यूपीएससी परीक्षा में हिन्दी ने लहराया परचम!
हम यह बात कह सकते हैं कि हिन्दी की धमक अपने पूरे परवान पर है और अब यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में भी हिन्दी अपना परचम लहरा रही है।
हाल ही में यूपीएससी यानी कि संघ लोक सेवा आयोग के इतिहास में हिन्दी मीडियम के सर्वश्रेष्ठ नतीजे आए हैं। यह दर्शाता है कि हिन्दी लगातार आगे बढ़ रही है। कुल मिलाकर हम यह बात कह सकते हैं कि हिन्दी की धमक अपने पूरे परवान पर है और अब यूपीएससी जैसी प्रतिष्ठित परीक्षाओं में भी हिन्दी अपना परचम लहरा रही है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि इस बार यूपीएससी की सिविल सेवा परीक्षा के नतीजे अपने आप में काफी खास और विश्व है। इसकी वजह यह है कि 2022 बैच में हिन्दी माध्यम से 54 उम्मीदवार सफल हुए हैं, जो कि बहुत बड़ी बात इसलिए है, क्योंकि अब तक यह समझा जाता था कि यूपीएससी जैसी परीक्षाओं में अंग्रेजी भाषा का अधिक महत्व है।
अब हिन्दी ने यह साबित कर दिया है कि भाषा कोई भी हो, कभी कोई भी भाषा कमजोर नहीं होती है और सभी भाषाओं का अपना-अपना अलग अलग महत्व व महत्ता है। जानकारी देना चाहूंगा कि हाल ही में यूपीएससी का जो परिणाम आया है, यूपीएससी के इतिहास में हिन्दी का यह सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन है। बताता चलूं कि पिछले साल आए 2021 बैच के रिजल्ट में हिन्दी के 24 उम्मीदवार सफल हुए थे और इस बार यह आंकड़ा 54 के आंकड़े को छू गया है, यानी कि पिछली बार की तुलना में इस बार दुगने से अधिक कैंडिडेट हिन्दी के साथ सफल हुए हैं, यह हिन्दी का बहुत ही शानदार व अच्छा प्रदर्शन कहा जा सकता है।
दूसरे शब्दों में हम यह बात भी कह सकते हैं कि अब हिन्दी का ग्राफ लगातार सुधर रहा है। इस बार टॉप-100 में 66वीं, 85वीं व 89वीं रैंक पर तीन उम्मीदवारों ने सफलता हासिल की है। यह भी बताता चलूं कि हिन्दी माध्यम की टॉपर 66वीं रैंक हासिल करने वाली कृतिका मिश्रा कानपुर की रहने वाली हैं तथा दिव्या तंवर ने इस बार परीक्षा में 105वीं रैंक हासिल की है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देना चाहूंगा कि 2021 बैच में भी दिव्या ने 438वीं रैंक हासिल की थी और तब वह सबसे कम उम्र (महज 22 साल) की आईपीएस चुनी गई थीं। अब वह आईएएस हो गई हैं। इन नतीजों में सबसे खास बात यह है कि 54 उम्मीदवारों में से 29 उम्मीदवारों ने वैकल्पिक विषय के रूप में हिन्दी साहित्य लेकर यह कामयाबी हासिल की है। दो छात्रों ने गणित विषय लेकर हिन्दी माध्यम से सफलता हासिल की, जिनमें से एक ने 120वीं रैंक हासिल की है। बहरहाल, हिन्दी को आज यदि हम विश्व भाषा कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी, क्यों कि आज के समय में हिन्दी के बोलने, समझने वालों की संख्या विश्व में तीसरी है।
कितनी बड़ी बात है कि विश्व के 132 देशों में जा बसे भारतीय मूल के लगभग 2 करोड़ लोग हिन्दी माध्यम से ही अपना कार्य निष्पादित करते हैं। लेकिन विडंबना की बात तो यह है कि आज भी बहुत से लोग हिन्दी की तुलना में अंग्रेजी भाषा को ही अधिक तवज्जो या महत्व देते हैं और वे समझते हैं कि आज अंग्रेजी भाषा के बिना काम नहीं चलाया जा सकता है। बहुत से लोग अंग्रेजी भाषा सीखने, बोलने को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हैं और वे यह सोचते हैं कि यदि वे हिन्दी बोलेंगे, पढ़ेंगे, लिखेंगे या सुनेंगे तो उन्हें दूसरे लोग अधिक महत्व नहीं देंगे। जबकि ऐसा नहीं है। अंग्रेजी भाषा भी बुरी नहीं है, कोई भी भाषा कभी भी अच्छी या बुरी नहीं होती है, हम सभी को विश्व की अनेकानेक भाषाएं सीखने का प्रयास करना चाहिए, लेकिन अपनी मां बोली, अपनी मातृभाषा को छोड़कर दूसरी भाषा को नहीं अपनाना चाहिए, क्योंकि यदि हम स्वयं ही अपनी भाषा को, भाषाओं को महत्व नहीं देंगे तो हमारी भाषा, भाषाएं आखिरकार कैसे पनपेगी? सबसे पहले हमें अपनी भाषा को महत्व देना चाहिए, क्योंकि अपनी मां बोली, अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्ति हमेशा सहज, सरल व सुबोध होती है।
कोई भी व्यक्ति जितनी सहज अभिव्यक्ति अपनी मातृभाषा, अपनी मां बोली में दे सकता है, उतनी सहजता, सरलता से वह दूसरी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति कभी भी नहीं दे सकता है। यहां जानकारी देना चाहूंगा कि एशियाई संस्कृति में अपनी विशिष्ट भूमिका के कारण हिन्दी एशियाई भाषाओं से अधिक एशिया की प्रतिनिधि भाषा है। एक भाषा के रूप में हिन्दी न सिर्फ भारत की पहचान है बल्कि यह हमारे जीवन मूल्यों, हमारी संस्कृति एवं संस्कारों की सच्ची संवाहक, संप्रेषक और परिचायक भी है। यह भारत की एकता व अखंडता की प्रतीक है। बहुत सरल, सहज और सुगम भाषा होने के साथ हिन्दी विश्व की संभवत: सबसे वैज्ञानिक भाषा है जिसे दुनिया भर में समझने, बोलने और चाहने वाले लोग बहुत बड़ी संख्या में मौजूद हैं। हिन्दी की शब्दावली वैज्ञानिक है और यह हमारे पारम्परिक ज्ञान, प्राचीन सभ्यता और आधुनिक प्रगति के बीच एक सेतु भी है। हिन्दी भारत संघ की राजभाषा (आफिशियल लेंग्वेज) होने के साथ ही ग्यारह राज्यों और तीन संघ शासित क्षेत्रों की भी प्रमुख राजभाषा है। संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल अन्य इक्कीस भाषाओं के साथ हिन्दी का एक विशेष स्थान है। जानकारी देना चाहूंगा कि संविधान की आठवीं अनुसूची में क्रमश: असमिया, उड़िया, उर्दू, कन्नड़, कश्मीरी,कोंकणी, गुजराती,डोगरी, तमिल, तेलगू, नेपाली, पंजाबी, बांग्ला, बोडो, मणिपुरी, मराठी, मलयालम, मैथिली, संथाली, संस्कृत व सिंधी को शामिल किया गया है।
-सुनील कुमार महला
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