संसद को किसी विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती अदालत, हर पहलू पर सोच समझकर बनाया नया कानून : सुप्रीम कोर्ट
पुलिस चार्जशीट की प्रति पीड़ित को मुफ्त में उपलब्ध कराए
ये आदेश दे सकती है कि वो कानून को खास तरीके से बनाएं। याचिका में मांग की गई थी कि निचली अदालतें और पुलिस चार्जशीट की प्रति पीड़ित को मुफ्त में उपलब्ध कराए।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोर्ट विधायिका को किसी विशेष तरीके से कानून बनाने का निर्देश नहीं दे सकती है। जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने ये टिप्पणी किसी आपराधिक मामले में चार्जशीट पर संज्ञान लेते समय पीड़ित को नोटिस जारी करने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि संसद ने हर पहलू पर सोच समझकर नया कानून बनाया है। कोर्ट ने कहा कि रिट याचिका में ना तो हाईकोर्ट और न ही सुप्रीम कोर्ट विधायिका को ये आदेश दे सकती है कि वो कानून को खास तरीके से बनाएं। याचिका में मांग की गई थी कि निचली अदालतें और पुलिस चार्जशीट की प्रति पीड़ित को मुफ्त में उपलब्ध कराए।
धारा 230 में पीड़ित के सुने जाने के अधिकार का कोई उल्लेख नहीं
याचिकाकर्ता के अधिवक्ता ने कहा कि भारतीय न्याय सुरक्षा संहिता की धारा 230 में पीड़ित के सुने जाने के अधिकार का कोई उल्लेख नहीं है। याचिका में मांग की गई है जिला अदालतें किसी चार्जशीट पर संज्ञान लेते समय पीड़ित को नोटिस जारी कर उनका भी पक्ष पूछे।
केंद्र के अधिवक्ता ने दी दलील
सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की धारा 230 के तहत अगर पुलिस की रिपोर्ट के आधार पर केस नियोजित किया जाता है, तो मजिस्ट्रेट और पुलिस आरोपी और पीड़ित दोनों को मुफ्त में चार्जशीट और दस्तावेजों की प्रति उपलब्ध कराते हैं।
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