40 से 60 वर्ष के लोगों को एटिपिकल पार्किंसनिज्म का खतरा ज्यादा
एटिपिकल पार्किंसनिज्म एक प्रकार का न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर है।
जब मस्तिष्क के अन्य हिस्सों में भी न्यूरोडीजेनेरेशन होने लगे तब उसे एटिपिकल पार्किंसनिज्म कहा जाता है।
जयपुर। एटिपिकल पार्किंसनिज्म एक प्रकार का न्यूरोडिजेनरेटिव डिसऑर्डर है। जब मस्तिष्क के अन्य हिस्सों में भी न्यूरोडीजेनेरेशन होने लगे तब उसे एटिपिकल पार्किंसनिज्म कहा जाता है। नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल जयपुर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मधुकर त्रिवेदी ने बताया कि एटिपिकल पार्किंसनिज्म और पार्किंसन डिजीज को पहचानना और दोनों का अलग-अलग इलाज करना इसलिए जरूरी है, क्योंकि टिपिकल पार्किंसन डिजीज के मरीजों पर लेवोडोपा दवा का असर काफी अच्छा होता है, लेकिन एटिपिकल पार्किंसनिज्म डिजीज वाले मरीजों पर ये दवा उतनी असरदार नहीं होती है। इसलिए हम मरीज के कुछ सामान्य टेस्ट और उसकी हिस्ट्री के आधार पर यह पता लगा लें की उसे दोनों में से कौन सी बीमारी है। अधिकतर एटिपिकल पार्किंसनिज्म 40 से 60 वर्ष की आयु वाले लोगों में देखा जाता है। अधिकांश लोगों में इसे पूरी तरह से रोक पाना संभव नहीं होता है।
लक्षण: टिपिकल पार्किंसन शरीर के एक हिस्से से शुरू होती है, जबकि एटिपिकल पार्किंसनिज्म पूरे शरीर पर असर करता है। हाथों में कंपन की शिकायत कम होती है। याददाश्त कमजोर हो सकती हैं। यह ज्यादा तेजी से बढ़ता है।
इलाज: एटिपिकल पार्किंसनिज्म के शुरुआत में मरीज को लेवोडोपा दवा देते हैं और लक्षणों के आधार पर कुछ और दवाइयां दी जाती है। इसमें फिजियोथैरेपी और फिजिकल एक्टिविटी बहुत महत्वपूर्ण है। मरीज को प्रोटीन युक्त खाना देना चाहिए, जिससे कि उनका वजन कम ना हो।
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