सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

विपक्षी कांग्रेस का उत्साह इन दिनों देखने लायक। लोकसभा में उसे दस साल बाद नेता प्रतिपक्ष का पद मिलने जा रहा। आखिर 99 सीटों पर जीत जो दर्ज की। वहीं, कांग्रेस ने भाजपा को 272 सीटें पार नहीं करने दीं।

कांग्रेस का उत्साह!
विपक्षी कांग्रेस का उत्साह इन दिनों देखने लायक। लोकसभा में उसे दस साल बाद नेता प्रतिपक्ष का पद मिलने जा रहा। आखिर 99 सीटों पर जीत जो दर्ज की। वहीं, कांग्रेस ने भाजपा को 272 सीटें पार नहीं करने दीं। कांग्रेस के लिए यह बड़ी राजनीतिक उपलब्धि। चाहे इसके लिए अपना हित त्यागकर सहयोगी दलों के साथ खड़ा होना पड़ा। इसीलिए अब कांग्रेस महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रही। इससे एनसीपी और शिवसेना-यूबीटी असहज! यहां तक कि उत्तर प्रदेश में दस विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव में भी अपने लिए हिस्सा मांग रही। इससे सपा असहज। उधर, प्रियंका गांधी वायनाड से लोकसभा उपचुनाव लड़ेंगी। जबकि 2026 में केरल में विधानसभा चुनाव। जहां उसका मुकाबला वामदलों से। लेकिन क्या वामदल आसानी से कांग्रेस को जीतने देंगे? क्योंकि राहुल गांधी के सामने भाकपा की एनी राजा सामने थीं।

दक्षिण से आहट!
तमिलनाडु में भाजपा एक भी सीट नहीं जीत सकी। लेकिन अब उसके लिए अनुकूलता की आहट! असल में, आम चुनाव से पहले एडीए गठबंधन से अलग होने वाली एआईएडीएमके में हार के बाद राजनीतिक हलचल। पार्टी के भीतर पूर्व सीएम ईपीएस पलानीस्वामी के खिलाफ बगावत के सुर। जयललिता की खास रहीं शशिकला ने फिर से मुख्य धारा में आने की इच्छुक। हालांकि उन्होंने जेल से बाहर आने के बाद राजनीति से दूरी बना ली थी। लेकिन फिर से राजनीति का कीड़ा जाग गया। जो भाजपा के लिए सुखद। पूर्व सीएम ओपीएस पहले ही भाजपा के साथ सहज। ऐसे में बिखरी हुई एआईएडीएमके में एका की संभावना। क्योंकि अगला विधानसभा चुनाव मानो जयललिता की पार्टी के लिए अस्तित्व का सवाल। इधर, भाजपा उसके साथ आने को तैयार। लेकिन गठबंधन भाजपा की शर्तों पर होगा। जिसके लिए एआईएडीएमके तैयार होगी! क्योंकि भाजपा दिल्ली की सत्ता संभाल रही।

समझदारी दिखाई...
राहुल गांधी ने इस बार अपना जन्मदिन देश में ही मनाया। वैसे ही, जैसे बरसों से पार्टी कार्यकर्ताओं की इच्छा। वह 19 जून को बकायदा कांग्रेस मुख्यालय आए। कैक भी काटा। खुद मल्लिकार्जन खड़गे समेत बड़ी संख्या में पार्टी पदाधिकारी एवं कार्यकर्ता मौजूद रहे। साथ में नारेबाजी, ढोल नंगाड़े बजे, मिठाई बांटी गईं और कार्यकर्ता खुशी से झूमे भी। फिर एआईसीसी में मीडिया का जमावड़ा नहीं हो। यह कैसे संभव? सो, वह भी मौजूद रहा। लेकिन देरी तो नहीं हो गई? जब कांग्रेसनीत संप्रग केन्द्र की सत्ता में लगातार दस साल रहा। तो राहुल गांधी ऐन मौके पर विदेश चले जाया करते थे। और कार्यकर्ता उनके बिना ही बधाई और शुभकामनाएं देते रहते। ठीक से राहुल गांधी के जन्मदिन की खुशी नहीं मना पाते थे। लेकिन इस बार एकदम उलट और कार्यकर्ता को बस यही चाहिए। जो पहले होना चाहिए था। कांग्रेस को फायदा होता।

