समाज की सोच में परिवर्तन के लिए जड़ों को सींचना होगा
कब तक मिलेगी महिलाओं को समानता
पुरूष और महिला दोनों ही एक गाड़ी के दो पहिए हैं, जिन्हें साथ चलना जरूरी है।
दैनिक नवज्योति के कोटा कार्यालय में मंगलवार को परिचर्चा की श्रंखला के तहत कब तक मिलेगी महिलाओं को समानता विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में पुलिस, महिला उत्पीड़न, करनी नगर विकास समिति,एकल नारी,महिला वकील, समाज कल्याण विभाग की संयुक्त निदेशक, महिला डॉक्टर, खिलाड़ी, समाज सुधारक महिलाओं के साथ बराबरी से पुरूषों ने भी हिस्सा लिया। पुरूषों में भी मनोविज्ञान, समाज विज्ञान, डॉक्टर, वकील, साहित्यकर, शिक्षाविदों जैसे क्षेत्रों के विशेषज्ञ शामिल थे। इस दौरान प्रमुख रूप से निष्कर्ष निकल कर आया कि महिलाओं को समानता का अधिकार मिल रहा है लेकिन इसकी गति अभी धीमी है। समाज में बदलाव आ रहा है। ग्रामीण इलाकों में बदलाव की ज्यादा आवश्यकता है। यह बदलाब तभी आएगा जब हम परिवार,समाज से इसे शुरू करेंगे। पुरूष प्रधान समाज होने के बावजूद पुरूष और महिला दोनों ही एक गाड़ी के दो पहिए हैं, जिन्हें साथ चलना जरूरी है।
- समानता बढ़ रही है, दो जनरेशन के बाद आएगी समानता।
- संयुक्त परिवार का ढांचा खत्म होने से असमानता आ रही है।
- शिक्षा और आर्थिकी की समानता पहली जरूरत, पैसा आत्म विश्वास बढ़ाता है
- सामाजिक ताने बाने में आमूचूल परिवर्तन की आवश्यकता है।
- समाज की सोच में परिवर्तन के लिए जड़ों की सींचना होगा, तभी बदलाव संभव
- महिला ही महिला की दुश्मन कहना गलत, शिक्षा और आर्थिक स्थिति ज्यादा जिम्मेदार।
- समाज में विकृत प्रवति के लोगों को टोकने का काम शुरू होना चहिए, तभी महिलाएं सुरक्षित होगी
- महिलाएं स्वयं अपना सम्मान करें, शिक्षा महत्वपूर्ण हथियार, खुद को अबला नहीं सबला समझें।
- विधवा महिलाओं को शुभ कायों में आगे लाएं।
- महिलाओं के लिए सदियों से चली आ रही कुप्रथा को खत्म किया जाए।
- सबसे बड़ी कमी आत्म विश्वास की कमी, महिला शोषण को नियति मान लेती है
- बालिकाओं को बचपन से उनका लक्ष्य और विजन बताएं।
- महिला व पुरुष गाड़ी के दो पहिए दोनों में समानता जरूरी है
- बच्चों को यौन शिक्षा देना जरूरी है।
महिला का आत्मनिर्भर होना जरूरी
महिलाओं को पुरुषो बराबर लाने के लिए आत्म निर्भर होना होगा। महिला पति के आगे हाथ कब तक फैलाती रहेगी। महिलाएं पुरुष के मुकाबले ज्यादा संवेदनशील होती है। पुरुष जल्दी टूट जाता है। लेकिन महिलाओं में सहन शक्ति पुरुषों से ज्यादा है। इसको हमें ताकत बनाना है। महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से आत्म निर्भर बनना होगा। अपने अधिकारों के लिए स्वयं तैयार करना होगा। तभी समानता का अधिकार मिलेगा। महिलाओं को अपना अत्म विश्वास बढ़ना होगा तभी यह समानता की लड़ाई जीत पाएंगे।
-डॉ. अर्शी इकबाल, स्त्री रोग विशेषज्ञ
बच्चियों में आत्मविश्वास पैदा करना जरूरी
