कम्प्यूटर के जमाने से रंग नहीं मिला पा रही कोटा बूंदी शैली की चित्रकला

उचित प्लेटफॉर्म और बाजार नहीं मिलने से लुप्त हो रही चित्रकला की शैली

कम्प्यूटर के जमाने से रंग नहीं मिला पा रही कोटा बूंदी शैली की चित्रकला

तकनीक का संयोजन नहीं कर पाना बन रहा बड़ी बाधा।

कोटा। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और कम्प्यूटर के जमाने से रंग नहीं मिला पाने के कारण  कभी कोटा बूंदी की संस्कृति, परंपरा और इतिहास को अपने में समेटे रखने वाली चित्रकला शैली अब विलुप्त होने के कगार पर पहुंच चुकी है। स्थिति यह है कि कोटा बूंदी चित्रकला शैली के अब गिने चुने कलाकार ही बचे हैं। वही इसे जिंदा रखे हुए हैं। साथ ही कोटा सहित प्रदेश में इस शैली का बाजार नहीं होने और मॉर्डन आर्ट के दौर में ये शैली अंतिम सांसे गिन रही है। अपने दौर की प्रसिद्ध कला संस्कृति रही इस शैली को आज खेवनहारों की आवश्यकता है। वहीं इस चित्रकला शैली का कार्य पूरी तरह से पारंपरिक और हाथों से होने के कारण इसे तकनीकी रूप से भी तैयार नहीं कर सकते। जो इसके विस्तार में बड़ी बाधा बन रहा है।

बाजार नहीं होने से लोग नहीं दिखाते रूचि
कोटा बूंदी चित्रकला शैली के कलाकार मोहम्मद लुकमान बताते हैं कि कोटा शहर और इसके आस पास के क्षेत्रों में इस चित्रकला शैली का बाजार बिल्कुल खत्म हो गया है। कला संस्कृति को पसंद करने वाले लोग इनकी तारीफ तो करते हैं, लेकिन इस शैली की चित्रकलाओं के लिए एक पूर्ण बाजार उपलब्ध नहीं है। जहां कलाकार अपनी कलाओं का प्रदर्शन करने के साथ साथ उनकी बिक्री भी कर सके। चित्रकला के लिए पूर्ण बाजार नहीं होने से लोग भी इसकी ओर आकर्षित नहीं होते हैं। साथ ही इस कला के जानकार भी कोटा में केवल दो से तीन व्यक्ति मौजूद हैं। अगर इस कला को बेहतर प्लेटफार्म और सरकार की ओर से सहयोग मिले तो इसका वैभव फिर से लौटाया जा सकता है। वहीं इस कला में तकनीक का प्रयोग नहीं किया जा सकता इससे शैली की वो मौलिकता खत्म हो जाएगी, जो इसे बनाने में प्रयुक्त होने वाले कागज और रंगों से आती है। क्योंकि इस चित्रकला को बनाने के लिए स्टोन कलर और हाथ से बने कागज का उपयोग होता है। इस शैली के तहत बनने वाली एक चित्रकला को बनाने में कम से कम तीन दिन का समय लगता है, अगर बडा चित्र हो तो यह समय एक माह का भी हो सकता है।

मॉडर्न आर्ट ने किया नए कलाकारों का मोह भंग किया
राजकीय महाविद्यालय कोटा के ड्रॉइंग और पेंटिंग विभाग की प्रोफेसर डॉ. सविता वर्मा के अनुसार कोटा बूंदी चित्रकला शैली में चित्र बनाने में काफी शालीनता और धैर्य की आवश्यकता होती है। इस शैली के तहत चित्र या पेंटिंग बनाने में कम से कम तीन दिन और कई महीनों का समय लग जाता है। इसके साथ ही इस शैली में चित्र को बहुत बारीकी के साथ बनाया जाता है जिसमें एक बाल को भी हाथ से बनाया हुआ होता है, जहां बहुत ही छोटे आकार के ब्रश का उपयोग किया जाता है। इसी के चलते नए कलाकार इस शैली से दूर और मॉडर्न आर्ट की ओर ज्यादा आकर्षित हो रहे हैं। क्योंकि मॉडर्न आर्ट में चित्र कुछ घंटों में बन जाते हैं और लोग भी उन्हें खरीदते हैं। 

शैली को कम्प्यूटर पर ले जाने की आवश्यकता है
आज कम्प्यूटर और एआई का जमाना है। ग्लोबल मार्कट है। लेकिन इस शैली को कम्प्यूटर पर ले जाने की आवश्यकता है। कुछ कलाकार इसकी वास्तविकता के ह्रास का हवाला देकर इसका विरोध करते हैं लेकिन कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है। यदि इस शैली के मूलभाव में कम्प्यूटर का संयोजन किया जाए। ग्लोबल मार्केट की तरफ रुख किया जाए तो ना केवल हमारी कला का विस्तार होगा अपितु उसे एक विश्व के दर्जे का मार्केट मिल सकेगा। कलाकारों के सामने सबसे बड़ा संकट बाजार का नहीं होना है। इसीलिए नये लोग भी इस क्षेत्र में नहीं आ रहे हैं।  आज  नई तकनीकों के आने से कला के क्षेत्र में पिछले कुछ सालों में काफी विस्तार हुआ है जिससे पारंपरिक और प्राचीन शैलियों का दायरा सिकुड़ गया है। इसे फिर से बढ़ाने के लिए विद्यालय स्तर से शुरूआत करनी होगी। साथ ही इसके लिए बाजार और प्लेटफार्म तैयार करना होगा जिससे लोगों में भी रूचि बढ़ सके। इस शैली में तकनीकी रूप से बदलाव नहीं होना भी एक बड़ा कारण है। जहां इस शैली में केवल मिट्टी से बने रंगों और हाथ से बने कागज का उपयोग होता है जो तकनीकी रूप फिलहाल नहीं किया जाता।  माना जाता है कि इससे  शैली की वास्तविकता में कमी आ जाएगी।
- विश्व मोहन जोशी शिक्षाविद और पूर्व प्राचार्य 

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वर्कशॉप और प्रदर्शनियां आयोजित हो तो जागरूकता बढ़े
महात्मा गांधी राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय रामपुरा के चित्रकला विषय के व्याख्याता डॉ. राजेंद्र बैरागी बताते हैं कि कोटा के लोगों में चित्रकला क्षेत्र के बारे में जागरूकता लाने की आवश्यकता है क्योंकि यहां की चित्रकला शैली होने के बावजूद कोटा के लोग ही इसे पहचान नहीं सकते हैं। जो इसके विलुप्त होने में एक बहुत बड़ा कारण बन रही है। इस शैली को जीवित रखने के लिए हमें प्रदर्शनियों और कार्याशालाओं पर जोर देने की आवश्यकता है। क्योंकि जब तक लोगों को शैली के बारे में जानकारी नहीं होगी इसके विलुप्त होने को नहीं रोका जा सकता है। साथ ही वर्तमान में नए छात्र मॉडर्न आर्ट की ओर आकर्षित हो रहे हैं जो बहुता आसानी से बन जाती है। जो इस चित्रकला शैली को कमजोर कर रही है। वहीं इस शैली में तकनीकी रूप से बदलाव नहीं होना भी एक कारण है। जहां इस शैली में केवल मिट्टी से बने रंगों और हाथ से बने कागज का उपयोग होता है जो तकनीकी रूप से नहीं किया जा सकता है। वहां इस शैली की वास्तविकता में कमी आ जाएगी।

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