वायुसेना के यूएस-30एमकेआई फाइटर जेट के लिए डील
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड इन्हें बनाएगा
रक्षा सचिव गिरिधर अरामने और वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी की मौजूदगी में रक्षा मंत्रालय और एचएएल के वरिष्ठ अधिकारियों ने अनुबंध किया।
नई दिल्ली। भारत के रक्षा मंत्रालय ने 26,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत से एसयू-30 एमकेआई फाइटर जेट के लिए 240 एरो इंजन बनाने की डील की है। डील के तहत हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड इन्हें बनाएगा। रक्षा सचिव गिरिधर अरामने और वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी की मौजूदगी में रक्षा मंत्रालय और एचएएल के वरिष्ठ अधिकारियों ने अनुबंध किया। इन हवाई इंजनों का निर्माण एचएएल के कोरापुट डिवीजन में होगा। देश की रक्षा तैयारियों के लिए सुखोई-30 बेड़े की परिचालन क्षमता को बनाए रखेगा। एचएएल अनुबंधित डिलीवरी शेड्यूल के अनुसार प्रति वर्ष 30 हवाई इंजन की आपूर्ति करेगा। सभी 240 इंजनों की आपूर्ति अगले आठ वर्षों में पूरी होगी। इन हवाई इंजनों के विनिर्माण के दौरान, एचएएल देश के रक्षा विनिर्माण परितंत्र से सहायता लेने की योजना बना रहा है, जिसमें एमएसएमई और सार्वजनिक एवं निजी उद्योग शामिल हैं। डिलीवरी कार्यक्रम के अंत तक एचएएल स्वदेशी सामग्री को 63 प्रतिशत तक बढ़ा देगा, जिससे इसका औसत 54 प्रतिशत से अधिक हो जाएगा।
फाइटर जेट की खासियत
यह तेज और धीमी गति में हवा में कलाबाजियां खाते हुए दुश्मन को धोखा देते हुए उनपर हमला कर सकता है। एस-30 एमकेआई के एसयू-27 का एडवांस्ड वर्जन है। वायुसेना के पास 272 एसयू-30 एमकेआई हैं। इस जेट में ग्रिजेव-शिपुनोव ऑटोकैनन लगी है। जो एक मिनट में 150 राउंड फायर करती है। इसमें 12 हार्ड प्वाइंट्स लगे हैं। इसमें 4 तरह के रॉकेट्स लगा सकते हैं। चार तरह की मिसाइल और 10 तरह के बम लग सकते हैं या फिर इनका मिश्रण लगा सकते हैं। इस फाइटर जेट में हार्डप्वाइंट्स में हथियारों को दागने की सुविधा ज्यादा है। अगर मल्टीपल रैक्स लगाए जाएं तो इसमें 14 हथियार लगा सकते हैं।
8130 किलो के हथियार ब्रह्मोस मिसाइलों से लैस
यह कुल 8130 किलो वजन का हथियार उठा सकता है। इसमें ब्रह्मोस मिसाइलें भी तैनात हो सकती हैं। चीन और पाकिस्तान जानते हैं कि ब्रह्मोस मिसाइल कितनी घातक और तेज है। सुखोई में लगने वाली ब्रह्मोस मिसाइल की रेंज 500 किमी है। यह इकलौता ऐसा फाइटर जेट है, जिसे अलग-अलग देश अपने हिसाब से ढाल लेते हैं या बदलाव करवाते हैं। ताकि अपने देश की भौगोलिक स्थिति के हिसाब से उसकी तैनाती कर सकें। भारत में एसयू-30एमकेआई को एचएएल बनाती है। 1997 में एचएएल ने इसका लाइसेंस रूस से लिया था। फिर फाइटर जेट को अपने हिसाब से बदलना शुरू कर दिया।
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