बच्चियों को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है कि हर परिवार में उनका पालन पोषण इस तरह से हो कि वे अपनी रक्षा स्वयं कर सकें। महिलाओं को समानता का दर्जा तभी मिल पाएगा जब बच्चियों को बचपन से ही लड़कों की तरह स्वावलम्बी बनाया जाए। अखाड़ों के माध्यम से बच्चियों को आत्म रक्षा के लिए स्वावलम्बी बना रहे हैं। लेकिन उनके बड़ा होने पर विवाह होने पर वे घर परिवार की जिम्मेदारी में लग जाती है। महिलाओं को समानता का दर्जा परिवार से ही दिए जाने की शुरुआत की जानी चाहिए।
- पुष्पा सोनी, अखाड़ा संचालिका, मातृ शक्ति दुर्गा वाहिनी
महिला समानता की शुरुआत परिवार से हो
वास्तव में महिलाओं को समानता का अधिकार अभी भी पूरी तरह से नहीं मिला है। शुरुआत हर परिवार से होनी चाहिए। बेटा और बेटी में भेदभाव नहीं करने से इस अंतर को कम किया जा सकता है। बच्चों को संस्कार देने का काम सिर्फ मां या महिला का ही नहीं पुरुष भी दे सकते हैं। बच्चियों को घर से अकेले नहीं निकलने देने से ही समानता का भेद बढ़ जाता है। महिलाएं घर से बाहर निकलकर नौकरी कर रही हैं तो पुरुष घर में उनका हाथ बंटाकर समानता का व्यवहार कर सकते हैं।
- सविता कृष्णैया, संयुक् त निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग
परवरिश में भेद नहीं हो
समाज में आ रहे बदलाव का असर है कि महिलाओं को अब पहले की तुलना में समान अधिकार मिलने लगे है। महिलाएं घरों से बाहर निकलकर नौकरी कर रही हैं। आत्म निर्भर बन रही है। लेकिन इसकी शुरूआत परिवार से ही होनी चाहिए। पति पत्नी व सास बहू एक दूसरे का सहयोग करेंगे तो समानता का भाव बना रहेगा। महिलाओं को समान अधिकार देने व उनकी सुरक्षा के लिए बने कानूनों का कई बार दुरुपयोग होने लगता है जो गलत है। बचपन से ही लड़का और लड़की के भेद को खत्म किया जाएगा तो समाज में महिला समानता की मांग ही नहीं उठेगी।
- कल्पना शर्मा, वरिष्ठ अधिवक्ता
मानसिकता में बदलाव की जरूरत
कई परिवारों में बेटा और बेटी में भेदभाव किए जाने से बेटियों में कहीं न कहीं हीन भावना आती है। लेकिन इस मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। मां बच्चे की पहली शिक्षक होती है लेकिन बच्चों को संस्कार देना सिर्फ मां या महिला का ही काम नहीं है यह पूरे परिवार की जिम्मेदारी है। महिलाओं को चाहिए कि वह अपनी कमजोरी को नहीं ताकत को समझें। समाज में बदलाव के लिए महिलाओं को आगे आना होगा। महिलाओं के प्रति पहले की तुलना में वर्तमान में समानता का भाव बना है। कामकाजी महिला भी अपने बच्चों को संस्कारित बना सकती है।
- शोभा माथुर, अन्तरराष्ट्रीय वेट लिफ्टर
गांव में महिलाओं को नहीं मिलता मौका
शहरों में तो महिलाओं को आगे बढ़ने के मौके मिलते है। परिवार भी उनका सहयोग करता है। लेकिन सबसे अधिक जरूरत ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को समान रूप से आगे बढ़ाने की है। वहां महिलाओं को न तो अवसर मिलते है और न ही उन्हें जानकारी होती है। महिलाओं को अभी भी रात में अकेले जाने से रोका जाता है। जबकि एक महिला पुलिस कर्मी को वर्दी पहनकर निकलने में डर नहीं है वही महिला सादा वस्त्रों में रात में अकेली नहीं निकल सकती। इस भेद को समाप्त कर महिलाओं को हर क्षेत्र में समान रूप से आगे बढ़ाने की जरूरत है।
