पांच साल के बच्चे में राम को ढूंढ़ने की चुनौती थी रामलला ने खुद तय किया मुझसे क्या बनवाना है

प्राण-प्रतिष्ठा के बाद प्रतिमा का रूप ही बदल गया, लगा मानो ये मेरा काम नहीं है

पांच साल के बच्चे में राम को ढूंढ़ने की चुनौती थी रामलला ने खुद तय किया मुझसे क्या बनवाना है

योगीराज कहते हैं कि मैंने एक हजार से ज्यादा फोटो सेव करके रखी थीं। बच्चों के साथ ज्यादा वक्त बिताता था। बच्चों के चेहरे को दिमाग में रखना है किसी बच्चे के मुस्कुराने पर चेहरे में क्या-क्या बदलाव होते हैं, वो सब समझना होता था।

नई दिल्ली। राम मंदिर में रामलला विराजमान हो चुके हैं। चारों तरफ प्रतिमा की चर्चा है। ऐसे में इस प्रतिमा को बनाने वाले कर्नाटक के मूर्तिकार मूर्तिकार अरुण योगीराज ने इसे बनाने के दौरान के अपने अनुभव साझा किए।  योगीराज ने बताया कि उनके लिए पांच साल के बच्चे में राम को ढूंढ़ना सबसे बड़ी चुनौती थी। उन्होने बताया कि कैसे एक कलाकार भक्त के हृदय में भगवान उतरते हैं और मतिष्क तक जाते हैं। फिर पत्थर में समाहित होते और मूर्ति भगवान का आकार लेती है। योगीराज ने बताया कि मुझे बहुत बड़ी जिम्मेदारी दी गई थी। सात महीने से मूर्ति को तराशने के काम में लगे थे दिन-रात सिर्फ यही सोचते थे कि देश को भगवान के दर्शन कैसे करवाएंगे। सबसे पहले हमने पांच साल के बच्चों की जानकारी जुटाई। अरुण कहते हैं कि मैं सात महीने तक ठीक से सो नहीं पाया। सोने के बाद भी दर्शन होते थे।

बच्चों के साथ वक्त गुजारा
योगीराज कहते हैं कि मैंने एक हजार से ज्यादा फोटो सेव करके रखी थीं। बच्चों के साथ ज्यादा वक्त बिताता था। बच्चों के चेहरे को दिमाग में रखना है किसी बच्चे के मुस्कुराने पर चेहरे में क्या-क्या बदलाव होते हैं, वो सब समझना होता था। मेरे रामलला ने मुझे आदेश दिया और मैंने फॉलो किया।

बच्चों को दिवाली मनाते देखा तो मनोभाव समझ में आए
अरुण कहते हैं कि दीपावली के दिन अयोध्या में मुझे बहुत जानकारी मिली।  दीपावली मनाने के बाद रात में मैंने दो तीन फोटो देखीं। इसमें बच्चे अपने माता- पिता के साथ दीपावली सेलिब्रेट कर रहे थे। बच्चों की मनोभावना देखने और समझने का मौका मिल गया था। अरुण ने बताया कि मूर्ति निर्माण होते समय अलग दिखती थी। लेकिन प्राण-प्रतिष्ठा होने के बाद अलग ही फीलिंग आ रही थी। मुझे लग रहा था कि ये मेरा काम नहीं है। ये तो बहुत अलग दिख रही है। जैसे भगवान ने अलग ही रूप ले लिया है। जिस रामलला को सात महीने तक गढ़ा, उसे प्राण-प्रतिष्ठा के बाद मैं खुद नहीं पहचान पाया। गर्भगृह में जाते ही बहुत बदलाव हो गया।

रोज बंदर आकर करता था दर्शन 
योगीराज कहते हैं कि जब वो मूर्ति तराशने का काम करते थे, तब हर दिन शाम 5 बजे एक बंदर आ जाता था। सर्दी में हमने कार्यशाला के तिरपाल को ढक दिया तो वो बंदर बाहर आया और जोर-जोर से खटखटाने लगता था। मैंने ये बात चंपत राय जी को भी बताई थी। शायद हनुमान जी का भी देखने को मन हो।

Post Comment

Comment List

Latest News

मोदी सरकार ने किया रेलवे का नुकसान, लोगों के लिए दुष्कर हुई सेवाएं : लालू मोदी सरकार ने किया रेलवे का नुकसान, लोगों के लिए दुष्कर हुई सेवाएं : लालू
राजद अध्यक्ष ने कहा कि मोदी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार ने रेल का किराया बढ़ा दिया।...
भाजपा के सदस्य बनकर विकास की यात्रा में बने सहभागी : भजनलाल
पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने 10 लाख करोड़ के एमओयू करने का फैलाया झूठ, नहीं हो पाये 1लाख करोड़ के भी निवेश: BJP
कृष्ण बलराम मंदिर में 450 भक्तों ने लिया श्रील प्रभुपाद आश्रय
पैकेजिंग और लेबलिंग में मिली खामियां
जयपुर से कुल्लू के लिए हवाई सेवा होगी शुरू
माँ वैष्णो देवी का सजेगा दरबार, भक्तों को होंगे त्रिकूट पर्वत कटरा जैसे दर्शन