किसे है जहरीली यमुना नदी की चिंता

इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता

किसे है जहरीली यमुना नदी की चिंता

हरियाणा और दिल्ली की जीवनदायिनी यमुना की किसी को चिन्ता नहीं है।

आज यमुना की चिंता किसी को नहीं है। न दिल्ली की सत्ता पर काबिज आम आदमी पार्टी की सरकार को और न केन्द्र की भाजपा सरकार को। न दिल्ली और केन्द्र की सत्ता से बाहर हो चुकी देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस को। आजकल दिल्ली व केन्द्र में सत्तासीन दोनों दलों के साथ कांग्रेस को हरियाणा चुनाव में कैसे सत्ता मिले, इसकी चिंता सताए जा रही है और इस के लिए हरसंभव जोड़-तोड़ में भी वे लगी हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि हरियाणा और दिल्ली की जीवनदायिनी यमुना की किसी को चिन्ता नहीं है।

दुखदायी बात तो यह है कि किसी भी दल ने यमुना के प्रदूषण के बाबत चुनाव में आजतक एक भी टिप्पणी करना तो दूर एक शब्द तक नहीं बोला है। यह राजनीतिक दलों की यमुना के प्रति संवेदनहीनता का जीता जागता सबूत है। भले दिल्ली-हरियाणा की जीवनदायिनी यमुना मर रही हो, वह जहरीली हो गई हो, उसमें कॉपर, जिंक, निकेल, कैडमियम और क्रोमियम जैसे सेहत के लिए हानिकारक तत्व मौजूद हैं और तो और यमुना में रसायन के चलते झाग को रोकने के लिए समूचे सीवरेज के ट्रीटमेंट की जरूरत है, उसकी चिंता इस चुनाव में किसी को नहीं है। उनका येन-केन प्रयास केवल और केवल हरियाणा की सत्ता पर काबिज होना ही है और कुछ नहीं। जबकि निकट भविष्य में दिल्ली में सत्ता पर काबिज आप को पुन: सत्ता में वापसी के लिए विधान सभा चुनाव का सामना भी करना है। उस हालत में आप संयोजक दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल विधानसभा चुनाव से पहले कहते नहीं थकते थे कि यमुना शुद्ध होने पर सबसे पहले उसमें मैं खुद स्रान करूंगा। वह दावा कहें या वायदा थोथा ही साबित हुआ। विडम्बना यह कि आप सरकार के पांच साल पूरे होने के बाद भी यमुना आज पहले से ज्यादा मैली है। बीते दशकों का इतिहास इसका जीता-जागता गवाह है कि यमुना साल-दर-साल कितनी प्रदूषित हुई है। 
 
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की ही मानें तो यमुना नदी के राष्टट्रीय राजधानी क्षेत्र में पड़ने वाले हिस्से में जल प्रवाह 23 घन मीटर प्रति सैकेण्ड क्यूमैक्स कम है। यह जल प्रवाह स्नान योग्य होने और नदी में पारिस्थितिकी बरकरार रखने के लिए भी पर्याप्त नहीं है। यहां यह जान लेना जरूरी है कि दिल्ली में पड़ने वाला नदी का हिस्सा इसके तकरीब 80 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। ई-फ्लो जल प्रवाह की न्यूनतम मात्रा है जो किसी भी नदी या जलाशय को अपनी पारिस्थितिकी बरकरार रखने और उसके स्नान योग्य होने के लिए जरूरी है। हकीकत यह है कि आमतौर पर हरियाणा के यमुना नगर स्थित हथिनी कुंड बैराज से मात्र 10 क्यूमैक्स पानी छोड़ा जाता है। जबकि 23 क्यूमैक्स पानी यानी 43.7 करोड़ गैलन रोजाना अक्टूबर से जून के महीने के दौरान नदी में छोड़ा जाना चाहिए। उस हालत में जबकि इसकी सिफारिश राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान रुड़की 2019 में ही कर चुका है। यह तो एक बानगी भर है। लोकसभा की स्थाई समिति द्वारा यमुना पर तैयार रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि यमुना के जल में भारी धातु के तत्वों की भरमार है जो जानलेवा बीमारियों के कारण हैं। समिति ने यमुना में झाग बनने से रोकने हेतु दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश से प्रवाहित होने वाले समूचे सीवरेज का ट्रीटमेंट किए जाने की जरूरत बताई है। इस झाग से त्वचा रोग और संक्रमण का खतरा बना रहता है। इसके साथ ही समिति ने जल संसाधन विभाग से ऐसे नियम, दिशा-निर्देश तैयार करने को कहा है कि जिसमें यमुना सहित देश की सभी नदियों में अपशिष्ट प्रवाहित किए जाने के खिलाफ दंडात्मक प्रावधान हो। 

समिति ने पर्यावरण मंत्रालय की इस बात पर खिंचाई की कि उसने 2018 में की गई सिफारिश पर एक्शन टेकन नोट दाखिल करने में देरी क्यों की और इसका कारण क्या था। समिति ने जल संसाधन विभाग को सुझाव दिया है कि वह यमुना नदी के लिए भी स्वच्छ गंगा मिशन की तर्ज पर एक कोष की स्थापना करे ताकि नदी की सफाई से जुडे़ कामों में पैसे की कमी आडे़ न आए। यमुना की सफाई पर बीते दो दशकों से भी ज्यादा के दौरान अभी तक करोड़ों स्वाहा हो चुके है। उसके बाद भी यमुना में अमोनिया के बढ़ते स्तर पर कोई अंकुश नहीं लग सका है। हरिद्वार और वाराणसी की तर्ज पर उसके घाटों का सौंदर्यीकरण कर पर्यटक स्थल बना और वहां आरती का कार्यक्रम आयोजित करने से यमुना की बदहाली छिप जाएगी, यह जनता को धोखे में रखने के सिवाय कुछ नहीं। इस सच्चाई को झुठलाया नहीं जा सकता। 

-ज्ञानेन्द्र रावत
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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