- सोनिया शर्मा, राजस्थान पुलिस की महिला कमांडो
हिंसा बढ़ने से हौसला हो जाता है कमजोर
वर्तमान में जो महिला उत्पीड़न चल रहा है। इसका जल्दी ही खात्मा करने की आवश्यकता है। महिला हिंसा की वारदातें बढ़ने से महिलाओं के हौंसले की उड़ान पस्त पड़ रही है। हमारे विभाग का नाम तो महिला बाल विकास है लेकिन यहां महिलाओं को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता है। आज ग्राम पंचायत से लेकर ऊंच पदों तक पुरुष ही सत्ता चला रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्र में सबसे ज्यादा महिलाओं का शोषण ज्यादा है। महिलाओं को उनके अधिकार मिलने चाहिए। महिलाएं अभी अकेली है। परिवार का सहयोग मिलना चाहिए।
- शाहिदा खान, प्रदेश अध्यक्ष आंगनवाड़ी महिला कर्मचारी संघ
बच्चियों में आत्मविश्वास पैदा करना जरूरी
महिलाओं समानता को लाने के लिए बदलाव की बयार को तेज करने की आश्यकता है। महिलाओं को अपने अधिकारों के लिए हर समय संघर्ष करना पड़ता है। पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता को खत्म करने के लिए पहला कदम घर से उठाना होगा। महिलाओं को जितना आगे बढ़ने का अवसर दिया जाएगा। महिला समानता की दर बढ़ती जाएगी। महिला व पुरुष एक दूसरे के पूरक है। दोनों घर से लेकर समाज में एक जैसा व्यवहार मन, वचन और आचरण में लाना होगा।
- सुमन भंडारी, संचालिका करनी विकास समिति
समाज की जड़ को सींचना होगा
महिला पुरुष में समानता का पाठ घर से पढ़ाना होगा। तभी समाज में बदलाव दिखेगा। आज महिलाओें का आत्म विश्वास कमजोर हो रहा है। जिसके कारण वो अपने को अकेला महसूस कर रही है। घर की जड़ो को समानता से शुद्ध करना होगा तभी समाज में नारी समानता मिलेगी। महिलाओं को उनके अधिकारों के लिए स्वयं आगे आना होगा। स्वयं का सम्मान करेंगी तो समाज अपने आप सम्मान करेंगा। पुरुषो समान ही महिलाओं के लिए व्रत त्यौहार मनाए जाए। महिला महिला की रक्षा कर सकें ऐसी तैयारी करनी होगी।
- चंद्रकला शर्मा, समन्वयक एकल नारी संस्था
समानता के लिए जड़ तक जाना होगा
विचार हीनता के समय में इस विषय पर चर्चा से लोग बचना चाहते है। महिला समानता का मुद्दा उतेजना और आक्रोश भरा है। इसलिए हर कोई इससे बचना चाहता है। यह एक सामाजिक समस्या है। व्यक्तित्व विकास में शिक्षा का बहुत योगदान है इससे महिला समानता का अंतर कम हुआ है। हमें महिला असमानता की जड़ तक जाना होगा। सभी समानता आ सकेंगी। हमारा समाज रूढीवादी परंपराओं से जकड़ा हुआ है। उन परम्पराओं को बदलना होगा। औपचाारिक शिक्षा की जगह लोकाचार की शिक्षा को बढ़ावा देना होगा।
- अंबिका दत्त चतुर्वेदी, पूर्व आरएस, कवि ,साहित्यकार
महिला समानता शिक्षा से ही संभव
