वन विभाग के इशारे पर प्लांटेशन में ही काट दी प्लानिंग

बारां फोरलेन से सटा 50 हैक्टेयर का लखावा-8 प्लांटेशन

वन विभाग के इशारे पर प्लांटेशन में ही काट दी प्लानिंग

हर वर्ष पौधों की सार संभाल के लिए कैम्पा से मिल रहा 11 लाख का बजट।

कोटा। नेशनल हाइवे-27 स्थित लाडपुरा रैंज के लखावा-8 मेटिगेटिव प्लांटेशन में वन विभाग के इशारे पर माफियाओं ने खुलेआम प्लानिंग काट दी है। इतना ही नहीं, 50 हैक्टेयर के इस प्लांटेशन में सीसी सड़क बन गई और बिजली के खम्भे भी खड़े हो गए। हैरानी की बात यह है, प्लांटेशन में पौधों की सुरक्षा व देखरेख के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में कैम्पा से लाखों का बजट भी मिला। जबकि, वर्तमान में यहां पौधे ही नहीं है तो फिर किसकी सुरक्षा की जा रही है। वहीं, प्लांटेशन बारां फोरलेन से सटा है, इसका मुख्य गेट भी हाइवे किनारे है। बीट गार्ड से लेकर डीएफओ व सीसीएफ तक का यहां से गुजरना होता है। इसके बावजूद अवैध प्लानिंग कट गई और वन विभाग को पता भी नहीं चला। यह मिलीभगत के बगैर संभव नहीं है।  

वन संरक्षण अधिनियम 80 व 1953 का उल्लंघन
लाखावा-8 मेटिगेटिव प्लांटेशन में बिना एफसीए कार्यवाही के आवासीय कॉलोनी कटना, सीसी सड़क बनना, बिजली के पोल खड़े होना और पौधों को नष्ट करवाकर गिट्टी-कंक्रीट बिछाना राजस्थान वन अधिनियम 1953 और वन संरक्षण अधिनियम 1980 का खुला उल्लंघन है। यह प्लांटेशन पांच वर्षीय है, जो 2021-26 तक जारी रहेगा, तब तक प्लांटेशन की देखरेख के लिए कैम्पा से 11-11 लाख प्रति वर्ष यानी आगामी दो वर्षों तक कुल 22 लाख का बजट मिलना है।

3 वर्षों में 76 लाख रुपए हो चुके खर्च
लखावा-8 प्लांटेशन 50 हैक्टर में फैला हुआ है। जिसकी शुरुआत  2021-22 में हुई है। इसमें जल संरक्षण के लिए नालियां बनाना, पौधरोपण के लिए गड्ढ़े खुदवाना, मिट्टी डलवाने सहित अन्य कार्य के लिए भारत सरकार के कैम्पा मद से 40 लाख का बजट वन विभाग को मिला था। इसे अग्रिम कार्य वर्ष कहते हैं। इसके बाद प्लांटेशन का प्रथम वर्ष 2022-23 में शुरू हुआ, जिसमें  10 हजार पौधे लगाने के लिए 25 लाख रुपए का बजट मिला। फिर, 2023-24 में प्लांटेशन का द्वितीय वर्ष शुरू हुआ। जिसमें पौधों को पानी पिलाना, देखरेख, सुरक्षा, चौकीदारी के लिए 1 अप्रेल 2023 को 11 लाख का बजट मिला। इस तरह प्लांटेशन के नाम पर इन तीन वर्षों में वन विभाग ने कुल 76 लाख रुपए खर्च कर दिए। जबकि, वर्तमान में यहां न तो चौकीदार है और न ही पौधे। बल्कि, वन अधिकारी व कर्मचारियों के इशारे पर माफियाओं ने प्लानिंग काट दी।

क्या है मेटिगेटिव प्लांटेशन योजना 
हैंगिंग ब्रिज स्थित नेशनल हाइवे-27 के निर्माण में वन भूमि अवाप्त हुई थी। यहां से गुजरने वाले वाहनों के प्रदूषण को कम करने के लिए सर्वोच्चय न्यायालय की सीईसी (सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी) की देखरेख में हाइवे के दोनों तरफ 2 किमी चौड़ी वृक्षारोपण की हरीतिमा पट्टी विकसित करने के निर्देश हैं। इसी उद्देश्य पूर्ति के लिए हाइवे के दोनों तरफ 2000 हैक्टेयर वन भूमि पर फिर से जंगल बसाने के लिए वर्ष 2010 में एनएचआई ने हाइवे बनाने के लिए अवाप्त की जमीन के बदले भारत सरकार के कैम्पा मद में पैसा जमा करवाया था। इसी पैसे से विभिन्न नामों से भिन्न भिन्न चरणों में प्लांटेशन  करवाए जा रहे हंै। जिसमें लखावा-8 प्लांटेशन भी शामिल है। 

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वर्ष 2026 तक मिलेगा 22 लाख बजट
लखावा-8 प्लांटेशन वर्ष 2025-26 तक रहेगा। ऐसे में भारत सरकार के कैम्पा मद से कोटा वन मंडल को पौधों की सुरक्षा के लिए आगामी दो वर्षों तक 11-11 लाख का बजट मिलना प्रस्तावित है।  

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कट चुके 70 से 80 प्लाट
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, प्लांटेशन कुल 50 हैक्टेयर में फैला हुआ है। जिसमें से माफियाओं ने करीब 2 हैक्टेयर में प्लानिंग काटी है, इसमें प्लाटों की संख्या करीब 70 से 80 बताई गई है। अब तक 25 से 35 प्लाट बिक चुके हैं।

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नवज्योति मौके पर पहुंची तो चौंकाने वाले थे हालात
नेशनल हाइवे-27 स्थित लखावा-8 प्लांटेशन पर नवज्योति पहुंची तो वहां के हालात चौंकाने वाले थे। प्लांटेशन की चार दीवारी पर गेट लगा हुआ है, जहां वन विभाग लखावा मेटिगेटिव प्लांटेशन-8 लिखा हुआ है। गेट से थोड़े आगे तक गिट्टियां फैली हुई थी। यहां से आगे चलते ही सीसी सड़क और बिजली के पोल लगे हुए हैं। जिनसे बिजली के तार भी निकल रहे हैं। यहां न तो चौकीदार मिला और न ही झौपड़ी। जगह-जगह निर्माण सामग्री फैली हुई थी। पौधे एक भी नजर नहीं आए। ऐसे में सवाल उठता है, जब यहां पौधे ही नहीं है तो किसके नाम पर हर साल बजट उठाया जा रहा है।

लखावा-8 प्लांटेशन में यदि ऐसा हो रहा है तो यह बहुत गंभीर है। इसकी जांच करवाकर दोषियों के खिलाफ तुरंत कार्रवाई करेंगे।
- रामकरण खैरवा, संभागीय मुख्य वन संरक्षक एवं क्षेत्र निदेशक, वन  विभाग कोटा

मौका देखे बिना कुछ नहीं कह सकते, वास्तविक स्थिति देखने के बाद ही किसी निर्णय  पर पहुंचेंगे।
- अपूर्व कृष्ण श्रीवास्तव, डीएफओ, वन मंडल कोटा

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