विदेशों से कोटा पहुंचे वल्चर, चम्बल बनी आशियाना
मुकुंदरा में पाए जाते हैं 4 प्रजातियों के वल्चर
हर साल दुनियाभर से प्रवास पर आते हैं गिद्ध।
कोटा। दुनिया के कई देशों से वचर्ल्स कोटा में दस्तक दे चुके हैं। चंबल की कराइयों में विभिन्न प्रजातियों के गिद्धों की दुनियां आबाद हो रही है। मुकुंदरा की वादियों में आशियाना बसाया है। कोटा से रावतभाटा के जंगलों व चंबल की कराइयों में विभिन्न प्रजातियों के करीब 1200 से ज्यादा वल्चर नजर आ रहे हैं। वहीं, हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस वल्चर विश्व के 19 देशों से मुकुंदरा में प्रवास पर आए हैं।
हवा में बैक्टेरिया फैलने से रोकता है वल्चर
बड्स रिसर्चर हर्षित कहते हैं, वल्चर्स का झुंड मृत जानवर के शरीर को मात्र 20 से 25 मिनट में ही चट कर जाते हैं। जिससे मृत जानवरों के अवशेष से बैक्टेरिया हवा में फैल नहीं पाते। यही वजह है कि जंगलों में दुर्गंध नहीं होती। पारिस्थितिक तंत्र में गिद्दों की भूमिका अहम है।
इन देशों से कोटा आए वल्चर
जैदी बताते हैं, विश्व के 19 देशों से तीन प्रजातियों के वल्चर मुकुंदरा में प्रवास पर आए हैं। जिनमें हिमालयन ग्रिफॉन, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस शामिल हैं। यह वल्चर चीन, साइबेरिया, उत्तरी अमेरिका, यूरोप, इटली, मंगोल, इंडोनेशिया, उज्बेकिस्तान, आस्ट्रिया, डेनमार्क, फ्रांस, जर्मनी, स्पेन, स्वट्जरलैंड व कोरिया, अफगानिस्तान, कजाकिस्तान, अजरबेजान सहित कई देशों से आए हैं। इन देशों में बर्फबारी के कारण सर्दी तेज होने से खुद को बचाने व भोजन की तलाश में प्रवास पर आते हैं।
इंसानों को एंथ्रेक्स वायरस से बचाता है गिद्ध
पक्षी विशेषज्ञ डॉ. अंशु शर्मा ने बताया कि गिद्दोें को प्राकृतिक सफाईकर्मी कहा जाता है। इनके पेट में शक्तिशाली एसिड होता है, जो हड्डियों के साथ हैजे और ऐंथ्रैक्स जैसे जीवाणुओं को नष्ट कर देता है। ये जीवाणु इंसानों के लिए जानलेवा होता है। एक गिद्ध सालभर में करीब 120 किलो मांस खा सकता है। उनके झुंड को मृत जानवर के एक शव को निपटाने में महज 20 से 25 मिनट लगते हैं। उनका पाचन तंत्र मांस को पचाकर अच्छी खाद बनाता है, यानी वे मिट्टी में पोषक तत्व भी छोड़ते हैं।
दो सौ से ज्यादा पक्षियों का गूंजता कलरव
पक्षी विशेषज्ञों के अनुसार, मुकुन्दरा हिल्स में पक्षी की दौ सौ से ज्यादा प्रजातियां है। इनमें क्रेसअेड सरपेंट, ईगल, शॉर्ट टोड,पैराडाइज फ्लाई केचर, सारस क्रेन, स्टोक बिल किंग फिशर, कलर्ड स्कोप्स आउलग्रीन पीजन, गोल्एन ओरिओल, बैबलर, गागरोनी तोता, टुईंया तोता, एलेक जेन्डेरियन पैराकीट, रूडी शेल्डक, वाइट पैलिकन, ग्रेट फलेमिंगो, नोर्दन शावलर, नोर्दन पिंटटेल, बार एडेड गूज, ग्रेलेक गूज, गारगेनी टील समेत कई प्रजातियों के पक्षियों का कलरव गूंजता है। मुकुंदरा, जैव विविधता से भरपूर होने के साथ बायोडायवरसिटी पक्षियों के अनुकूल है।
मुकुंदरा में पाई जाती है वल्चर की 4 प्रजातियां
बर्ड्स रिसर्चर हर्षित शर्मा का कहना है, मुकुंदरा हिल्स टाइगर रिजर्व में वल्चर्स की 4 प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें इंडियन लॉन्ग बिल्ड वल्चर, इजिप्शियन वल्चर, किंग वल्चर, व्हाइट बेक्ड वल्चर शामिल हैं, जो स्थानीय हैं। वहीं, विदेशों से आने वाले वल्चर्स में तीन प्रजाति शामिल हैं। जिनमें हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर, यूरेशियन ग्रिफॉन और सिनेरियस ग्रिफॉन वल्चर्स यूरोपियन देशों से प्रवास पर आए हैं, जो मार्च माह तक रहते हैं। स्थानीय वल्चर की संख्या में अपेक्षाकृत इजाफा हुआ है।
तीन दर्जन से ज्यादा नजर आए अंडे
नेचर प्रमोटर एएच जैदी के अनुसार, गरडिया महादेव, गेपरनाथ, भैंसरोडगढ़, जवाहर सागर व राणा प्रताप सागर के आईलैंड, गिरधरपुरा , बोराबांस सहित चंबल की कराइयों में लोंग बिल्ड वल्चर अधिक संख्या में नजर आने लगे हैं। आॅक्टूबर माह से नेस्टिंग शुरू हो जाती है। इन जगहों पर तीन दर्जन से अधिक गिद्दों के अंडे नजर आने लगे हैं। यह अपने घौंसले चट्टानों के बीच दरारों व पेड़ों पर बनाते हैं। एक महीने बाद अंडों से चूजे बाहर आएंगे। ऐसे में इनकी संख्या बढ़ना प्रकृति के जीवन चक्र के लिए अच्छे संकेत माने जाते हैं।
मुकुंदरा में 1500 से ज्यादा संख्या
पक्षी विशेषज्ञ डॉ. अंशु शर्मा ने बताया कि मुकुंदरा के जंगलों में सबसे ज्यादा संख्या इजिप्शियन वल्चर की है। यह वल्चर प्रजातियों में सबसे छोटे कद का होता है। अनंतपुरा व अभेड़ा डम्पिंग यार्ड व बोराबांस के इलाकों में ज्यादा नजर आते हैं। कोटा से रावतभाटा तक इनकी संख्या करीब 1200 है। वहीं, लोंग बिल्ड वल्चर 500 से 600 तथा वाइट रेम्पर्ड 200 से 250 के बीच संख्या में है। वहीं, किंग वल्चर सबसे कम देखने को मिलते हैं।
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