ड्रिप सिंचाई लौटा सकती है पौधों के प्राण
मुरझाए पौधों से बदरंग हो रही शहर की सुंदरता : हर साल पानी न मिलने से बर्बाद होते हैं लाखों पौधे
महीनों में एक बार टैंकरों से करते हैं सिंचाई।
कोटा। शहर को सुंदर बनाने के लिए डिवाइडरों में लगाए पौधे हर साल पानी न मिलने से बर्बाद हो रहे हैं। महीनों में तो कभी साल में एक बार टैंकरों से पानी दिया जाता है, लेकिन पानी की तेज धार मिट्टी के साथ पोषण तत्व भी सड़कों पर बहा ले जाती है। जिससे पौधों का गुलिस्तां खिलने से पहले ही मुरझा जाता है। ऐसे में ड्रिप सिंचाई पद्धति दम तोड़ते पौधों को जीवनदान देने में कारगर साबित हो सकती है। कृषि वैज्ञानिकों का तर्क है, इस तकनीक से प्रशासन को न केवल लाखों लीटर पानी की बचत होगी बल्कि पौधों की खरीद, रखरखाव पर खर्च होने वाला करोड़ों रुपए बर्बाद होने से बच सकेगा। पेश है खबर के प्रमुख अंश...
40 मिनट में एक किमी कवर करता है सिस्टम
राकेश कुमार जैन ड्पि व स्प्रिंकल के व्यापारी बताते हैं कि ड्रिप इरिगेशन सिस्टम स्थापित किया जाए तो शहर के डिवाइडरों में लगे पौधों को जीवनदान मिल सकता है। इस सिस्टम की मदद से एक से डेढ़ किमी सड़क के डिवाइडर में लगे पौधों को पानी देने में मात्र 40 मिनट का समय लगेगा। इस दौरान पानी करीब 1 से 1.5 मीटर गहराई तक पहुंच जाएगा, जिससे जड़ों तक नमी बनी रहेगी। वहीं, टैंकरों से दिए जाने वाले पानी की 60 से 70 फीसदी बचत हो सकेगी।
जड़ों तक पहुंचेगा सीधे पानी
कृषि वैज्ञानिक नरेश कुमार बताते हैं, ड्रिप सिंचाई सिस्टम आधुनिक प्रणाली है, जिसे बूंद-बूंद सिंचाई भी कहा जाता है। इसमें पानी की अत्यधिक बचत होती है और पानी को पौधों की जड़ों तक बूंद-बूंद करके पहुंचाया जाता है। इससे पौधों को समय-समय पर भरपूर नमी मिलती रहती है। साथ ही मिट्टी में पोषण तत्व खनिज, लवण की उपलब्धता भी बनी रहती है, जो पौधों को पनपाने में अहम भूमिका निभाते हैं। ड्रिप सिंचाई प्रणाली वाल्व, पाइप, ट्यूबिंग और एमिटर के नेटवर्क के माध्यम से पानी का छिड़काव करती हैं।
ड्रिप इरिगेशन सिस्टम के लाभ
- ड्रिप सिंचाई में पानी का उपयोग 40 प्रतिशत तक होता है और 70 प्रतिशत पानी की बचत हो सकती है।
- पौधों को जरूरत अनुसार सही मात्रा में पानी दिया जा सकता हैं।
- ड्रिप सिंचाई से पम्पिंग के लिए ऊर्जा लागत कम आती है तथा कम दबाव में भी सिंचाई हो सकती है।
- ड्रिप सिंचाई से खरपतवार पनप नहीं पाते और पानी सीधे जरूरतमंद पौधों की जड़ों को मिलते हैं।
- इस सिस्टम से पौधों में रोग भी कम होते हैं।
- ड्रिप सिंचाई में मजदूरों की आवश्यकता नहीं होती हैं क्योकि स्वचालन संभव है।
- इससे बहुत बड़े क्षेत्र में भी सिंचाई आसानी से हो सकती है।
- पोषक तत्वों के होने वाले नुकसान को ड्रिप सिंचाई द्वारा कम किया जा सकता हैं।
ऐसे काम करता है ड्रिप सिस्टम
बूंद-बूंद सिंचाई पद्धति में पानी की टंकी को मुख्य पाइप लाइन से जोड़ते हैं, फिर इस लाइन से लेट्रल पाइप लाइन को पौधों की कतार के अनुसार बिछाते हैं। लाइन में पानी का दबाव पम्प की सहायता से बनाया जाता हैं। इस सिस्टम में वाल्व, प्रेशर,रेगुलेटर, फिल्टर गेज तथा फर्टिलाइजर टैंक भी लगे होते हैं, जिसमें पानी के साथ खाद व अन्य घुलनशील तत्वों की मात्रा निर्धारित कि जा सकती हैं। ड्रिपर लाइन की लंबाई पौधों के बीच की दूरी पर निर्भर करती हैं। पाइप लाइन के सभी छिद्रों में पानी समान रूप से निकलता है, जो जड़ों तक पहुंचने के साथ मिट्टी में नमी बनाए रखता है। वहीं, ड्रिप सिंचाई प्रणाली के द्वारा घुलनशील खाद, रसायन व पौधों के लिए आवश्यक सूक्ष्म तत्व सिंचाई के समय डाले जा सकते हैं।
अभी लाखों लीटर पानी हो रहा बर्बाद
शहर में अधिकतर डिवाइडरों में पौधे नगर विकास न्यास की ओर से लगाए गए हैं। जिनकी देखरेख की जिम्मेदारी भी इन्हीं की है। इसके बावजूद अधिकारियों द्वारा नियमित पानी की व्यवस्था नहीं करवाई जाती। हालांकि, महीनों में तो कभी साल में एक बार टैंकरों से पानी दिया जाता है। जिससे लाखों लीटर पानी सड़कों पर यूं ही व्यर्थ बह जाता है। जबकि, इसके मुकाबले ड्रिप इरिगेशन सिस्टम लगाए जाएं तो पानी के साथ मेंटिनेंस के अन्य खर्चों की बचत हो सकती है।
यह बहुत अच्छा सुझाव है, इस पद्धति से पानी, समय, लागत व मेनपावर की बचत हो सकेगी। इंजीनियरों की बैठक लेंगे, जिसमें इस सुझाव पर चर्चा कर मूर्त रूप देने के प्रयास करेंगे।
- कुशल कोठारी, सचिव, नगर विकास न्यास कोटा
उच्चाधिकारियों के समक्ष सुझाव रखेंगे। जहां से इस संबंध में जो भी निर्देश प्राप्त होंगे, उसी के अनुसार कार्य किए जाएंगे।
- चंद्रप्रकाश मीणा, एक्सईएन, नगर विकास न्यास
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