रामलला की मूर्ति का गौरव मिला मैसूरू के मूर्तिकार को
प्रदेश के कई हिन्दू मंदिरों में परिवार द्वारा बनाई गई मूर्तियां स्थापित हैं
मूर्ति तराशने का काम अयोध्या में 6 महीने पहले शुरू किया था। उन्होंने इसके लिए कृष्णशिला को चुना था, जो कर्नाटक के कुछ इलाकों में पाई जाती है।
कर्नाटक के ऐतिहासिक नगर मैसूरू के एक पुराने मोहल्ले में कश्यप शिल्पकला केंद्र एक ऐसा भवन है, जहां के निवासी पिछली पांच पीढ़ियों से पत्थर से मूर्तियों का निर्माण करते आ रहे हैं। इस परिवार ने न केवल मैसुरू के पूर्व राजघराने के पत्थर और संगमरमर की मूर्तियां बनाई है बल्कि प्रदेश के कई हिन्दू मंदिरों में इस परिवार द्वारा बनाई गई मूर्तियां स्थापित हैं। यह मकान न केवल इस परिवार का निवास स्थान है बल्कि इसी में मूर्तियां बनाने की कार्यशाला भी है।
इसी परिवार की पांचवीं पीढ़ी से आने वाले लगभग 40 वर्षीय योगीराज शिल्पी ने इन्जीनीरिंग की पढ़ाई कर एक बड़ी कॉर्पोरेट कम्पनी में नौकरी शुरू की। चूंकि इस युवक ने बचपन से ही अपने घर के पिछवाड़े में बनी कार्यशाला में अपने पिता और दादा को पत्थर की मूर्तियां तराशते देखा था। इसलिए उसके दिल में तब से ही कलाकार पैदा हो गया था। अखिकार उसने लगभग 15 वर्ष पूर्व अच्छी खासी नौकरी छोड़कर मूर्तियां बनाने की परिवार की परम्परा को आगे बढ़ने का निर्णय किया। वे अब तक एक हजार से भी अधिक मूर्तियां बना चुके। कई मूर्तियां तो देश के प्रमुख स्थानों पर देखी जा सकती है।
पहली बार उनका नाम तब सुर्खियों में आया जब कुछ वर्ष पूर्व प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केदारनाथ में इस शिल्पकार द्वारा बनाई गई आदि शंकराचार्य की मूर्ति का अनावरण किया। 12 फीट ऊंची यह मूर्ति काले पत्थर से बनाई गई थी। उस समय कई शिल्पकारों से शंकराचार्य की मूर्ति का प्रारूप बनवा गया था। आखिर में अरुण योगीराज द्वारा बनाए गए प्रारूप को स्वीकार किया था। तब नरेंद्र मोदी ने इस प्रारूप को बहुत सराहा था तथा इस मूर्तिकार को मिलने के लिए भी बुलाया था।
इसी प्रकार पिछले साल नई दिल्ली के इंडिया गेट के पास खाली पड़ी छत्री में पं. नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की विशाल प्रतिमा लगाने का निर्णय किया गया तो कई कलाकारों से प्रारूप आमंत्रित किए गए थे। यह प्रतिमा 28 फीट ऊंची तथा काले पत्थर से बननी थी। इस प्रतियोगिता में भी अरुण योगीराज को ही मूर्ति बनाने के लिए चुना गया। उन्होंने इस प्रतिमा के निर्माण के लिए दिल्ली में कार्यशाला स्थापित की और कर्नाटक से काला पत्थर लाकर नेताजी के प्रतिमा को रिकॉर्ड समय में पूरा किया।
इसी प्रकार अयोध्या में जब जन्म स्थान पर बने रहे रामलला के मंदिर में उनकी बाल अवस्था की मूर्ति बनाने के लिए देश के मूर्तिकारों को इसका प्रारूप तैयार करने को कहा गया। इसमें बहुत से प्रारूप आए, लेकिग मंदिर निर्माण समिति ने इनमें से तीन को चुना। तीनों प्रारूप इतने सुंदर और आकृषित थे कि चयन समिति इस दुविधा में थी कि इनमें से किस का चयन किया जाए। आखिर में यह तय हुआ कि तीनों शिल्पकारों से मूर्तियां बनवाई जाएं। जब ये मूर्तियां तैयार हो जाएँगी, तब निर्णय किया जाएगा कि इनमें से किसकी प्राण प्रतिष्ठा की जाएगी। इन तीन शिल्पकारों में एक अरुण योगिराज भी था। यह मूर्तियां 51 ईंच ऊंची तथा पांच वर्ष के बाल्यकाल की बननी थी। मूर्तियां पिछले महीने तैयार हो गई थीं। मूर्ति का चयन करने वाली समिति ने इन तीनों मूर्तियों का नरीक्षण किया तथा अरुण योगीराज की मूर्ति का चयन किया। हालांकि अभी इसकी औपचारिक घोषणा होनी है लेकिन यह साफ हो गया है कि अरुण योगीराज द्वारा बनाई गई मूर्ति का चयन हो गया है। इसको लेकर कर्नाटक और विशेषकर मैसूरू में जश्न का माहौल है। न केवल स्थानीय बल्कि अन्य स्थानों से प्रशंसक उनके परिवार के सदस्यों को बधाई दे रहे है। खुद अरुण योगीराज अभी अयोध्या में हैं तथा मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही लौटेंगे।
उन्होंने मूर्ति तराशने का काम अयोध्या में 6 महीने पहले शुरू किया था। उन्होंने इसके लिए कृष्णशिला को चुना था, जो कर्नाटक के कुछ इलाकों में पाई जाती है। उनके परिवार के सदस्यों का कहना है कि जब से उन्होंने मूर्ति तराशने का काम शुरू किया है तब से वे एक बार भी घर नहीं आए है। वे पूरे श्रद्धा भाव से मूर्ति के निर्माण करने में लगे रहे। मूर्ति तराशने का काम नित्य पूजा किए जाने के बाद शुरू होता था, जो दिनभर चलता रहता था। उनकी पत्नी विजयेता का कहना है कि बीच-बीच में वे मूर्ति के निर्माण में होने वाली प्रगति के बारे में भी बताते रहते थे। अरुण योगीराज को मंदिर ट्रस्ट की ओर से प्राण प्रतिष्ठा में भाग लेने के लिए विधिवत रूप से आमंत्रित किया गया है।
- लोकपाल सेठी
(ये लेखक के अपने विचार हैं)
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