हौसलों में पास यूनिवर्सिटी के सिस्टम में फेल मूक-बधिर, जीत की जिद बरकरार
पहली मूक-बधिर छात्रा थी, जो चयनित हुई
आरयूएचएस ने नियम कायदे नहीं माने, दो बार फेल हुई, फिर परीक्षा में जुटी, फर्स्ट ईयर में फेल हुई, दूसरे साल दस सब्जेक्ट कैसे पढ़ती, एक क्लॉस को ही इन्टरप्रेटर मिला
जयपुर। 27 साल की मनीषा हाथ में कुछ दस्तावेज लिए इन दिनों आरयूएचएस यूनिवर्सिटी और जयपुरिया अस्पताल के चक्कर काट रही है। वो सुन-बोल नहीं सकती है। इशारों में बात करती है। कान्फिडेंस इस दौरान चहेरे से झलकता है, लेकिन साथ में दर्द भी। हौंसलों में पास मूक-बधिर मनीषा के साथ में आए ससुर श्याम बाबू से पूरा माजरा पूछा।
मनीषा ने वर्ष 2020-21 में आरयूएचएस यूनिवर्सिटी में बैचलर ऑफ रेडिएशन टेक्नोलॉजी का एन्ट्रेस एक्जाम देकर प्रवेश को क्वालिफाई हुई थी। पहली मूक-बधिर छात्रा थी, जो चयनित हुई। बस तब से ही उसका सिस्टम से लड़ने का संघर्ष शुरू हुआ। पहले यूनिवर्सिटी ने मूक-बधिर को आरक्षित सीट पर प्रवेश देने से मना कर दिया। कहा कि उसे पढ़ाई की सुविधा नहीं दे सकते। कोर्ट में याचिका दायर की तो सुनवाई पहले ही मूक-बधिर को शिक्षा और आरक्षण संबंधित नियम को देखकर यूनिवर्सिटी ने उसे प्रवेश की हामी भर दी। तब वह खुश थी शायद जंग जीत गई। लेकिन आगे लड़ाई यूनिवर्सिटी के मूक-बधिर छात्रों के तय नियम कायदे नहीं मानने से शुरू हुई जिसके चलते वह लगातार पहले फर्स्ट ईयर में फेल हुई। पांच पेपर ड्यू हो गए। फिर सैकंड ईयर में पांच पेपर और जुड़ गए। कुल 10 पेपर की परीक्षा हुई,लेकिन फिर फेल हो गई। अब तीसरी बार जीत की जिद बरकरार है। तैयारी में जुटी है।
एक्ट की पालना नहीं की, ना सिलेबस बदला और ना फुल टाइम इन्टरप्रेटर मिला
केन्द्र सरकार के राइट ऑफ पर्सन विद डिसएब्लिटी एक्ट-2016 के तहत मूक-बधिर छात्र-छात्राओं को प्रवेश पर सिलेबस में उसके अनुरूप बदलाव करना होता है। पेपर भी उसके तय सिलेबस के अनुरूप बनाया जाता है लेकिन मनीषा को यह सब सुविधा नहीं मिली। यूनिवर्सिटी ने एक्ट का पालना नहीं किया। वहीं सुनने और बोलने की क्षमता नहीं होने कारण क्लॉस में इन्टरप्रेटर उपलब्ध कराना होता है। उसे फर्स्ट ईयर में यह उपलब्ध नहीं कराया गया। वह फेल हो गई। सैकंड ईयर में मूक-बधिर पति अभिषेक रावत ने उसके साथ नियमों की लड़ाई लड़ी तो यूनिवर्सिटी ने आखिरी तीन माह के लिए एक घंटे यानी एक कक्षा में समझाने के लिए 400 रुपए प्रतिदिन का इन्टरप्रेटर रखा। जबकि रोज 4 कक्षाएं होती थी। वह केवल एक पेपर समझ पाई। परिणामत: वह फिर फेल हो गई।
पति भी मूक-बधिर, अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी
मनीषा के पति अभिषेक रावत भी मूक-बधिर हैं। खास यह है कि मूक-बधिर की भारतीय क्रिकेट टीम के खिलाड़ी हैं। टीम के कप्तान भी रहे हैं। पंचायती राज विभाग में कार्यरत हैं। रावत इशारों में अपने पिता के मार्फत बताते हैं कि वे दोनों यूनिवर्सिटी में प्रशासन से कई बार मिले, कहीं सुनवाई नहीं हुई। इस बार वे हाईकोर्ट में अपील करेंगे। यूनिवर्सिटी को मूक-बधिर छात्रा को एक्ट के तहत तय सुविधा देनी ही पड़ेगी। यूनिवर्सिटी के नियमों को नहीं मानने से वह फेल हुई तो मैं निराश था, लेकिन मनीषा ने कहा कि वह फिर परीक्षा देगी और सबको पास होकर दिखाएगी।
मामले की पूरी जानकारी लूंगा। वैसे नियमों के अनुसार सभी सुविधाएं दी जाती है और भी कहीं उसके अनुरूप सुविधा देने की गुंजाइश होगी तो दी जाएगी।
-डॉ.धनंजय अग्रवाल, वाइस चांसलर, आरयूएचएस यूनिवर्सिटी।
पहली बार किसी मूक-बधिर छात्रा ने प्रवेश लिया। यूनिवर्सिटी के अध्यादेश में सिलेबस में उसके अनुरूप बदलाव का नियम नहीं है। इसके लिए हमने एकेडमिक काउंसिल में प्रस्ताव भेजा है। उच्च स्तर पर पास होने के बाद इसे लागू करेंगे। इन्टरप्रेटर को जैसे-तैसे राजी कर पढ़ाने के लिए बुलाया था। छात्रा के परिजन उसे घर आकर पढ़ाने का दबाव बनाते थे।
-डॉ.रेशु गुप्ता, प्रोफेसर, फिजियोलॉजी, आरयूएचएस।
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