तुलना मैसूर व उज्जैन मेलों से, सीखेंगे बारां-बूंदी के मेलों से

नगर निगम की टीम जाएगी बूंदी और बारां के मेलों को देखने

तुलना मैसूर व उज्जैन मेलों से, सीखेंगे बारां-बूंदी के मेलों से

दशहरा मेले में व्यापारियों को आकर्षित करने की लेंगे जानकारी।

कोटा। कहने को तो कोटा का दशहरा मेला राष्ट्रीय स्तर का है। पिछले 130 सालों से यह मेला आयोजित हो रहा है। इस मेले की तुलना मैसूर व उज्जैन के मेलों से की जाती है। लेकिन इस बार दशहरा मेले में व्यापारियों को आकर्षित करने के लिए निगम की टीम बूंदी के तीज और बारां के डोल मेले से सीखेगी। नगर निगम की ओर से 131 वें राष्ट्रीय दशहरा मेले का आयोजन 3 से 28 अक्टूबर तक किया जाएगा। जिसकी तैयारी शुरु कर दी है। दशहरा मेला व अन्य उत्सव आयोजन समिति के अध्यक्ष और समिति सदस्यों के साथ ही अधिकारियों ने मेले से संबधित कामों को तेजी से करना शुरू कर दिया है।  जिन कामों के टेंडर जारी होने हैं उसकी प्रक्रिया शुरू कर दी है।  वहीं दशहरा मेले में अधिक से अधिक व्यापारी आएं और अपनी दुकानें लगाएं। इसके लिए मेला समिति की सलाह पर नगर निगम ने टीम गठित की है। निगम के राजस्व अनुभाग के चार कर्मचारियों को टीम में लिया है। जिनमें से दो कोटा उत्तर व दो कोटा दक्षिण निगम से है। इनके साथ ही मेला समिति के सदस्य व व्यापार संघ के सदस्य भी शामिल किए जाएंगे। यह टीम बूंदी में चल रहे कजरी तीज मेले में और बारां में चल रहे डोल मेले में जाएगी। वहां जाकर मेले को देखेंगे कि किस तरह से मेला भर रहा है। साथ ही वहां के व्यापारियों व दुकानदारों से बात करेंगे कि मेले में उन्हें किस तरह की सुविधा दी जाए जिससे वे कोटा के दशहरा मेले में आकर अपनी दुकानें लगा सके। जानकारों का कहना है कि कोटा का दशहरा मेला राष्ट्रीय स्तर का है जबकि बूंदी व बारां जिलों के मेले उतने बड़े नहीं है। निगम को उन छोटी जगहों के स्थान पर मैसूर व उज्जैन के मेलों में टीम भेजकर वहां से कुछ सीखकर यहां लागू करने का प्रयास करना चाहिए। 

पिछले बोर्ड में मैसूर गए थे मेला समिति के पार्षद
कोटा के दशहरा मेले को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिखाने व मैसूर में आयोजित प्रसिद्ध मेले की व्यवस्थाओं को देखने के लिए पिछले भाजपा बोर्ड में मेला समिति की कई सदस्य मैसूर मेले में गए थे। उनमें महिला पार्षद भी शामिल थी। समिति सदस्यों से वहां निकलने वाली शाही सवारी से लेकर कई व्वस्थाओं को देखा था। टीम ने कोटा में आकर सुझाव भी दिए और वहां की व्तवस्थाओं के बारे में बताया था। लेकिन उसका लाभ कोटा के दशहरा मेले को नहीं मिल सका था। टीम सदस्यों पर हजारों रुपए खर्च करने के बाद भी वहां की व्यवस्थाएं यहां लागू ही नहीं हो सकी। उससे ही बोर्ड का कार्यकाल समाप्त हो गया। 

उद्घाटन के दिन से ही मेला भरवाने का प्रयास
मेला समिति के अध्यक्ष विवेक राजवंशी का कहना है कि वर्तमान में तीज और डोल मेला ही चल रहे हैं। इसलिए टीमों को वहां भेजा जा रहा है। यदि मैसूर व उज्जैन को मेला चल रहा होता तो वहां भेजते। हालांकि उ’जैन के वाहन मेले की तर्ज पर यहां भी इस बार वाहन मेला लगाने की योजना है। उसके लिए जीएसटी में 50 फीसदी छूट की मांग की गई है।  उन्होंने बताया कि मेला समिति का प्रयास है कि दशहरा मेला पहले दिन उद्घाटन के साथ ही पूरा भरे न कि 9 दिन बाद रावण दहन के दिन से। रावण दहन से मेला शुरु होता है और जब तक परवान पर चढ़ता है तब तक मेला समाप्ति की ओर आ जाता है। ऐसे में बाहर से आने वाले व्यापारियों को यहां से जितना लाभ होना चाहिए वह नहीं होने के कारण वे अगली बार नहीं आ पाते। ऐसे में प्रयास किया जा रहा है कि मेला पहले दिन से भरे। जिससे व्यापारियों को भी लाभ हो और मेले में आने वालों को भी लगे कि कोटा में इतनी दिन मेला भरता है। उन्होंने बताया कि इसके लिए सर्कस को भी लागे का प्रयास किया जा रहा है। 

Post Comment

Comment List

Latest News