शादी के बाद सास ने चूल्हा चौका नहीं हाथ में तलवार और लठ पकड़ाया था

140 से ज्यादा महिलाओं को सिखा रही अखाड़े के दांव पेंच

शादी के बाद सास ने चूल्हा चौका नहीं हाथ में तलवार और लठ पकड़ाया था

अनंत चतुदर्शी के अवसर पर निकलने वाले जुलूस में महिला अखाड़े भी अपने करतबों से लोगों को दांतों तले उंगलियां चबाने पर मजबूर कर देते हैं।

कोटा।  वह चमचमाती तलवार को ऐसे चलाती हैं जैसे बच्चों का खिलोना घुमा रही हों। कभी दोनों हाथ में बल्लम में आग लगाकर हजारों की भीड़ में जब वे आत्म विश्वास के साथ कूदती हैं तो लगता है जैसे उसमें भवानी समाहित हो गई हो। जो काम पुरूष नहीं कर पाते वह ऐसे हैरत अंगेज काम कर बैठती हैं। जब लोग उनके करतब देखते हैं तो हर कोई कह उठता है वाह उस्ताद। हम बात कर रहे हैं महिला अखाड़ों में से एक अखाड़े की उस्ताद संतोष सुमन की। संतोष को उनकी सास ने चूल्हा चौका संभलवाने के साथ आत्मरक्षा करने को तलवार और बल्लम संभलाए थे।  अनंत चतुदर्शी के अवसर पर निकलने वाले जुलूस में महिला अखाड़े भी अपने करतबों से लोगों को दांतों तले उंगलियां चबाने पर मजबूर कर देते हैं। कोटा में महिला अखाडों की शुरूआत आज से करीब 25 साल पहले पहलवान सीता देवी ने दुर्गाशक्ति व्यायामशाला के रूप में केशवपुरा में की थी। जिसे आज उनके पति जगदीश सुमन और बहु संतोष सुमन् संभाल रही हैं। वहीं व्यायामशाला की महिला उस्ताद के रूप में संतोष सुमन करीब 140 लडकियों और महिलाओं को अखाड़े के दांव पेंच सीखा रही हैं। जो कई बार अखाड़े के लिए परिवार तक को भूल जाती हैं। 

शादी के बाद ही शुरू हो गया अखाड़ा
दुर्गाशक्ति व्यायामशाला की उस्ताद संतोष सुमन के जीवन में अखाड़ा शादी के बाद से ही शुरू हो गया था। संतोष बताती हैं कि उनकी शादी पहलवान सीता देवी के बेटे से साल 2013 में हुई थी। शादी के कुछ दिनों बाद ही उनकी सास सीता देवी ने उन्हें लठ और तलवार पकड़ाकर अखाड़ा खेलने के लिए कह दिया। संतोष को शुरूआत में तो अजीब लगा लेकिन सास की मदद और प्रोत्साहन के चलते धीरे धीरे अखाड़े में माहिर होती गई। संतोष को अखाड़ों में करतब दिखाते हुए 11 साल से ज्यादा का समय हो चुका है। वहीं तीन साल पहले सीता देवी के निधन के बाद से संतोष सुमन ही अखाड़े की महिला उस्ताद हैं और आज 140 से ज्यादा लडकियों और महिलाओं को अखाडेÞ के गुर सीखा रही हैं। 

संस्कृत में एम.ए. बी एड नौकरी की जगह अखाड़ा चुना
अखाड़े की उस्ताद संतोष सुमन ने संस्कृत विषय में एम ए के साथ बीएड किया हुआ है। जिसके बाद उन्हें कई विद्यालयों से शिक्षक पद के लिए आॅफर भी आए लेकिन अखाड़े के प्रति लगाव के चलते संतोष पूरा ध्यान लडकियों और महिलाओं की ट्रेनिंग पर लगाती हैं। कई बार तो संतोष अखाडेÞ में ट्रेनिंग देने के लिए अपने बच्चों तक को किसी ओर के पास छोड़ आती हैं। साथ ही कई मौकों पर बालिकाओं और महिलाओं को घरों से भी खुद ही बुलाकर लाती हैं। इतना ही नहीं अखाड़े में काम आने वाले शस्त्रों को लेने के लिए भी संतोष खुद ही जाती हैं।

लड़कियों को आत्मरक्षा सिखाना लगता है अच्छा
संतोष सुमन शुरूआत से ही महिलाओं को अखाड़े के गुर सिखाने और आत्मरक्षा के काबिल बनने की पक्षधर रहीं हैं। संतोष का कहना है कि महिलाओं और लड़कियों को आत्मरक्षा के गुर सिखाने में अच्छा लगता है कि हम भी समाज में अपना कुछ योगदान दे रहे हैं। संतोष आगे बताती हैं कि जब लड़कियां सड़कों पर अस्त्र शस्त्र लेकर निकलती है तो उन्हें खुशी होती है। संतोष का मानना है कि हर लड़की को आत्मरक्षा और अखाड़े के दांव पेंच सीखने चाहिए जिससे किसी भी मुसीबत के समय में वो खुद अपनी मदद कर सकें।

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