चूरू के गोयंदका और पोद्दार ने रोपा अध्यात्म का पौधा, बन गया गीताप्रेस गोरखपुर
गीता प्रेस अब तक 41.70 करोड़ प्रतियां छापने का दावा करता है
चूरू में गीता प्रेस गोरखपुर ने 1923 में धर्म स्तूप के पास गुरुकुल की स्थापना की, जो आज भी चल रहा है। यहां तभी से शिक्षा, वस्त्र, शिक्षण सामग्रियां नि:शुल्क हैं।
जयपुर। क्या आप जानते हैं गांधी शांति पुरस्कार मिलने के बाद चर्चा में रहे गीता प्रेस गोरखपुर के संस्थापक हनुमानप्रसाद पोद्दार और जयदयाल गोयन्दका चूरू जिले के रतनगढ़ के थे। शेखावाटी के इन्हीं दो मित्रों ने गोरखपुर में 29 अप्रैल 1923 को गीताप्रेस की स्थापना की। आजादी के आंदोलन में सक्रिय रहे पोद्दार ने गीता को घर-घर पहुंचाने का लक्ष्य लिया। दो राजस्थानियों ने सनातन धर्म की पुस्तकें घर-घर पहुंचाने का इतिहास बनाया। वे पहले अन्य मारवाड़ी लोगों की तरह बंगाल पहुंचे थे और क्रांतिकारी अरविंद घोष और चितरंजनदास के संपर्क में आए।
अकाल पड़ा तो मदद पहुंचाने आए
1938 में जब अकाल पड़ा तो पोद्दार प्रभावित इलाके में पहुँचे और उन्होंने पीड़ितों के लिए भोजन और मवेशियों के लिए चारे की व्यवस्था करवाई।
चूरू में गुरुकुल
चूरू में गीता प्रेस गोरखपुर ने 1923 में धर्म स्तूप के पास गुरुकुल की स्थापना की, जो आज भी चल रहा है। यहां तभी से शिक्षा, वस्त्र, शिक्षण सामग्रियां नि:शुल्क हैं।
गांधी की हत्या में नामजद हुए थे
अक्षय मुकुल ने गीता प्रेस एंड द मेकिंग ऑफ हिंदू इंडिया के अनुसार गांधी ने पोद्दार को लिखा : कल्याण और गीता प्रेस से आप ईश्वर की सेवा कर रहे हो। विभाजन और नोआखली दंगों के बाद दोनों में मतभेद हुए। गांधी जी की हत्या हुई तो 500 नामजद लोगों में भी पोद्दार का नाम रहा। लेकिन आरोप सिद्ध नहीं हुआ।
सब डरे , लेकिन पोद्दार ने दी नेहरू को कार
1936 में गोरखपुर में बाढ़ के समय नेहरू जी ने गोरखपुर की यात्रा की लेकिन अंग्रेज हुकुमत के खौफ से किसी ने उन्हें गाड़ी नहीं दी। ऐसे में पोद्दार ने नेहरू को अपनी कार दी।
ठुकरा दिया था भारत रत्न
आजादी के बाद उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोबिन्द वल्लभ पंत ने पोद्दार को भारत रत्न देने का प्रस्ताव दिया; लेकिन पोद्दार जी ने इंकार कर दिया।
गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां बांट छाप चुके
गीता प्रेस अब तक 41.70 करोड़ प्रतियां छापने का दावा करता है। इनमें गीता की 16.21 करोड़ प्रतियां छप चुकी हैं।

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