देश में समानता के लिए अभी 134 साल ओर चाहिए। समानता में भी भारत 193 देशों में 122 वें नंबर पर है। ऐसे में अभी हमें महिला समानता के लिए काफी प्रयास मिलकर करने होंगे। महिला असमानता देश में काफी है। इसको शिक्षा से ही दूर किया जा सकता है। जहां शिक्षा प्रचार प्रसार ज्यादा है वहां महिला समानता का प्रतिशत ज्यादा है। महिला एवं पुरुष एक दूसरे के पूरक है। इसलिए समानता का व्यवहार पहले परिवार से शुरू करना होगा। तभी समाज में सुधार आएगा।
- प्रोफेसर एमएल गुप्ता, शिक्षाविद् व लोकपाल मीनेष यूनिवर्सिटी
मातृ सत्ता कायम करनी होगी
आज महिलाएं पुरुषों के बराबर खड़ी है। भारत में करीब दो जनरेशन और लगेंगी महिला समानता आने में। वहीं विकसित देशों में एक जनरेशन के बाद ही समानता आ जाएगी। आइसलैंड, स्वीडन,नोर्वे, यूरोप में एक जनरेशन के बाद समानता आ चुकी है। देश लंबे समय तक गुलाम रहा है। आजादी के बाद से ही समानता के लिए काफी प्रयास किए वो अब धरातल पर दिखाई दे रहे है। हमारे यहां कानूनी पहलू तो अन्य देशों की तुलना में काफी अच्छा और मजबूत है। बस अब इसको सही तरीके से लागू करने की आवश्यकता है।
- जितेंद्र सिंह फाउंडर एंड सीईओ सिजीफाई एंटरप्रैैन्यौर
रूढ़ीवादिता को तोड़ना होगा
शारीरिक और मानसिक रूप से दोनों को समानता के लिए तैयार होना होगा। महिला हिंसा के पीछे नशे की आदत बहुत हद तक जिम्मेदार है। महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा ज्यादा अवसाद में आती है। उन्हें संबल की ज्यादा जरुरत है। बच्चों में यौन शिक्षा देने की आवश्यकता है। बालक बालिका में समानता का व्यवहार आचरण में लाना होगा। माता का सरनेम लगे। हमें मिथक को तोड़ना होगा। सामूहिक रूप से प्रयास करने की आश्यकता है। पुरानी रूढीवादी परम्परा को तोड़ना होगा। संस्कारों को बढाना होगा।
- डॉ. दीपक गुप्ता, मनोचित्सक व आईएम सचिव
महिला-पुरुष एक गाडंÞीे के दो पहिए
जिस तरह से एक गाड़ी के दो पहिए समान होने पर गाड़ी सही ढंग से चलती है। उसी तरह से महिला पुरुष एक समान है। लेकिन कई बार महिलाओं को पुरुषों से कमजोर समझकर उन्हें समानता का अधिकार नहीें दिया जाता है। महिलाएं किसी से न तो कमजोर है और न ही अबला है। इस तरह की सोच रखने वाले पुरुषों में जागरूकता लाने की जरूरत है। वकालत के पेशे में महिला-पुरुष में कोई भेद नहीं है। वरन् महिलाएं बराबरी से पुरुष वकीलों से अदालतों में बहस करती है। महिलाओं को पुरुषों के समान लाने की जरूरत है।
- जितेन्द्र पाठक , एडवोकेट पूर्व महासचिव, अभिभाषक परिषद कोटा
लड़कों को भी संस्कार देने की जरूरत
हमारा समाज अर्द्धनारीश्वर को मानता आया है। महिला और पुरुष दोनों को समान माना गया है। घर में मां ही बच्चे को संस्कार देती थी। लेकिन अब बच्चे आयाओं के भरोसे पलने लगे। ऐसे में बच्चियों को तो संस्कारित बनाने की सीख दी जाती है जबकि लड़कों को भी संस्कारित बनाने की जरूरत है। लड़कों को भी संस्कारित बनाने की जरूरत है। समाज में पहले से काफी बदलाव आया है। कानून का उपयोग होने की जगह दुरुपयोग होने से कई तरह की विकृति आने से बार-बार महिला समानता की बातें की जाती है।
- एडवोकेट मनोज पुरी, अध्यक्ष, अभिभाषक परिषद कोटा
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