दिल्ली-मास्को डिफेंस डील से चीन का दबदबा होगा खत्म, भारत में तैनात हो सकेगी रूसी सेना
भारत-रूस सैन्य साझेदारी समझौते को ड्यूमा की मंजूरी
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से पहले रूस की ड्यूमा ने रणनीतिक सैन्य समझौते को मंजूरी दे दी। इसके तहत दोनों देश 5 साल के लिए एक-दूसरे की जमीन पर युद्धपोत, लड़ाकू विमान और सैनिक तैनात कर सकेंगे। यह साझेदारी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़त का जवाब मानी जा रही है।
मास्को। रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की भारत यात्रा से ठीक पहले रूसी संसद के निचले सदन ड्यूमा ने रक्षा भागीदारी को लेकर एक सैन्य समझौते को अपनी मंजूरी दे दी है। रूसी संसद ने मंगलवार 3 दिसंबर को इस समझौते पर अपनी मुहर लगाई। रूसी राष्ट्रपति 4 दिसंबर को भारत आ रहे हैं। यह समझौता भारत और रूस की सरकारों के बीच हुआ है। इसके बाद अब भारत और रूस की सरकारें अगर मंजूरी देती हैं तो रूस के 5 युद्धपोत, 10 सैन्य विमान और 3 हजार सैनिक 5 साल के लिए भारतीय जमीन पर तैनात किए जा सकेंगे। इसे 5 साल के लिए बढ़ाया जा सकता है। भारत के भी इतने ही सैनिक और युद्धपोत रूसी जमीन पर तैनात किए जा सकेंगे। रूसी संसद में इसकी जानकारी दी गई है।
रूस का भारत के साथ रिश्ता रणनीतिक और व्यापक
रूसी संसद ने इंडिया रूस रेसीप्रोसल एक्सचेंज ऑफ लॉजिस्टिक सपोर्ट समझौते को मंजूरी दे दी है। इस समझौते पर 18 अक्टूबर 2025 को हस्ताक्षर किया गया था। इस समझौते में दोनों देशों में सेनाओं को भेजने और एक-दूसरे के युद्धपोत को बंदरगाहों में प्रवेश करने की अनुमति, हवाई स्पेस और एयरफील्ड के इस्तेमाल के नियम शामिल हैं। ड्यूमा के चेयरमैन व्याचेस्लाव वोलोदिन ने कहा, रूस का भारत के साथ रिश्ता रणनीतिक और व्यापक है। हम इसकी कद्र करते हैं और समझते हैं कि इस समझौते को मंजूरी देकर आज हमने आपसी समझ, खुलेपन और संबंधों के विकास की पुष्टि कर रहे हैं।
भारत रूस डील से चीन को मिलेगा जवाब
वोलोदिन ने जोर देकर कहा कि दोनों ही देशों का संबंधों का लंबा इतिहास रहा है। दोनों देश एक-दूसरे के साथ बहुत अच्छा व्यवहार करते हैं। विश्लेषकों का कहना है कि इस सैन्य समझौते से रूस और भारत दोनों को ही फायदा होने जा रहा है। हालांकि, कुछ विश्लेषक इसके नुकसान भी बता रहे हैं। रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन जिस तरह से दादागिरी दिखा रहा है, इस तरह का सैन्य समझौता भारत की मदद कर सकता है। रक्षा विशेषज्ञ कमोडोर अनिल जय सिंह ने द डिप्लोमैट में लिखा, भारतीय नौसेना ने एक साथ कई मिशन चलाने की योजना पर काम कर रही है।
हिंद प्रशांत क्षेत्र में 12 से 15 भारतीय युद्धपोत लगातार स्वतंत्र रूप से हिंद महासागर की सीमा पर महत्वपूर्ण चोकप्वाइंट की निगरानी करते रहते हैं। जय सिंह ने कहा कि भारतीय युद्धपोत व्यापार को सुरक्षित रखने और आपदा के दौरान मानवीय मदद मुहैया कराने में अहम भूमिका निभाते हैं।
इसके अलावा वे युद्धक गैर परंपरागत सुरक्षा खतरों से भी निपटते हैं। इसके अलावा भी वे कई काम करते हैं। हर युद्धपोत के साथ लॉजिस्टिक सपोर्ट शिप को भेजना संभव नहीं है। इसलिए मित्र देशों के लॉजिस्टिक सपोर्ट शिप की मदद मिलना ऐसे मिशन के लिए बहुत जरूरी है। विश्लेषकों का कहना है कि इस तरह के समझौते से भारतीय नौसेना वास्तव में एक वैश्विक नौसैनिक ताकत बन जाएगी।
भारतीय सेना को होगा बड़ा फायदा
उन्होंने कहा कि भारतीय सेना के लिए भी यह समझौता काफी फायदेमंद होने जा रहा है। भारत के पास करीब 70 फीसदी हथियार रूसी मूल के हैं। इसमें सुखोई जेट, टी-90 टैंक और एस 400 एयर डिफेंस शामिल हैं। रूसी लॉजिस्टिक नेटवर्क से जुड़कर भारत को बड़ा फायदा होगा। वहीं रूस को इस समझौते से यह फायदा होगा कि वह पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद भी वैश्विक स्तर पर अपनी पहुंच बढ़ा पाएगी। यूक्रेन युद्ध की वजह से अभी रूस अलग थलग पड़ा हुआ है। भारत को जहां आर्कटिक में पहुंच मिलेगी, वहीं रूस को भी हिंद महासागर में पहुंच मिल जाएगी। पुतिन की सेना एशिया में अपना प्रभाव दिखा सकेगी और इससे चीन को हिंद महासागर में जवाब मिलेगा।

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