परिचर्चा : नशा मुक्ति के लिए जरूरी है सामूहिक प्रयासों की चोट, नशे की हो रही होम डिलिवरी 

बड़ा कारण : बेरोजगारी, स्टेटस सिंबल, तनाव और इमोशन की समाज में कमी

परिचर्चा : नशा मुक्ति के लिए जरूरी है सामूहिक प्रयासों की चोट, नशे की हो रही होम डिलिवरी 

समाज के विभिन्न मुद्दों पर आयोजित परिचर्चा की श्रंखला में शुक्रवार को ड्रग्स के समाज पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर दैनिक नवज्योति कार्यालय में मासिक परिचर्चा का आयोजन किया गया

कोटा। समाज के विभिन्न मुद्दों पर आयोजित परिचर्चा की श्रंखला में शुक्रवार को ड्रग्स के समाज पर पड़ रहे दुष्प्रभाव को लेकर दैनिक नवज्योति कार्यालय में मासिक परिचर्चा का आयोजन किया गया। परिचर्चा में ड्रग्स के उत्पादन, सप्लाई, डिमांड, तस्करी, मादक पदार्थों की अवेलिबिलिटी, रोकने के इंतजाम के साथ समाज पर पड़ रहे प्रभाव पर चर्चा की गई। परिचर्चा का विषय था ड्रग्स आर लाइक टरमाइट्स विच ईट्स द बॉडी था। इस परिचर्चा में सेन्ट्र ब्यूरो आॅफ नारकोटिक्स के डिप्टी कमिश्नर, एडिश्नल एपपी, विभिन्न एनजीओ के सदस्य,साइकेटिस्ट, समाज शास्त्री, प्रोफेसर ,ब्रह्मा कुमारी की बहनें, किसान नेता सहित कुछ ऐसे लोगों को भी आमंत्रित किया गया था जो स्वयं ड्रग्स के दलदल में फंस चुके थे। परिचर्चा के दौरान सभी विषय विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी । प्रस्तुत हैं उसके अंश 

नशे की हो रही होम डिलिवरी 
कोटा शहर को यदि नशे से मुक्त कराना है तो रुट्स को पहचानना और उसे तोड़ना होगा, जो प्रतिबंधित नशा सामग्री है, वह ब्लैक से बिक रही है। ऐसे में सप्लाई चैन को खत्म करना जरूरी है। हालात यह है, नाबालिगों से न केवल नशा बिकवाया जा रहा है बल्कि होम डिलिवरी भी करवाई जा रही है। ऐसे में जनजागरण को साथ लेकर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए। 
- कुलदीप अडसेला,सचिव परिवर्तन सेवा संस्थान नशा मुक्ति केंद्र कुन्हाड़ी

5 साल के अथक प्रयास से छूटा नशा
सन 1984-85 में तिनका-तिनका जोड़कर मकान बनाया था।  वर्ष 1986  में बाढ़ आई तो मकान ढह गया। जिससे मैं तनाव में रहने लगा। काम-घंधे भी छूट गए। इसी दौरान साथियों के साथ पहली बार स्मैक पी तो कुछ समय के लिए अपने गम भूल गया। फिर स्मैक की लत लग गई। फिर इंजेक्शन लगाने लगा। लेकिन यह नशा महंगा होने के कारण इंजेक्शन वाला नशा करने लगा। बाद में कुछ लोगों की मदद से नशा मुक्ति केंद्र पहुंचा, जहां पांच साल इलाज चला और अथक प्रयासों से आज नशे की गिरफ्त से आजाद हो सका।
- सत्यनारायण, नशा पीड़ित

नशे का कारोबार जड़ से खत्म करने की जरूरत
गांजा कॉमन हो चुका है, कोई कॉलेज ऐसा नहीं बचा, जहां गांजे का सेवन नहीं होता हो। अफीम के बाद स्मैक का नशा तेजी से बढ़ रहा है। हालात यह है कि कोई स्मैक के नशे में पड़ जाता है तो फिर उसे छोड़ नहीं पाता। इस समय सबसे ज्यादा नशे का रेशो स्मैक का आ रहा है। घर-परिवार बर्बाद हो जाता है। नशे की ग्रोथ तेजी से बढ़ रही है, जिसे खासकर किशोरावस्था से युवाअवस्था तक नशे की गिरफ्त में हैं, जिन्हें बचाने के लिए नशे के कारोबार को जड़ से खत्म करने की जरूरत है।  
- रजनीश मेहरा, ड्रग्स डिएडिक्शन साइक्लोजिस्ट

