नशे के बढ़ते साए और भविष्य का खतरा

नशे के कारोबार का नया अड्डा बन चुका  

नशे के बढ़ते साए और भविष्य का खतरा

आंकड़े और घटनाएं यह साबित कर रहे हैं कि नशे की लत का दंश सिर्फ व्यक्ति और परिवारों तक सीमित नहीं है, यह अब पूरे राज्य की समस्या बन चुकी है।

जून 2024 की एक अंधेरी रात, राजस्थान के श्रीगंगानगर जिले के अनूपगढ़ क्षेत्र में तैनात बीएसएफ  के जवानों ने एक ड्रोन की आवाज सुनी। जवानों ने तुरंत गोलियां चलाकर ड्रोन को गिराने का प्रयास किया। अगली सुबह, तलाशी अभियान में जो सामने आया, वह किसी फिल्मी दृश्य से कम नहीं था। 9 किलोग्राम हेरोइन, जिसकी अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत 30 करोड़ थी, जप्त की गई। यह घटना कोई अपवाद नहीं थी।जयपुर में एक विश्वविद्यालय के पास एक महिला को 6 लाख मूल्य की एमडी ड्रग्स के साथ गिरफ्तार किया गया। हाल ही में, राजस्थान पुलिस ने 14.55 लाख किलोग्राम डोडा पोस्त, 1,411 किलोग्राम डोडा, 197 किलोग्रामगांजा और 36 कि लोग्राम अफीम जब्त की। जिसमें 476 लोगों को गिरफ्तार किया। यह आंकड़े और घटनाएं यह साबित कर रहे हैं कि नशे की लत का दंश सिर्फ  व्यक्ति और परिवारों तक सीमित नहीं है, यह अब पूरे राज्य की समस्या बन चुकी है। संयुक्त राष्ट्र पदार्थ एवं अपराध कार्यालय की 2022 की विश्व औषधि रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 7 करोड़ लोग नशे के दुरुपयोग से जूझ रहे हैं, जिनमें से 17 प्रतिशत लोग इसके आदी हैं। 

राजस्थान में 25,000 से अधिक लोग ड्रग एडिक्शन के शिकार हैं, जिनमें से 60 प्रतिशत की उम्र 25 से 35 साल के बीच है। यह घटनाएं एक उदाहरण हैं कि कैसे राजस्थान धीरे-धीरे उड़ता राजस्थान बनने की ओर बढ़ रहा है। क्या हमें सचेत होने में देर हो चुकी है, राजस्थान का शिक्षा का केंद्र कोटा, अब नशे के कारोबार का नया अड्डा बन चुका है। यहां 15 साल के किशोर गांजा और चरस जैसे नशीले पदार्थों के साथ पकड़े जा रहे हैं। इस शहर में हर दिन 40 से 50 लाख रुपये का ड्रग्स कारोबार हो रहा है, जो सालभर में 180 करोड़ रुपये तक पहुंच जाता है। सबसे डरावनी बात यह है कि अब तस्करी में महिलाएं और बुजुर्ग भी शामिल हो रहे हैं। यह स्थिति केवल चिंता का कारण नहीं, बल्कि राज्य की पहचान पर भी सवाल खड़ा कर रही है। सरकार के प्रयास सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय को नशे की मांग में कमी लाने के लिए नोडल एजेंसी नियुक्त किया गया है।

2020 में नशा मुक्त भारत अभियान  की शुरुआत की गई, जो 272 संवेदनशील जिलों में चल रहा है। इस अभियान का उद्देश्य नशे के दुष्प्रभावों को रोकना और समाज के कमजोर वर्गों तक मदद पहुंचाना है। सरकार ने नशे के शिकार व्यक्तियों के पुनर्वास के लिए नशा मुक्ति केंद्रों और पुनर्वास सुविधाओं का विस्तार किया है। पिछले तीन वर्षों में सरकार ने 89,000 फुटबॉल मैदानों के बराबर अवैध भांग और अफीम की खेती नष्ट की है तथा 2047 तक भारत को मादक पदार्थ मुक्त बनाने का लक्ष्य सरकार ने निर्धारित किया है। नशे के प्रसार को रोकने के लिए देश में कड़े कानून लागू किए गए हैं। ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट, 1940, नशीली दवाओं के निर्माण और वितरण को नियंत्रित करता है। नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस एक्ट, 1985 के तहत नशीली दवाओं के अपराधों पर कड़ी सजा का प्रावधान है,  जिसमें 10 साल तक की कैद और भारी जुर्माना शामिल है। पुलिस और कानून प्रवर्तन एजेंसियों को इस अधिनियम के तहत व्यापक अधिकार दिए गए हैं, जिनमें तलाशी, जब्ती और गिरफ्तारी शामिल हैं। तकनीकी उपाय सरकार ने मादक पदार्थों की तस्करी रोकने के लिए नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो, राजस्व खुफिया निदेशालय और सीमा शुल्क विभाग को जिम्मेदारी सौंपी है। इसके अलावा डिजिटल पोर्टल्स को लॉन्च किया गया है, जो अधिनियम के तहत संदिग्धों के रिकॉर्ड, उंगलियों के निशान और अदालती आदेशों का डिजिटल डेटाबेस तैयार कर रहे हैं। 

अंतरराष्ट्रीय नशा नियंत्रण नीति के तहत सभी जिलों में पुनर्वास केंद्र स्थापित किए जा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमाओं पर ड्रग तस्करी रोकने के लिए निगरानी बढ़ाई गई है और ऑनलाइन माध्यम से नशीले पदार्थों की बिक्री रोकने के लिए अधिनियम को जोड़ा गया है। राजस्थान सरकार ने 2022 में नशा मुक्त राजस्थान निदेशालय की स्थापना की है, जो नशे के दुष्प्रभावों के खिलाफ जनजागरूकता फैलाने और नशे से जुड़े अपराधों को नियंत्रित करने में अहम भूमिका  निभा रहा है। इसके अलावा, एंटी नारकोटिक्स टास्क फोर्स का गठन किया गया है, जो नशीली दवाओं की तस्करी रोकने का कार्य करता है। जागरूकता फैलाने, नशा पीड़ितों को विधिक सहायता देने और नशे के खिलाफ कड़े कदम उठाने के लिए सेमिनार और संगोष्ठि आयोजित की जा रही है, ताकि युवा पीढ़ी को नशे से बचाया जा सके। यह लड़ाई अकेले सरकार या कानून प्रवर्तन एजेंसियों की नहीं है। यह हर माता-पिता, हर शिक्षक और हर नागरिक की जिम्मेदारी है। जागरूकता, शिक्षा और सामूहिक प्रयास ही इस संकट से उबरने का एकमात्र तरीका है।  

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-पवन जीनवाल
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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