480 छात्राएं, 97 कुर्सियां, कहां बैठे बेटियां

3 साल में छात्राओं की संख्या बढ़ी, टेबल कुर्सियों की नहीं

480 छात्राएं, 97 कुर्सियां, कहां बैठे बेटियां

एक कुर्सी पर एक ही छात्रा बैठ सकती है लेकिन फर्नीचर की कमी से एक कुर्सी पर दो छात्राएं बैठने को विवश हैं।

क ोटा। राजकीय कला कन्या महाविद्यालय रामपुरा की छात्राएं लापरवाही, अनदेखी व उपेक्षा का दंश झेल रही है। कक्षाओं में जहां खड़े रहकर पढ़ना पड़ रहा। वहीं, मिड-टर्म व प्रेक्टिकल फर्श पर बैठकर करना मजबूरी बन गई। दरअसल, कॉलेज में 480 छात्राएं अध्ययनरत हैं, जिनके मुकाबले 97 ही टेबल-कुर्सियां हैं। यह कुर्सियां असल में स्टूलनुमा है। एक कुर्सी पर एक ही छात्रा बैठ सकती है लेकिन फर्नीचर की कमी से एक कुर्सी पर दो छात्राएं बैठने को विवश हैं। हालांकि, फर्नीचर सहित अन्य सुविधाओं के लिए बजट भी मिला था लेकिन समय पर उपयोग नहीं हो सका और अनंत: लैप्स हो गया। 

कॉलेज में उपस्थित थी 127 छात्राएं
नवज्योति 16 अगस्त को रामपुरा कॉलेज पहुंची तो वहां प्रथम वर्ष से तृतीय वर्ष तक कुल 127 छात्राएं उपस्थित मिली थी। कक्षाएं लग रही थीं, ज्योग्राफी की क्लास में कई लड़कियां खड़ी मिली। जिनसे बात करने पर पता चला कि कॉलेज में कुल टेबल-कुर्सियां मात्र 97 में ही हैं। बैठने के लिए पर्याप्त फर्नीचर नहीं होने से लड़कियों ने कॉलेज आना ही बंद कर दिया। इस पर प्राचार्य डॉ. राजेश चौहान से इस दिन उपस्थित छात्राओं का रिकॉर्ड मांगा तो 127 छात्राओं की उपस्थिति मिली। ऐसे में जहां बैठने के लिए टेबल-कुर्सियां ही न हो तो वहां बेटियों को कैसे क्वालिटी एजुकेशन मिलेगी।

साल में 3 बार फीस, फिर असुविधाएं 
छात्राएं एक साल में तीन बार फीस देती है। पहली-एडमिशन व 6-6 माह की सेमेस्टर एग्जाम फीस जमा करवातीं हैं। इसके बावजूद उन्हें मूलभूत सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है। छात्राओं को सांस्कृतिक कार्यक्रम हो या मिड-टर्म फर्श पर ही बैठना पड़ता है।  

लाइब्रेरी, खेल मैदान व एनसीसी भी नहीं
छात्राओं ने बताया कि कॉलेज में लाइब्रेरी नहीं है। जबकि, महाविद्यालयों में यह सुविधा होना अनिवार्य है। इसके अलावा खेल मैदान नहीं है। इस वजह से स्पोट्स एक्टिविटी नहीं हो पाती। कक्षाओं के पीछे झाड़-झाड़ियों का जंगल खड़ा है। बारिश के दिनों में जहरीले जीव-जंतुओं का खतरा बना रहता है। इसके अलावा कैंटिन तक की सुविधाएं नहीं है। वहीं, तीन साल से एनसीसी भी नहीं है। 

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बजट मिला और हो गया लैप्स
गत वर्ष अक्टूबर में रामपुरा महाविद्यालय के लिए 4.50 लाख रुपए का बजट नोडल महाविद्यालय जेडीबी आर्ट्स को मिला था। उस समय बजट खर्च करने में किसी भी तरह की राजनेतिक प्रतिबंधिता नहीं थी। नोडल प्राचार्य को नोटशीट लिख छात्राओं के लिए टेबल-कुर्सियां खरीदने का आग्रह किया। लेकिन, इस बीच विधानसभा की आचार संहिता लग गई। हटने के बाद फिर से नोटशीट लिखी। सकारात्मक प्रयास नहीं हुए और लोकसभा चुनाव की आचार संहिता लग गई। जब आचार संहिता हटी तो फिर नोटशीट लिख समस्याओं से अवगत कराया। कार्य में देरी होती गई और अनंत: बजट भी लैप्स हो गया। बजट होते हुए भी छात्राओं को सुविधाएं मुहैया नहीं हो सकी।
-डॉ. राजेश चौहान, प्राचार्य रामपुरा कॉलेज  