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नशा मुक्त  कोटा अगला लक्ष्य
चित्तौड़ व नीमच के अलावा अब कोटा में नॉर्थ ईस्ट से भी  बड़ी मात्रा में नशा कोटा में आ रहा है। इसमें सभी अधिक घातक एमडी अर्थात सिंथेटिक नशा है। नारकोटिक्स विभाग ने आॅपरेशन युवा रक्षा नशा मुक्त नाम से अभियान शुरु किया है। इस अभियान के तहत विभाग का लक्ष्य है कि कोटा को नशा मुक्त बनाया जाए। विभाग द्वारा नशा उत्पादन से सप्लायर व उपभोग करने वालों तक की चैन को तोड़ने की दिशा में कार्रवाई की जा रही है। कुछ संस्थाएं नशा छुड़ाने के नाम पर अवैध रूप से दवाओं का सेवन करवा रहे हैं। जबकि वह दवा भी बिना अधिकृत डॉक्टर की सलाह से ही दी जा सकती है। सप्लाई के साथ ही नशे की डिमांड को भी कम करने की जरूरत है। 
- नरेश बुंदेल, उप नारकोटिक्स आयुक्त केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो 

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प्रोडक्शन व सप्लाई चैन तोड़ने की जरूरत 
नशे का कारोबार को जड़ से उखाड़ने फैंकने के लिए प्रोडक्शन, सप्लाई चैन और इनकम सोर्स को खत्म करने की जरूरत है। नशा प्रोडक्शन केंद्र  झालावाड़, चित्तौड़ व मध्यप्रदेश के कुछ जगहों पर है। गांजा हिमाचल व उड़िसा से आ रहा है। ऐसे में हमें नशे का प्रोडक्शन खत्म करना होगा। इसी तरह नशा जिन रुट्स से आता है, वहां बड़ा सिंडिकेट काम करता है। माल स्टोर करने वाला, सप्लाई करने वाला, बेचने वाला सब अलग-अलग होते हैं, यही सप्लाई चैन है, जिसे नष्ट करने की जरूरत है। साथ ही पैसे से संबंधित जो क्राइम है, यदि उसे अन इकोनोमिक बना दिया जाए तो नशे का कारोबार खत्म किया जा सकता है।  हमने पिछले साल वर्ष 2024 में 156 मुकदमें दर्ज किए हैं, जबकि वर्ष 2025 की जनवरी-फरवरी के डेढ़ माह में ही 66 केस दर्ज किए हैं। वहीं, पहले 223 लोगों को गिरफ्तार किया और अब 74 लोगों को पकड़ चुके हैं। इसके अलावा गाड़ियां भी जब्त की है।  
- दिलीप कुमार सैनी, एडिशन एसपी कोटा शहर

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नशा करना स्टेटस सिम्बल बन गया
नशा करने के कई कारण हो सकते है। सबसे बडणा कारण अकेलापन होता है। शुरुआत में नशा अच्छा लग सकता है लेकिन यह खतरनाक होता है। नशा कराने वाले पहले इसे फ्री में देते हैं बाद में इसकी लत पड़ जाने पर व्यक्ति खुद उसे तलाशता हुआ चला जाता है। कई लोगों के लिए नशा स्टेटस सिम्बल बन गया है। जबकि नशे के कारोबार को रोकने के लिए सभी को सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है।  
- डॉ. अशोक कुमार गुप्ता, सेवानिवृत्त प्राचार्य राजकीय कला कन्या महाविद्यालय

 कॉलेज-विवि में बच्चों के ऊपर नियुक्त हो मेंटर

नशे की दुनिया में प्रवेश करने वाले को उचित मार्गदर्शन एवं उनके प्रति सहानुभूति पूर्ण व्यवहार का अभाव मुख्य रूप से जिम्मेदार है। इसके लिए परिवार का खुशनुमा माहौल के साथ विद्यालयों, महाविद्यालयों  एवं विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों के समूह बनाकर उनके लिए शिक्षकों को मेंटर नियुक्त किया जाए ताकि निरंतर संवाद द्वारा उचित मार्गदर्शन से उन्हें सही रास्ता दिखाया जा सके। ड्रग्स की तस्करी और अवैध व्यापार पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए। नशीली दवाओं की बिक्री और सेवन के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए ।
- डॉ.मीनू माहेश्वरी, विभागाध्यक्ष कोटा यूनिवर्सिटी 

