह का माहौल शुरू हो जाता है और महिलाएं दस दिन तक अनन्त चतुर्दशी कि तैयारियों में जुट जाती हैं। उस्ताद संतोष सुमन ने बताया कि उनकि सास ने इस व्यायामशाला कि शुरूआत सन् 1985 में तब की थी जब वो पहली बार एक महिला के तौर पर जिला कुश्ती संघ में शामिल हुई थी। वहां उन्होंने पुरूष पहलवानों को कुश्ती करता देखकर महिलाओं के लिए भी व्यायामशाला चलाने का ठान लिया। शुरूआत में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा पर उन्होंने हार ना मानते हुए इसे चलाए रखा और आज इस व्यायामशाला में करीब 150 बालिकाएं या महिलाएं हर दिन हैरतंगेज करतबों का प्रदर्शन करती हैं। 

ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें 
व्यायामशाला कि दीपलता सुमन ने बताया कि वो 2005 से इस व्यायामशाला में अभ्यास कर रहीं हैं और शादी के बाद भी उनका अभ्यास जारी है। दीपलता हर साल आयोजित होने वाले अखाड़े में भाग लेती हैं। दीपलता सुमन साल 1992 व 1993 में हिसार में आयोजित हुए नेशनल जूडो चैपिंयनशिप के 26 किग्रा में विजेता भी रहीं है। वहीं सीतादेवी कि दूसरी बेटी पिंकलता का कहना है कि मां ने हमेशा हर मुसीबत और परेशानी से डटकर मुकाबला करना सिखाया है और आज हम भी हमारे बच्चों को यही शिक्षा देते हैं, मां ने घर के काम ना करवाकर हमें अखाड़े और कुश्ती के दांव पेंच सिखाए जिससे हम आत्म निर्भर बन सकें। व्यायामशाला में अभ्यास करने वाली ज्योति सुमन ने बताया कि छोटे होने पर पहले हमें करतबों से डर लगता था पर जब सीतादेवी के बारे में सुना तो हम भी अपने डर को भुलाकर कुश्ती व अखाड़े का अभ्यास करना शुरू कर दिया और आज हम खुदको बहुत मजबूत महसूस करते हैं जो किसी भी परेशानी का सामना कर सकते हैं। 

खुदको मजबूत बना पाते हैं
बालिका कोमल ने बताया कि यहां आना और अखाड़े कि प्रैक्टिस करना बहुत अच्छा लगता है और पै्रक्टिस से हम खुदको मजबूत बना पाते हैं। वहीं व्यायामशाला में प्रैक्टिस करने वाली महिलाओं का कहना है कि व्यायामशाला कि उस्ताद सीतादेवी शहर कि पहली महिला पहलवान थी जिन्होंने महिला अखाड़े कि शुरूआत की और प्रशासन को उन्हें सम्मान देते हुए शहर में उनकी मुर्ति कि स्थापना करनी चाहिए ताकि और महिलाएं प्रोत्साहित हों।

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