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टेबल-कुर्सियां खरीदने के लिए आयुक्तालय से दिशा-निर्देश प्राप्त करने को पत्र लिखा है। बजट मांगा है, यदि नहीं मिला तो आयुक्तालय से निर्देश प्राप्त कर विकास समिति से क्रय किया जाएगा। वहीं, जिन परिस्थितियों में गत वर्ष बजट मिला था, उस समय क्रय समिति द्वारा प्रक्रियारत थी लेकिन, विधानसभा व लोकसभा चुनाव की आचार संहिता के कारण प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। 
-प्रो. सीमा चौहान, प्राचार्य जेडीबी आर्ट्स कॉलेज 

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रामपुरा कॉलेज में फर्नीचर की मांग जायज है। गत वर्ष जो बजट लैप्स हुआ है, उसे फिर से दिलवाने का प्रयास करेंगे। लेकिन, इसके लिए रामपुरा और नोडल जेडीबी आर्ट्स दोनों महाविद्यालय के प्राचार्यों द्वारा पत्र देना होगा। जिसके माध्यम से प्रयास किए जाएंगे।  
-डॉ. गीताराम शर्मा, क्षेत्रीय सहायक निदेशक, आयुक्तालय

छात्राएं बोलीं-जमीन पर बैठकर दिया मिड-टर्म 
कॉलेज में सबसे बड़ी समस्या फर्नीचर की है। वर्तमान में 480 छात्राएं अध्ययनरत हैं, जिनके मुकाबले मात्र 97 ही टेबल-कुर्सी है। तृतीय वर्ष में 30 से 35 छात्राओं की उपस्थिति रहती है, जिसके अनुपात में 20 से 25 ही टेबल कुर्सियां हैं। ऐसे में अधिकतर छात्राओं को कक्षा में खड़ा ही रहना पड़ता है। गत वर्ष मिड-टर्म एग्जाम व प्रेक्टिल जमीन पर बैठकर दिया है। 
-अनसूइया मीणा, तृतीय वर्ष 

कोर्स से पहले ही फैकल्टी का कार्यकाला खत्म
 महाविद्यालय में सात विषय संचालित हैं, जिनकी फैकल्टी विद्या संबल पर लगी है। इनका कार्यकाल सेमेस्टर एग्जाम से पहले ही खत्म हो जाता है। ऐसे में प्रेक्टिकल, एग्जाम पैटर्न समझाने व सिलेबस पूरा करवाने वाला कोई नहीं होता। फीस देकर भी परेशान होना पड़े तो कॉलेज में पढ़ने का फायदा ही क्या है। 
-दिव्यांशी कुराड़िया, द्वितीय वर्ष

दो साल से नहीं मिली छात्रवृति
समाज कल्याण की ओर से मिलने वाली छात्रवृति दो साल से छात्राओं को नहीं मिली। यह तीसरा साल चल रहा है, इस बार भी स्कोलरशिप मिलने में संशय है। हर साल फॉर्म भरते और छात्रवृति का इंतजार करते।  इसके लिए नोडल कॉलेज जेडीबी आर्ट्स व समाज कल्याण विभाग भी गए लेकिन कहीं भी छात्रवृति कब मिलेगी, नहीं मिलने का कारण सहित कुछ भी संतोषजनक जवाब नहीं मिल रहा। 
-हर्षिता सुमन, द्वितीय वर्ष
 
कॉलेज आने में प्रतिमाह खर्च होते 3 हजार रुपए
छात्राओं को महाविद्यालय आने-जाने के लिए साधन नहीं मिलते। लड़कियां दूर-दराज से आतीं हैं। मुझे कैशवपुरा से कॉलेज आने के लिए तीन जगहों पर आॅटो बदलना पड़ता है। प्रतिदिन आने-जाने में 100 रुपए खर्च होता है। ऐसे में   एक माह में 3 हजार रुपए का खर्चा होता है। छात्राओं के लिए सरकार को सीएडी व नयापुरा चौराहे पर सिटी बसें लगानी चाहिए। साधन मिलेगा तो लड़कियों की महाविद्यालय में उपस्थिति बढ़ सकेगी। 
-प्रियंका चौधरी, तृतीय वर्ष

ऐसे कॉलेज में क्यों पढ़े जब फर्श पर ही बैठना पड़े 
मैं दो साल से रेगुलर कॉलेज आ रही हूं, लेकिन व्यवस्थाओं में सुधार नहीं देखा। पहले भी छात्राओं को फर्श पर बैठना पड़ता था, अब भी जमीन पर बैठना पड़ता है। कॉलेज में जब कोई सांस्कृतिक प्रोग्राम या सेमिनार होता है तब लड़कियों को फर्श पर ही बिठाया जाता है। इतना ही नहीं, कॉलेज में फ्रेशर पार्टी सहित अन्य कार्यक्रम भी छात्राओं को पैसे इक्कठे करके करने पड़ते हैं। एनसीसी के लिए आश्वासन ही मिले जो अब तक अधूरे हैं। ऐसे कॉलेज में पढ़ने का क्या फायदा जहां बैठने का टेबल-कुर्सियां ही नहीं है।
-देवेंतिका कहार, तृतीय वर्ष

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