नशे की जरूरत क्यों, समाधान खोजने की जरूरत
युवाओं को नशे की जरूरत क्यों पड़ रही है, वह नशे की हालत में क्यों आया है,इसके कारणों को खोज समाधान निकालने की जरूरत है। व्यक्ति जन्म से नशे में नहीं आता, उसे हालात व परिस्थितियां उसे नशे में लाते हैं। जब हमने नशे में गिरफ्त लोगों से बात की तो सामने आया कि अपने गम भुलाने को वह नशे में खुशी ढूंढ रहे हैं। ऐसे में अपने आसपास का माहौल खुशनुमा बनाए। कोई व्यक्ति नशा करे तो उसे अपने बच्चों की तरफ देखना चाहिए, उनका ख्याल आएगा तो वह नशे से दूर होगा। 
- बीके आरती, बह्माकुमारी 

घर के पुरूष सदस्यों से डरने लगी महिलाएं
कोटा की 97 कच्ची बस्तियों में 1.68 लाख परिवार रहते हैं, जब इन बस्तियों में महिलाओं के बीच जाती हूं तो पहले तो वह अपनी बात नहीं बताती थी लेकिन अब नशे के बढ़ते प्रभाव के कारण इतना चैंजेज आया कि जिन घरों में दो या तीन बेटियां हैं, उन्हें महिलाएं अकेली छोड़कर नहीं जाती। काम पर जाती हैं तो बेटियों को साथ लेकर जाती है। हालात यह हो गए कि घर में रहने वाले पिता, भाई, पति सहित अन्य पुरूष सदस्यों से महिलाओं को डर लगने लगा है, जो बड़ा चिंता का विषय है। पहले पुरूष नशा करते थे, अब महिलाएं भी सीख गई, यह क्यों हुआ, इसकी तह में जाकर समाधान खोजने की जरूरत है।  
- हेमलता गांधी,सोशल डवलपमेंट मैनेजर  नगर निगम कोटा

देखादेखी से नशे की चंगुल में फंस रहे किशोर
नशे की समस्या किशोरावस्था से शुरू होती है। किशोर जब अपने घर-परिवार में पिता या अन्य सदस्य को सिगरेट, शराब पीते देखते हैं तो उनमें जिज्ञासा जाग उठती है कि इसे पीने से क्या होता है। जब वह घर से बाहर दोस्तों के बीच पहुंचता है तो वह सिगरेट, शराब या अन्य नशा करता है और शोक पूरा करते करते कब नशे की गिरफ्त में आ जाते हैं, उन्हें भी पता नहीं चल पाता। शिक्षण संस्थाओं में गांजा, सिगरेट पीना आम बात हो गई। क्योंकि, यह आसानी से मिल जाता है। 
- दीपक सिंह, सचिव, सुशीला देवी चेरिटेबल सोसायटी

बचपन में ही नशे की नुकसान बताने की जरूरत
जन्म लेने से दस साल तक के बच्चे के दिमाग में जो बात डाली जाएगी उसका उसके पूरे जीवन पर असर पड़ता है। यदि इसी उम्र में  उसकी मां यदि समझाएगी तो बच्चा जिंदगी में कभीउस तरफ नहीं जाएगा। जबकि नशा करने वालों को सुधारना बहुत मुश्किल है। बरसों से प्रयास करने के बाद भी उतनी सफलता नहीं मिली जितनी अपेक्षा की जा रही थी। जितनों का नशा छुड़ाया जाता है उससे अधिक नए लोग नशे की गिरफ्त में आ रहे हैं। 
- डॉ. आर.सी. साहनी चेयरमेन संवेदना सेवा रिसर्च समिति

अफीम की अनाधिकृत सप्लाई को रोकना होगा
अफीम की खेती सरकार द्वारा अधिकृत पट्टे जारी करने पर किसान ही करते हैं। लेकिन किसानों से ही अफीम सरकार के अलावा अनाधिकृत रूप से बाजार में बेची जा रही है। जिससे उत्पादन केन्द्रों पर उसका उपयोग नशा बनाकर बाजार में सप्लाई करने के रूप में किया जा रहा है। सबसे अधिक भवानीमंडी में अनाधिकृत उतपदन केन्द्र संचालित हो रहे है। नारकोटिक्स विभाग को किसानों से समंवय स्थापित करके किसानों को अचछे दाम दिलाने का प्रयास करना चाहिए जिससे इसे बाजार में अनाधिकृत रूप से जाने से रोका जा सके। 
- दुलीचंद बोरदा, जिला अध्यक्ष भारतीय किसान सभा