चुनौती, तकरार...
इस बार का संसद सत्र हंगामेदार और सरकार के लिए चुनौतिपूर्ण रहने वाला। फिर दस साल बाद लोकसभा में नेता विपक्ष भी होगा। साथ में, सत्तापक्ष एवं विपक्ष का संख्याबल में अंतर भी कम। क्षेत्रीय एवं छोटे दलों के साथ निर्दलीय भी खासे महत्वपूर्ण। सो, इसका असर सदन में देखने को मिलेगा। सबसे पहली परीक्षा लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव। विपक्ष अपने लिए उपाध्यक्ष का पद मांग रहा। लेकिन मोदी सरकार इसके मूड में नहीं। ऐसे में, लोकसभा अध्यक्ष की कुर्सी के लिए लिए पक्ष-विपक्ष के बीच जोर आजमाइश हो जाए। तो कोई आश्चर्य नहीं। दोनों ओर से तैयारियां हो रहीं। भाजपा अपने सहयोगी दलों से चर्चा कर रही। तो आइएनडीआइए के घटक दल एनडीए में ही फूट डालने की कोशिश में। अब यह कवायद कितना सफल होगी। देखने वाली बात। लेकिन इस बार मानो हालात बहुत बदले हुए। विपक्ष का आत्मविश्वास तगड़ा जोर मार रहा।

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चर्चाएं!
राजस्थान भाजपा नेताओं के राजधानी दिल्ली के दौरे चर्चा में। पहले तो सीएम भजनलाल शर्मा पीएम से मंत्रणा कर गए। फिर राजेन्द्र राठौड़ और सतीश पूनिया भी आला नेताओं से मिल लिए। इधर, जब से विधानसभा चुनाव निपटे। प्रदेश अध्यक्ष को लेकर कानाफूसी। जानकार लोग सामाजिक समीकरणों के लिए से इसे लाजमी मान रहे। जून के अंत तक भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर निर्णय हो जाने की उम्मीद। सो, अगस्त तक प्रदेश भाजपा अध्यक्ष पर निर्णय होने की संभावना। इसी बीच, पांच सीटों पर विधानसभा उपचुनाव भी। उसके बाद नगर निकाय एवं त्रिÞस्तरीय पंचायत चुनावों की हलचल होगी। मतलब कुछ न कुछ राजनीतिक हलचल चलती रहेगी। कई लोग बदलाव की आस लगाकर बैठे हुए। कौन कहां होगा? किस नेता को कहां सेट किया जाएगा? किसी को कुछ पता नहीं। लेकिन माहौल जरूर बनाकर रखा जाता। आखिर राजनीति में चर्चा ही तो सबसे ज्यादा जरूरी!

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बढ़ रही उलझन!
महाराष्ट्र का सियासी समीकरण बहुत उलझा हुआ लग रहा। यह भाजपानीत एनडीए ही नहीं। बल्कि विपक्षी आईएनडीआइए दलों के लिए भी। जिस तरह प्रदेश की 48 सीटों पर चुनाव परिणाम आए। उससे उलझन बढ़ रही। कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन करके सहयोगियों की धड़कनें बढ़ा दी। तो भाजपा की उम्मीद के अनुरूप प्रदर्शन नहीं करने के कारण अजित पवार मानो बोझ बन गए। फिर शिंदे ज्यादा सीटें मांग रहे। सो, भाजपा अकेले ही उतरेगी या शिंदे की मांग पर सोचेगी? उधर, शरद पवार का उम्मीद से बेहतर प्रदर्शन। उद्धव ठाकरे अभी भी एमवीए में मुख्य भूमिका चाहते। ऐसे में, आगे क्या? यही देखना दिलचस्प। असल में, महाराष्ट्र देश की आर्थिक राजधानी। भाजपा को हर कीमत पर यहां सत्ता चाहिए। तो शिवसेना जानती। विधानसभा चुनाव के बाद मुंबई नगर निगम का चुनाव सामने होगा। यानी उद्धव ठाकरे दोराहे पर। क्योंकि फिर राज ठाकरे भी मैदान में होंगे।

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नया क्या?
18वीं लोकसभा का पहला सत्र आज से शुरू हो रहा। जिसमें नवनिर्वाचित सांसदों को शपथ दिलवाने, नए अध्यक्ष का चुनाव एवं राष्ट्रपति द्वारा दोनों सदनों को संयुक्त संबोधन होगा। लेकिन इस बार नया क्या होगा? असल में, कई दल गायब या उनकी ताकत कम हो गई। जिसमें एआईएडीएमके, पीडीपी, बीआरएस, बीजद, अकाली दल, वामदल एवं वायएसआर कांग्रेस जैसे शामिल। हां, कई महापुरूषों की प्रतिमाएं एक ही स्थान पर स्थापित कर दी गईं। संसद भवन परिसर की सुरक्षा सीआईएसएफ के हवाले। परिसर को नई साज सज्जा दी जा रही। सत्तापक्ष एवं विपक्ष के बीच संख्या बल के मामले में अंतर कम हुआ। लेकिन कई दल ऐसे भी। जिनके बारे में संदेह बरकरार। वह इधर या उधर कितने समय तक रहेंगे? यह कब पाला बदल लें। कुछ कहा नहीं जा सकता। जिन पर जानकारों की नजरें रहने वालीं। और इसकी पहली परीक्षा लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होगा!

दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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