उत्तराखण्ड की 70 विधानसभा सीटों से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला कल

632 प्रत्याशियों में से मात्र 70 भाग्यशाली राजनीतिज्ञों के नाम कल सुबह आठ बजे ईवीएम खुलने के लगभग तीन घण्टे बाद सामने आने लगेंगे।

 उत्तराखण्ड की  70 विधानसभा सीटों से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला कल

राज्य गठन के बाद से ही, भाजपा और कांग्रेस दोनों में कांटे की टक्कर रही है।

देहरादून। उत्तराखण्ड की सभी 70 विधानसभा सीटों से चुनाव लडऩे वाले प्रत्याशियों के भाग्य का फैसला गुरुवार को होगा। राज्य की पांचवीं विधानसभा के गठन के लिये गत 14 फरवरी को 11,697 मतदेय स्थलों पर हुये मतदान के बाद, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) में बंद कुल 632 प्रत्याशियों के भाग्य का पिटारा कल खुल जायेगा। इस बार राज्य में कुल 81 लाख, 72 हजार, 173 मतदाताओं में से 65.37 फीसदी ने ही मतदान किया, जो वर्ष 2017 के चुनावों से थोड़ा कम रहा है। वर्ष 2017 में मतदान प्रतिशत 65.56 रहा था। अभी इसमें पोस्टल बैलेट का आंकड़ा जुड़ेगा तो मतदान प्रतिशत में कुछ बढ़ोतरी दर्ज की जाएगी।

इन कुल 632 प्रत्याशियों में से मात्र 70 भाग्यशाली राजनीतिज्ञों के नाम कल सुबह आठ बजे ईवीएम खुलने के लगभग तीन घण्टे बाद सामने आने लगेंगे। इनमें निवर्तमान मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (पार्टी) प्रत्याशी पुष्कर ङ्क्षसह धामी, पार्टी अध्यक्ष मदन कौशिक, विधानसभा अध्यक्ष प्रेमचंद अग्रवाल सहित सभी मंत्रिमण्डल सदस्यों के अलावा, कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव और पूर्व में मुख्यमंत्री रहे हरीश रावत, प्रदेश अध्यक्ष गणेश गोदियाल सहित अनेक पूर्व मंत्री और दर्जा प्राप्त मंत्री भी अपने भाग्य का फैसला सुनने को व्याकुल हैं। पहली बार आम आदमी पार्टी (आप) ने भी सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी उतारे हैं, जिनमें उसके मुख्यमंत्री पद के दावेदार सेवानिवृत्त कर्नल अजय कोठियाल और अन्य के भी भाग्य का फैसला हो जायेगा। इनके अलावा, कांग्रेस और भाजपा के विद्रोही और स्वतंत्र प्रत्याशियों की भी स्थिति साफ हो जायगी।

भाजपा और कांग्रेस के बागी भी परिणाम पर व्यापक असर डाल सकते हैं। इस चुनाव में भाजपा से 13 और कांग्रेस के छह बागी मैदान में हैं। दिलचस्प बात यह कि दोनों ही दल अब कड़े मुकाबले में फंसने के बाद अपने उन बागियों से संपर्क में जुट गए हैं, जो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और मुख्य मुकाबले का हिस्सा माने जा रहे हैं। यह कवायद इसलिए है ताकि जीतने की स्थिति में इन्हें अपने पाले में लाया जा सके।

राज्य गठन के बाद से ही, भाजपा और कांग्रेस दोनों में कांटे की टक्कर रही है। वर्ष 2017 में हुये चौथी विधानसभा चुनावों में तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत ने दो सीटों से चुनाव लड़ा। दुर्भाग्य से वह दोनों जगह से खुद तो हार ही गये, कांग्रेस के मात्र 11 सदस्य ही विजय प्राप्त कर सके। यह पहली बार हुआ जब भाजपा ने रिकॉर्ड 57 सीटों पर विजय हासिल की। जबकि उससे पहले यहां मात्र एक अथवा दो सीटों के अंतर से ही वह कांग्रेस के आगे-पीछे रही।

उत्तराखण्ड राज्य का गठन अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्रित्व काल में हुआ। पहले मुख्यमंत्री के रूप में नित्यानन्द स्वामी को अंतरिम सरकार में मुख्यमंत्री बनाया गया। विडम्बना रही कि पहली विधानसभा के चुनावों में यहां कांग्रेस ने जीत हासिल कर सरकार बनायी। इसके बाद हुये सभी चार चुनावों में एक बार भाजपा, एक बार कांग्रेस की तर्ज पर सरकार बनीं। निवर्तमान भाजपा की पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व वाली सरकार ने पहली बार इस मिथक को तोडऩे का संकल्प लिया है कि वह लगातार दूसरी बार सरकार बनाये। भाजपा अपने इस संकल्प को पूरा करने में कितना सफल होगी, यह तो गुरुवार तीसरे पहर तक साफ हो जायेगा। इस बीच, आये अधिकांश एक्जिट पोल में दोनों राष्ट्रीय दलों में वर्ष 2012 की तरह बहुत कम अंतर से हार-जीत का $फैसला होने के अनुमान लगाए गये हैं। अधिकांश में कांग्रेस को विजय पथ पर बढऩे के दावे भी हुये हैं। अब इन सब कयासों पर कुछ घण्टों के अंतराल पर तस्वीर साफ हो जाएगी। भाजपा और कांग्रेस के बागी भी परिणाम पर असर डाल सकते हैं। इस चुनाव में भाजपा से 13 और कांग्रेस के छह बागी मैदान में हैं। दिलचस्प बात यह कि दोनों ही दल अब कड़े मुकाबले में फंसने के बाद अपने उन बागियों से संपर्क में जुट गए हैं,जो निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और मुख्य मुकाबले का हिस्सा माने जा रहे हैं। यह कवायद इसलिए,ताकि जीतने की स्थिति में इन्हें अपने पाले में लाया जा सके।

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