गायत्री परिवार नशा मुक्ति  को प्रतिबद्ध
ड्रग्स की तस्करी और अवैध व्यापार पर कड़ी नजर रखी जानी चाहिए। नशीली दवाओं की बिक्री और सेवन के खिलाफ सख्त कानूनी कार्यवाही की जाए। नशे की समस्या किशोरावस्था से शुरू होती है।  किशोर जब अपने घर-परिवार में पिता या अन्य सदस्य को सिगरेट, शराब पीते देखते हैं तो उनमें जिज्ञासा जाग उठती है कि इसे पीने से क्या होता है। गायत्री परिवार नशा छुड़ाने को लगातार कायर्च करता रहता है। अधिकतर युवा इसमें ही खुशी तलाशने लगते है। डॉक्टर हमेशा नशे के खिलाफ जंग में सहयोग करने को तैयार है। कई लोगों को नशा मुक्त कराया है। -हेमराज पांचाल गायत्री परिवार
- तनाव कम करने के लिए नशे का सेवन

नशा कुछ पल के लिए व्यक्ति को सुकून दे सकता है। लेकिन यह बाद में जीवन बर्बाद कर देता है। विशेष रूप से युवा पढ़ाई के तनाव को कम करने के  लिए घर वालों से छिपकर नशा करने लगते है। शुरुआत में नशा करने से खुशी मिलती है तो अधिकतर युवा इसमें ही खुशी तलाशने लगते है। डॉक्टर हमेशा नशे के खिलाफ जंग में सहयोग करने को तैयार है। कई लोगों को नशा मुक्त कराया है। नशा मुक्ति केन्द्रों में जो दवाईयां दी जाती है। वह बिना डॉक्टर की सलाह से और निर्धारित मात्रा में दी जाती है। जिसे बाद में कम कर दिया जाता है। 
- डॉ. मिथलेश खींची, असि. प्रोफेसर मेडिकल कॉलेज कोटा 

आमजन को निभानी होगी जिम्मेदारी
नारकोटिक्स विभाग तो अपने स्तर पर नशे की सप्लाई करने वालों पर कार्रवाई कर रहा है। बड़ी मात्रा में दूसरे प्रदेशों से आने वाली नशे की खैप को कोटा में भी पकड़ा है। लेकिन यदि आमजन भी अपनी जिम्मेदारी निभाए और विभाग को नशे से संबंधित सूचना दे तो उनकी सूचना को गुप्त रखकर कार्रवाई की जा सकती है। सामूहिक प्रयासों से इसे काफी हद तक कम किया जा सकता है। 
- अरविंद सक्सेना, अधीक्षक केन्द्रीय नारकोटिक्स ब्यूरो

दृड़Þ इच्छा शक्ति से छोड़ा नशा
प्रकाश कुमार,मोहित दाधीच व मनोज गौतम ने बताया कि वे पहले नशे की गिरफ्त में जकड़ चुके थे। लेकिन अब उन्होंने इसे छोड़ दिया है। नशा छोड़ चुके इन लोगों ने बताया कि किसी को जेल में तो किसी को दोस्तों से नशे की लत लगी थी। नशा करने से उन्हें अच्छा महसूस होता था। पहले नशे के बिना नींद नहीं आती थी। शरीर के साथ-साथ पैसे का भी नुकसान हुआ। कई बार नशा मुक्ति केन्द्र में गए वहां दवाई भी ली लेकिन फिर भी फर्क नहीं पड़ा। बाद में नशा मुक्ति केन्द्र में जाकर वहां नशा छोड़ने की दृढ़ इच्छा शक्ति की।  पहले जहां दवाई अधिक लेते थे और नीनद कम आती थी। उसके बाद धीरे-धीरे दवाई भी कम कर दी। अब बिना दवाई के नींद भी अच्छी आती है और जीवन खुशहाल है। नशा छोड़ने वालों ने बताया कि अब वे नौकरी कर खुशहाल जीवन जी रहे है। साथ ही अन्य लोगों को भी इससे दूर रहने की सलाह दे रहे है। 

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