असमंजस में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता : पार्टी को कैसे संभालें, इंडिया गठबंधन को न छोड़ते और न पकड़ते
कांग्रेस पार्टी की रफ्तार धीमी पड़ने लगी है
एक राजनीतिक पंडित ने चुटकी लेते हुए कहा, इसमें नया क्या है? जून 2024 में पार्टी ने जोर पकड़ा था।
नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस में सन्नाटा है। कई वरिष्ठ नेता इस चिंता में हैं कि पार्टी को कैसे सम्भाला जाए। क्या इंडिया गठबंधन को छोड़ कर कांग्रेस का कोई भविष्य नहीं है, लेकिन महाराष्ट्र और दिल्ली की हार के बाद इंडिया गठबंधन में कांग्रेस का भाव औंधे मुंह गिर पड़ा है। बीते लोकसभा चुनाव में सीटें बढ़कर 99 तक पहुंच गई तो कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी पूरे जोश में दिखे। ऐसा लगा कि 10 वर्ष बाद विपक्ष मोदी सरकार को ठीकठाक घेरने की ताकत में आई है। लेकिन देश की सबसे पुरानी पार्टी लोकसभा चुनावों में मिली सफलता के सिलसिले को आगे नहीं बढ़ा पाई। पहले हरियाणा, फिर महाराष्ट्र में हार के बाद दिल्ली में दिखी उलझन ने कांग्रेस के अंदर की बड़ी खामी की तरफ इशारा किया है। कांग्रेस पार्टी की रफ्तार धीमी पड़ने लगी है। इस बात पर एक राजनीतिक पंडित ने चुटकी लेते हुए कहा, इसमें नया क्या है? जून 2024 में पार्टी ने जोर पकड़ा था।
17वीं लोकसभा में कांग्रेस की सीटें लगभग दोगुनी हो गई थीं। 52 से बढ़कर 99 सीटें जीत ली थीं पार्टी ने। खास बात यह थी कि बीजेपी 240 सीटों पर सिमट गई। बहुमत से कम सीटें होने के कारण भाजपा को सहयोगियों के साथ सरकार बनानी पड़ी। 543 सदस्यों वाले सदन में 99 सीटें कोई बड़ी संख्या नहीं है। लेकिन यह कांग्रेस के पक्ष में बढ़ते जनाधार का संकेत जरूर था। अचानक कांग्रेस में नई ऊर्जा का संचार हुआ। राहुल गांधी विपक्ष के नेता बने। उन्होंने नरेंद्र मोदी पर जोरदार हमला बोला। एक आत्मविश्वास से भरा विपक्ष अनिश्चित सत्ताधारी दल का सामना कर रहा था। सत्ताधारी दल अभी तक आम चुनावों में मिली हार से उबर नहीं पाया था। फिर आई हरियाणा में कांग्रेस की हार। हालांकि कांग्रेस ने 90 में से 37 सीटें जीतीं, लेकिन उसका वोट शेयर बीजेपी से सिर्फ एक प्रतिशत कम था। इस नतीजे ने कई लोगों को हैरान कर दिया। बीजेपी के लोग भी हैरान थे।
कुछ का मानना है कि कांग्रेस में गुटबाजी और बड़ी संख्या में बागियों की जमात हार का कारण बनी। हरियाणा में हार कांग्रेस की अपनी गलतियों का नतीजा थी। महाराष्ट्र के नतीजों ने कांग्रेस और उसके सहयोगियों एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (यूबीटी) को हिला कर रख दिया। सिर्फ चार महीने पहले ही महा विकास अघाड़ी ने 48 में से 30 लोकसभा सीटें जीती थीं। हरियाणा और महाराष्ट्र ने कांग्रेस का मनोबल तोड़ दिया। लेकिन दिल्ली ने उस रफ्तार को छीन लिया जो उसने 2024 के मध्य में हासिल की थी। दिल्ली में कांग्रेस तीसरी बार खाता भी नहीं खोल पाई। दिल्ली ने कांग्रेस के भ्रम को भी उजागर किया। पार्टी किस रास्ते पर चले, इसे लेकर असमंजस है। क्या उसे अकेले चुनाव लड़ना चाहिए और अपना संगठन मजबूत करना चाहिए?
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