घुटने की सबसे सामान्य चोटों में से एक है एसीएल लिगामेंट इंजरी
अब नई तकनीक से बार-बार एसीएल इंजरी का खतरा नहीं, सिंथेटिक लिगामेंट से सर्जरी ने कई खतरों को किया कम
नई तकनीक सिंथेटिक लिगामेंट ज्वेल एसीएल आ गई है, जिसकी मदद से बार-बार होने वाली एसीएल लिगामेंट इंजरी को रोका जा सकता है
जयपुर। एथलीट्स और महिलाओं को घुटने की एसीएल की चोट काफी ज्यादा परेशान करती है। इसके लिए सामान्यत: लिगामेंट री-कंस्ट्रक्शन सर्जरी की जाती है, लेकिन इसके बाद भी उन्हें दोबारा चोट लगने के संभावना कहीं अधिक होती है। इसके लिए अब नई तकनीक सिंथेटिक लिगामेंट ज्वेल एसीएल आ गई है, जिसकी मदद से बार-बार होने वाली एसीएल लिगामेंट इंजरी को रोका जा सकता है। यह तकनीक सिर्फ एथलीट्स ही नहीं, बल्कि महिलाओं और मोटापे से ग्रस्त लोगों में भी बेहद कारगर है।
सामान्य एसीएल री-कंस्ट्रक्शन सर्जरी से कहीं बेहतर
राजधानी जयपुर के सीनियर आर्थोस्कोपिक सर्जन एंड स्पोर्ट्स इंजरी एक्सपर्ट डॉ. अरुण सिंह ने बताया कि एथलीट्स में खेलते वक्त या सामान्य लोगों में भी किसी गलत मूवमेंट या एक्सीडेंट से घुटने की एंटीरियर क्रूशिएंट लिगामेंट यानी एसीएल के टूटने की चोट को एसीएल इंजरी कहते हैं। इसमें व्यक्ति को चलने-फिरने में तेज दर्द और चलने में लचक आती है। सामान्यत: आर्थोस्कोपी से इसकी सर्जरी में शरीर में से ही लिगामेंट लेकर प्रभावित हिस्से में लगाकर री-कंस्ट्रक्शन किया जाता है। जिन एथलीट्स की मूवमेंट ज्यादा होती है, उन्हें बार-बार यह इंजरी होने का खतरा होता है। इसके लिए अब सिंथेटिक लिगामेंट ज्वेल एसीएल से यह खतरा बहुत कम हो गया है। यह एक तरह का इंप्लांट है जो प्राकृतिक लिगामेंट से कहीं अधिक मजबूत है और इसके टूटने की संभावना न के बराबर है।
महिला और मोटापे से ग्रस्त लोगों में खतरा ज्यादा
डॉ. अरुण ने बताया कि यह तकनीक महिलाओं और मोटापे से ग्रस्त लोगों के लिए काफी फायदेमंद है। महिलाओं और मोटे लोगों में एसीएल ग्राफ्ट काफी पतला मिलता है। ऐसे में उनके लिगामेंट री-कंस्ट्रक्शन के बाद इस पतले लिगामेंट टूटने की संभावना अधिक होती है। महिलाओं में तो एसीएल इंजरी का खतरा पुरुषों की अपेक्षा छह गुना ज्यादा होता है। नई तकनीक से सर्जरी में मरीज की जल्दी रिकवरी होती है। मरीज जल्दी अपनी सामान्य जीवनचर्या में लौट सकता है। वहीं खिलाड़ी भी खेल के मैदान पर जल्दी लौट सकता है।
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