आखिर हरियाणा में कांग्रेस के हाथ से क्यों फिसल गई जीती हुई बाजी, जानिए हार के मूल कारण
प्रचार के आखिरी चरण में बीजेपी ने अपने कील-कांटे दुरुस्त किए
कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ उपजे गुस्से को भुनाने में कामयाब नहीं हुई। प्रचार के आखिरी चरण में बीजेपी ने अपने कील-कांटे दुरुस्त किए और बाजी मार ली।
नई दिल्ली। जीती हुई बाजी कैसे कांग्रेस हारती है यह एमपी, छत्तीसगढ़ और हरियाणा विधान सभा में भारतीय जनता पार्टी की जीत से समझा जा सकता है। कांग्रेस जीती हुई लड़ाई क्यों हारती है, यह भी हरियाणा के चुनाव परिणाम से समझा जा सकता है। एक्सपर्ट मानते हैं कि इस चुनाव में कांग्रेस को भूपेंद्र सिंह हुड्डा पर जरूरत से ज्यादा भरोसा महंगा पड़ा। हुड्डा फैक्टर के कारण कांग्रेस की कलह सार्वजनिक मंचों पर सामने आ गई। राहुल गांधी ने सैलजा और हुड्डा का हाथ तो मिलवाया मगर दिल नहीं मिला सके। इस हार का एक बड़ा कारण यह है कि कांग्रेस बीजेपी के खिलाफ उपजे गुस्से को भुनाने में कामयाब नहीं हुई। प्रचार के आखिरी चरण में बीजेपी ने अपने कील-कांटे दुरुस्त किए और बाजी मार ली।
कांग्रेस के दलित कार्यकर्ता छिटके
हरियाणा चुनाव में कांग्रेस में शुरू से ही भूपेंद्र सिंह हुड्डा की चली। उन्होंने अपने मन के मुताबिक टिकट बांटे। हाईकमान से फ्री हैंड मिलने के बाद न सिर्फ अपने समर्थकों को टिकट बांटे बल्कि सैलजा समर्थकों को 9 सीट देकर साइड लाइन कर दिया। इस तरह उन्होंने पार्टी में कलह के बीज रोप दिए। नतीजा यह रहा कि सैलजा की नाराजगी के बाद कांग्रेस के दलित कार्यकर्ता छिटक गए। भूपेंद्र हुड्डा के कारण आम आदमी पार्टी से गठबंधन का रास्ता भी बंद हो गया और आप ने 90 सीटों पर कैंडिडेट उतार दिए। आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के ही वोट काटे और वोटरों में संदेश अच्छा नहीं गया। प्रचार के दौरान 1 बनाम 35 का नैरेटिव भी हुड्डा के कैंप से बाहर आया और गैर जाट भी लामबंद हो गए।
भाजपा का मजबूत संगठन
हरियाणा की बाजी अपने हाथ करने में भाजपा के टीम वर्क का सबसे बड़ा हाथ है। और इस टीम वर्क की सबसे मजबूत कड़ी भाजपा का सांगठनिक ढांचा है। भाजपा की रणनीति में बूथ मैनेजमेंट का प्रबंधन उनकी जीत के ताले की चाबी है। भाजपा जानती है कि आपने कोर वोटर को कैसे बूथ तक ले जा सकें। प्राय: अन्य दल अपने प्रचार और संपर्क यात्रा के बाद वोटरों को उनके हवाले कर देते हैं। और जहां हार जीत का बड़ा अंतर नहीं होता है वैसे विधान सभा को सक्रिय और समर्पित कार्यकताओं के जरिए भाजपा परिणाम बदलने की ताकत रखती है।
एंटी इनकंबेंसी का किया इलाज
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के साथ जब एंटी इनकंबेंसी का मामला उठा तो तत्काल सीएम का फेस नायब सिंह सैनी को बना कर डैमेज कंट्रोल किया। चुनाव प्रचार के दौरान खट्टर की छवि आगे आने लगी तो खट्टर को न केवल मंच पर बुलाना बंद किया बल्कि चुनावी पोस्टर से खट्टर का चेहरा गायब कर भाजपा अपनी स्थिति एक हद तक ठीक की।
जाट बनाम गैर जाट का समीकरण सफल हुआ
चुनावी रणनीति के तहत हरियाणा के चुनाव को जाट बनाम गैर जाट करना भी काम कर गया। एक रणनीति के तहत गैर जाट को ज्यादा टिकट दिया। ब्राह्मण, वैश्य, पंजाबी और अन्य जातियों के उम्मीदवार को प्राथमिकता देना भी काम कर गया।
बांटों और राज करो
भाजपा रणनीतिकारों की बात करें तो हरियाणा में अपने कोर वोटर का भरोसा तो था ही। इसके साथ साथ हरियाणा में वोट के बिखराव के कई कारण बन जाए या बनाए गए। मसलन चर्चा यह है कि इनेलो और जे जे पी को अकेले दम पर चुनाव लड़ने के पीछे भाजपा की शक्ति काम कर रही थी। इतना भर नहीं, जननायक जनता पार्टी और आजाद समाज पार्टी और इनेलो और बसपा के गठबंधन के पीछे भी भाजपा के हाथ हैं। चुनावी रणभूमि से यह बात छन के आ रही इन दोनो गठबंधन का हरियाणा के जाट और दलित वोटों में कुछ असर दिखा, जिसके वजह से कांग्रेस अपेक्षित वोट हासिल नहीं कर पाई। आम आदमी पार्टी भी वोट के विभाजन का कारण बनी।
नहीं चला किसान,जवान और पहलवान का मुद्दा
कांग्रेस जिस किसान,जवान और पहलवान के मुद्दे के सहारे भाजपा को परास्त करने की रणनीति बना रही थी। उसे मंचों तक ही सीमित रख पाई। इस विरोध को जन-जन पहुंचाने में असमर्थ रही। जवान के मामले में कांग्रेस ने अग्निवर को मुद्दा बनाया। परंतु नायाब सिंह सैनी ने अग्निवीरों को राज्य सरकार के द्वारा नौकरी देने की घोषणा कर थोड़ा डैमेज कंट्रोल किया। किसानों की नाराजगी को पी एम पेंशन योजना,अनाजों को एमएसपी तथा अन्य लाभकारी योजना के जरिए मन बदलने की कोशिश की।
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