जानें राज काज में क्या है खास
खोटा बेटा और खोटा सिक्का
सूबे के नेताओं की नजरें एक बार फिर से बालघाट पर टिकी हुई है।
अब नजर बालघाट पर :
सूबे के नेताओं की नजरें एक बार फिर से बालघाट पर टिकी हुई है। नजरें इसलिए टिकी हैं कि दौसा और करौली जिलों की बॉर्डर स्थित इस घाट पर शनिवार को दो नेताओं के बीच हुए मेल मिलाप से फ्यूचर में कोई न कोई जिन्न जरूर निकलेगा। गुजरे जमाने में भी दो किरोड़ियों के बीच मेल मिलाप हो चुका है। इनमें एक पटरियां रोकने में माहिर थे, तो दूसरे सड़कों को जाम करने में दक्षता रखते हैं। अब दोनों की सेकण्ड लाइन के नेताओं के बीच खिचड़ी पक रही है। कुछ महीनों पहले तक सेकण्ड लाइन के दोनों एक-दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते थे, पर इस बैसाख के महीने में दोनों का वक्त बदला हुआ है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि बालघाट में हुए मेल मिलाप में कोई न कोई राज जरूर छिपा है, जो आने वाले समय में गुल जरूर खिलाएगा।
खोटा बेटा और खोटा सिक्का :
कहावत है कि खोटा बेटा और खोटा सिक्का बुरे वक्त में काम कर जाते हैं। कुछ ऐसा ही पिछले कुछ महीनों से सूबे की राजधानी में दिख रहा है। अब देखो न, राज चाहे किसी का भी रहा हो, मगर उसके रत्नों ने खाकी वालों को खोटा साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। सूबे की सबसे बड़ी पंचायत में भी इनाम कम और गालियां ज्यादा दी हैं। जनता की नजरों में भी खाकी वालों की इमेज स्याह ही थी, लेकिन लॉ एंड ऑर्डर की जंग में सड़कों पर उतर कर खाकी वालों ने अपना जो रूप दिखाया, तो खादी वाले नेता तक शरमा गए और पब्लिक भी उनको सेल्यूट किए बिना नहीं रह सकी। इसे कहते हैं खोटा बेटा और खोटा सिक्का बुरे वक्त में ही काम आते हैं।
चर्चा इनाम की :
इन दिनों इनाम मिलने की चर्चा जोरों पर है। इनाम भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि एक्सटेंशन या ओहदे वाली कुर्सी से ताल्लुकात रखता है। ईटिंग एंड मीटिंग के बीच भी खाली वक्त में राज का काज करने वाले इसकी चर्चा किए बिना नहीं रहते। इसको लेकर सचिवालय से सीएमआर की नजरें टिकी हुई हैं। चर्चा है कि हरकारे वाले साहब की कुर्सी पर बैठे एसकेएस को मेहनत का इनाम तो मिलेगा, लेकिन इनाम कितना बड़ा होगा, यह राज के मुखिया पर निर्भर करता है। बड़े साहब को इनाम तो पहले भी मिल चुका है, जब राज बदलने के बाद भी साहब की ऊंची कुर्सी का पाया तक नहीं हिला था। अब नेक्स्ट वीक में षष्ठीपूर्ति के तोहफे के रूप में इस कुर्सी के पाये को और मजबूती मिलने की संभावना खुद ही बनती जा रही है।
एक जुमला यह भी :
सूबे में इन दिनों राज का काज करने वालों में एक जुमला जोरों पर है। छोटे-मोटे कारिन्दे तो इसे लेकर मुंह खोलने से पहले इधर-उधर देखते हैं, लेकिन दरबान बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल देते हैं। लेकिन इस बार सेहत वाले महकमें में दो मैडमों के बीच ईगो को लेकर मचे बवेले से दरबान भी चटकारे ले रहे हैं। एक दरबान छोटी मैडम के कान भरता है, तो बगल के कमरे में बैठने वाला दूसरा दरबान बडी मैम का मूड देख कर लंबी फेंकता है। जुमला है कि दोनों मैडमों के बीच हुई ईगो की लड़ाई सीएमओ तक तो पहुंच गई, मगर मूंछ के सवाल के फेर में फंसे साहब लोगों के पास ईगो वाली फाइल के पन्ने पलटने का वक्त नहीं है, सो अब सब कुछ ऊपर वाले के भरोसे है कि वह इस ईगो को किसकी बलि लेकर निपटाता है।
-एल. एल. शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं।)
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